पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५३६

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५३३ यमुनाजनक-ययाति दीक्षित किया था। उसो समयसे वोलराज्यमें शैव जो प्राचीन एक कालमें घड़ी पूरी होने पर वजाई जाती धर्मके बदले वैष्णव धर्मको प्रतिष्ठा हुई। इनके मता- थी। वलम्बो यमुनाचारी कहलाते हैं। कोई कोई इन्हें यामुना- यमेश (सदि०) १ परमभक्त । (क्लो०) २ भरणी नक्षत्र । चाय भी कहते है। यमुनाचार्य देखा। यमेश्वर (सलो०) शिव । यमुनाजनक (स' पु० ) यमुनायाः जनकः । सूर्या । यम्य (सं० वि०) १ मिथुनभूत, यमरूप। २ यामिनी। यमुनातीर्थ-प्राचीन तीर्थका नाम । 'ययाति (सं० पु०) नहुष राजाके एक पुलका नाम । यमुनाद्वीप (सपु०) जनपदभेद । पर्याय-नाहुषि, नाहुप । महाभारतमे उनका उपा- ख्यान इस प्रकार लिखा है-राजा ययाति नहुषके पुत्र यमुनाप्रसव ( स० पु० ) यमुनाका उत्पत्तिस्थान या संयम यह हिन्दुओंका एक प्रधान तोर्ष है। . थे। नहुष देखो । एक दिन वे शिकार खेलने जंगल यमुनाभिद् ( स० पु० ) यमुना भिनचोति भिद-विप।। गपे। वहां एक कुए में गिरि हुई देवयानोको इन्होंने कृष्णके भाई वलराम। इन्हों अपने हलसे यमुनाके दो देखा और बाहर निकाल लिया। पीछे एक दिन शुक्र- भाग किये थे इसीसे उनका यह नाम पड़ा है। हरिवंशके को कन्या देवयानो और शमिष्ठा दो हजार दासियोके १०२,१०३ अध्यायमे इसका विशेष विवरण लिखा है। साथ जलविहार कर रहा थी। इसो समय ययाति वहां यमुनाभ्रातृ ( स० पु०) यमुनाया भ्राता । यम। ' पहुंच गये और जल मांगने लगे। .. देवगनोने राजा ययातिको देख उनका परिचय पूछा। यमुनोत्तरी-हिमालय पर्वतश्रेणाके अन्तर्गत एक शैल-! | ययातिने कहा, मैं राजा और राजपुत्र हूँ। ब्रह्मचर्यका विभाग। यह अक्षा० ३०५६ उ० तथा देशा० ७८ ३५ अवलम्वन कर सभी वेदोका अध्ययन कर चुका है। . पू. गढ़वाल सीमान्तमे अवस्थित है। यमुना नदी । ययात मेरा नाम है। शिकार करते करते थक गया इसके दाहिनो भोरसे बह चली है। इस जगह यमुना-. । हूँ। देवयानी वोली, 'दा हजार कन्या और दासी वक्ष समुद्रपाठसे ६७६३ फीट है, लेकिन यमुनोत्तरो शैल- शमिष्ठाकं सहित मैं आपका आश्रय लेती है। आप ङ्ग २५६६६ फीट ऊंचा है। पार्श्ववत्ता पांचवांदर । नामक शैलांशखर ( २००५८ फोट) सं कितने झरने । मेरा स्वामी ओर सखा होना कबूल करे।' इस पर निकले हैं। इस पांचवांदर शैलके कोच एक बड़ा हद है। ययातिने कहा, 'तुम ब्राह्मण-कन्या ओर मैं क्षत्रिय । कस प्रकार विवाह हा सकता है। देवयानाने उत्तर दिया, कहते हैं, कि रामक अनुचर हनुमानने लंका जलानके ! 'ब्राह्मणक साथ क्षात्नय और क्षालयके साथ ब्राह्मणका बाद इसो हृदम आ कर अपनी पूछ बुझाई था। । i संस्रव है, अतएव आप मुझस विवाह कर सकते है। यमुनोत्तरो शैल हिन्दुओंका एक पवित्र तीर्थस्थान | तास्थान राजा वाले, 'तुमने जा कहा वह सत्य तो हे, पर ऋद्ध माना जाता है। यहां तान धाराएं एक साथ बह चली विषधर सप तथा तज शस्त्रसभा ब्राह्मण दुद्धप है। तुम है। पासहीमे वसुनाता नामक एक गर्म झरना। ब्राह्मण-कन्या हो इसालये तुमस विवाह करनका मुझे उसके पावन जलस पितराको पिण्डदान देनेसे बड़ा साहस नही हाता। पुण्य हाता है। अलावा इसके वहां ओर भी कितने ____ अनन्तर दवयानीने अपना एक दासोसे यह वृत्तान्त झरने दिखाई देते है। अपने पिता शुक्रका कहला भेजा । शुक्रक पहुंचने पर यमुन्द (सं० पु०) एक ऋषिका नाम । इसके वंशधर | देवयानाने उनस कहा, 'पिताजा ! यह राजा नषक पुत्र यामुन्दानि नामसे प्रसिद्ध है। ( पायिनि ४१४६) । हैं यया.त इनका नाम है। विवाहकालम इन्हाने मरा यमुपदेव (स. क्ली० ) वनविशेष, एक प्रकारका कपड़ा। पाणिग्रहण किया था अर्थात् हाथ पकड़ कर कुप से यमरका ( स० स्त्री० ) यम ईरति प्रेरयति हरि वाहुल बाहर निकाला था। अतएव आपसे प्रार्थना है, एक कात् उक टाप् । इन्तढक्का, घडियाल या बड़ी झांझ माप इन्हाकं साथ मुझे सम्प्रदान करें। Vol. XVIII, 134