पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५१८

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य करते हैं। प्रेत व्यक्तिगण उन दोनों कुत्तोंके सामनेसे! स्मृतिमें चौदह यमों के नाम देखने में आते हैं। तर्पण बड़ी तेजीसे भागते हैं। प्रसिद्ध पाश्चात्यपण्डित कालमें चौदह यमके उद्देशसे तर्पण करना होता है। ब्लुमफिल्डका कहना है, कि दोनों कुत्ते चंद्र और उन चौदहोंके नाम ये हैं, यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, सूर्यके रूपक वणनमात्र है। वैवस्वत, काल, सर्गभूतक्षय; औडुम्बर, दध्न, नील, पर- वेदके यम पारसिकोंके आदिधर्मशास्त्र अवस्ता | मेष्ठीं, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त । इन चौदहों यमों- यिम' नामसे वर्णित हैं। ग्रीक पुराणके प्लुतो (Pluto) ! का तिलमिश्रित तीन अञ्जलि जल द्वारा तर्पण करनेसे और मिनस (Minos) के साथ यमको सम्पूर्ण सदृशता, सालभरका किया हुआ पाप नष्ट होता है । विशेषतः है। अवस्ताके यिम और वेदके यममें कोई पृथक्ता | कृष्णाचतुर्दशीके दिन नदीमें यमतर्पण करना चाहिये। नहीं। (यश्न३०३) यिमके यिमे नामक यमज वहिन थी । वे यमुना नदीमें तर्पण करनेसे सभी पाप दूर होते हैं। ही मानवजातिके आदि मातापिता है। अवस्ता यिमके | "यां काञ्चित् सरितं पाप्य कृष्णपने चतुर्दशीम् । पिताको 'विवंहृत्' और वेदमें भी यमके पिताको 'विष यमुनायां विशेषेण नियतस्तर्पयेद् यमान् ॥ स्वत्' कहा है। अतएव दोनोमें कुछ भी पृथकता नहीं देखी । यमाय धर्मराजाय मृत्यवे चान्तकाय च । जाती। वेदके यम यमीके कथोपकथनमें यमका चरित्र वैवस्वताय कामाय सर्वभूतक्षयाय च ॥ अति उज्ज्वल भावमें वर्णित है। यमीके सम्भोगार्थ औडुम्बराय दध्नायं नीलाय परमेष्ठिने । चार वार प्रार्थना करने पर भी यमने उसे नाना युक्ति वृकोदराय चित्राय स्त्रिगुप्ताय वै नमः॥ द्वारा टाल दिया था। किन्तु अवस्तामें 'यिम' 'यिमे' एक कस्य तिलैमिश्रांत्रींस्त्रीन् दद्याद्जलाञ्चलीन् । जिस प्रकार दम्पतीरूपमें वर्णित है, ऋग्वेदमें भी उसी संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति ॥" (तिथितत्व) प्रकार यमी यमके साथ सम्बन्ध परिचयमें 'दम्पती' | प्रतिदिन जब तर्पण करना होता है तब यह यमतर्पण शब्दका प्रयोय देखा जाता है। यमने भी कहा है, कि, करना आवश्यक है। परन्तु असमर्थ होने पर इन सब 'ऐसा युग आयेगा, जब भाई और वहिनमें सहवास | यमोंके उद्देशसे एक एक अञ्जलि जल द्वारा तर्पण किया करोगे।' (१०१०१०) जा सकता है। पौराणिक । । ___ यम पापी और पुण्यात्माके पाप-पुण्यका विचार कर . मार्कण्डेयपुराणमें लिखा है, कि विश्वकर्माके संज्ञा | पापीको नरक और पुण्यात्माको स्वर्गमें भेजते हैं। धर्मा- नामक एक कन्या थीं। रविके साथ उसका विवाह | नुसार पापपुण्यका विचार करते हैं, इसलिये इन्हें धर्म: हुआ था। संज्ञाने रविको देख कर आँखे मूंद ली थी, | राज कहा है। ये पापी और पुण्यात्माको भिन्न भिन्न इसलिये रविने क्रुद्ध हो कर उसे शाप दिया, कि तुमने | रूपमें दर्शन देते हैं । पुण्यात्माके निकट इनका निम्नोक्त मुझे देख कर चक्षुःसंयम (आंख मूंद ली) कर लिया, | प्रकारका रूप होता है। यम जव पुण्यात्मा व्यक्तिको इस लिये तुम्हारे गर्भसे जो पुत्र जन्म लेगा वह प्रजा देखते हैं, तव वे चतुर्वाहु, श्यामवर्ण, शङ्खचक्रगदापन संयम-यम होगा अर्थात् वह प्रजाओंको संयमन करेगा। | और गरुड़वाहन आदि भागवत-चिह्न धारण करते हैं। संज्ञाने रविका यह निदारुण अभिशाप सुन कर पुनः "तानागतांस्ततो दृष्ट वा नरान् धर्मपरायणान् । चञ्चल दृष्टि उनकी ओर डाली। इस पर रविने फिरसे भास्करिः प्रीतिमासाद्य स्वय नारायणो भवेत् ॥ उसे कहा था. 'जव तुमने मुझे पुनः चञ्चल दृष्टिसे देखा, चतुर्बाहुः श्यामवर्णः प्रफुल्लकमलेक्षणः। तव तुम्हारे जो कन्या जन्म लेगी वह चञ्चला नदीरूपमें शङ्खचक्रगदापद्मधारी गरुड़वाहनः ॥ परिणत होगी।' कालक्रमसे उसके एक पुत्र और एक स्वर्णयज्ञोपवीती च स्मेरचारतराननः । कन्या उत्पन्न हुई। पुत्र प्रजासंयम यम और कन्या किरीटी कुण्डली चैव वनमालाविभूषितः॥" यमुना कहलाई। (मार्फण्डेयपुराण ७७ १०) (पद्पुराण क्रियायोगसार २२ भ०)