पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५१०

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.५०७ यन्त्र विशिष्ट एक खण्ड लकड़ीका टुकड़ा ले कर यह यन्त्र, विन्दुमें एक छिद्र कर उसमें आवश्यक परिमाणको एक तय्यार करना होता है। अन्यान्य यन्त्रोंके साहाय्यसे | शलाका घुसा दो। यही अक्षरेखा ( Axis ) समझो। दिङ्मण्डलका उन्नतांश लक्ष्य कर स्फुटकाल (Appar- | पीछे उस रन्ध्रको केन्द्रमान फर ३० उंगल कर्कटक ent time) उपलब्ध नहीं होता। इससे महामति भास्क- ( radius) द्वारा एक वृत्त बनाओ, तो यह वृत्त ६० राचार्य्यने फलकर्यन्त्रका आविष्कार किया था । सिद्धांत-| संख्यक ज्याको स्पर्श करेगा। अतएव इसका व्यास भी शिरोमणिमें इस यन्त्रको प्रक्रिया इस तरह लिखी ६० उंगल होगा। इसके उपरान्त इस वृत्तमें ६० टिका, ३६० भगणां- "कर्त्तव्य' चतुरस्रक सुफलक खांकागु विस्तृत शक (degree) और उसका प्रति अंश दश-दश पानीय- विस्तारादि वगुणायतं सुगणकेनायाममध्ये तथा। पलमें विभाग कर अंकित करो। इसके बाद ताम्र आधारः श्लथगृहलोदिघटितः कार्य्याच रेखा तत- आदि धातुकी अथवा वांसकी शलाकाके आकारका ६० स्त वाधारादवलम्बसूत्रसदृशी सा लम्बरेखोच्यते ॥ उंगल लम्बी एक घटिका तयार कर उस पर फलकां- लम्ब नवत्य गुलकैविभाज्य, प्रत्य'गुलं तिर्यगतः प्रसार्य। गुलकी तरह रेखा खींच लेनी होगी। समन पट्टिका सूत्राणि तत्रायतसूक्ष्मरेखा, जीवाभिधानाः सुधिया विधेयाः ॥ हो म 'गुल विस्तृत होगी। केवल इसके सामने जो आधारतोऽधः खगुणागुलेषु, ज्यालम्बयोगे सुपिरं च सूक्ष्मम् । एक छिद्र रहेगा, वह कुठाराकार और एक उगल बड़ा इष्टप्रमाणा सुषिरे शलाका, क्षेप्याक्षसंज्ञा खलुसा प्रकल्प या ॥ वना लेना होगा । पोछे उस कुठार भागके फैलाव, पाट्य गुप्लव्यासमतश्च रन्ध्रात कृत्वा सुवृत्त परिधौ तदयम् । घुसाई हुई शलाकामें पट्टिकाका छिद्र घुसा देनेसे इसके यष्ट्या घटीनां भगणांशकैश्च, प्रत्यंशकष्णाम्वुपलेश्च दिग्भिः । अर्धागुल विस्तृत लम्बांशका एक पावं लम्बरेखाके अग्ने सरन्ध्रा तनुपट्टिकैका, पट्य'गुला दीर्घतया तथाया। साथ समसूत्रमे मिल जाता है। यत खण्डकः स्थ लचरं पलाद्य तद्गोकुहृत् स्याचरशिक्षिनीह ॥ पहले धातु वा श्रीपर्णादि काष्ठ द्वारा चिकना और इसी यन्त्रके साहाय्यसे पलके परिमाणानुसार समतल चौकोन फलक तय्यार करना चाहिये। खाण्डकके द्वारा स्थूल चराद्ध जान कर उसको २६ इसकी ऊंचाई १० उगल और लम्बाई १८० उंगल हो। संख्यामें विभाजित करो । ऐसा करनेसे चरज्या ( sine of the ascensional difference) प्राप्त होती इसके बाद लम्बाईके मध्यविन्दुमें यन्त्रका आधार ठीक कर शिथिल शृङ्खल द्वारा लम्वे भावसे लटका कर रखो। इस तरह फलक स्थित रहनेसे आधारविन्दुके नीचेके सूत्र क्रांतिवृत्तके प्रत्येक राशिको चरज्या ( sine of the का अवलम्वन कर एक लम्बी रेखा ( Perpendicular ) ascensional difference) निर्णयार्थ महामति भास्करा. खींचो। चार्याने संक्षिप्त एक उपाय बतलाया है। उन्होंने १, पीछे उस लम्बी रेखाको नब्बे भागोंमें विभक्त कर | २, या ३ राशिकी (जिस स्थानकी पलभा १ उगल) फलककी चौड़ाई भागमें तिर्याक्भावसे लम्बी रेखायें चरज्या १०८।३ १ को (दिङ नागसत्य'शगुणैः) मान गिरामओ । ये रेखायें भी एक उंगलके अन्तर और लिया है। पीछे उस चरखण्डको सार्द्ध ४ उगल (४।३०) तिर्यकत्वके कारण ऊपरी और निचली सीमा रेखाके चरखण्ड ४५/३६।१५ समझा जायेगा। साथ समान्तर (Parallel) हों। इसी तरह सव जिस साक्षदेशका (Place haring latitude) पलभा रेखाएं ज्याके रूपमें ली जायेगी। आधारके नीचे- की ओर तीस उगलके अन्तर पर जो त्रिंशज्या रेखा ८ उंगलसे कम है, उस स्थानकी पलभा ले कर इस तीन पलयुक्त राशिको गुणा करनेसे कुल चरज्या पाई जाती ( 30th sine at the 30 digit) होगी, उसके जिस है। फिर इस पलात्मकलयको (१०८। ३१_) छः गुणा स्थान पर लम्वी रेखा आ कर मिली है उस मध्य- है।