पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९८

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यन्त्र वगलामुखीका पूजायन्त्र। . 'सकती है। एक हाथके अन्दाजमें यह यन्त्र अङ्कित किया | . . जाता है। पहले त्रिकोण और उसके वाहर छः कोण अङ्कित्त . रत्न आदिसे भी यह यन्त्र तैयार किया जाता है।। फर वृत्त और अष्टदल पद्म अङ्कित करना होता है उसके रत्न आदिसे तय्यार करनेमें इच्छानुसार एक, दो वाहर भूपुर अङ्कित कर यन्त तय्यार करना चाहिये। (तन्त्रसार) या चार तोले रत्न ले कर यन्त्र तय्यार करना होता है। इससे अधिक होनेसे साधकको प्रायश्चित्त करना पड़ता इसी प्रणालीसे धारणयन्त्र और पूजायंत्र तय्यार है। भूमिमें यंत्र अङ्कित कर लाल गुटिकासे यंत्र पुरित करना चाहिये। कर अर्चना करनेसे साधकके सर्व प्रकारकी विनवाधायें ___नवग्रहके भी यंत्र कवचको व्यवस्था देखी जाती है। दूर होती है। सोना, चांदी और तांवांको तिलोह कहते रवि आदि ग्रहोंके प्रकुपित होने पर यंत्र कवचादि बांधने- हैं। दश भाग सोना, वारह भाग तावा और सोलह से उनकी शांति होती है। ३ वैद्यक शास्त्रोक्त औषधपाक और गस्त्रप्रयोग आदि- भाग चांदी मिला कर उसले यन्त्र तय्यार कर देवीकी अच्चना करने पर साधकके सौभाग्यलाभ और शीघ्र हो के लिये नाना प्रकारके यंत्र हैं। संक्षेपमें उसका विवरण "अणिमादि ऐश्वर्य लाभ होता है। नोवे दिया जाता है। - आयुर्वेदीय यंत्र। प्रवाल, पद्मराग, इन्द्रनीलमणि, स्फटिक अथवा मर- सुश्रुतमें लिखा है,-यंत्र सव मिल १०१ हैं। इसमें कंत मणिसे यंत्र अङ्कित कर पूजा करने से धन, पुत्र, दारा हाथ ही प्रधानतम यंत्र है। क्योंकि हाथके विना फिसो और यशलाभ होता है। तांबेके पन पर यत तय्यार कर यनका प्रयोग नहीं किया जा सकता। अतएव हाथ पूजा करनेसे 'कान्तिवृद्धि, सोनेके पत्र पर यंत्र तय्यार सव तरहके यंत्रोंके कामका अवलम्वन है। मन और करनेसे शत्रुनाश, चांदी के पत्र पर करनेसे मङ्गल और शरीरके क्लेशजनक कांटेको निकालनेके लिये ही यंत्रकी स्फटिक पर यंत्र खुदवानेसे सब कार्योंकी सिद्धि होतो है । सव पूजायंत्रोंका यही नियम है। आवश्यकता है। 'ये सय यंत्र छः भागोंमें विभक्त हैं । यथा, स्वस्तिक श्यामापूजायंत्र । यंत्र, सन्द'शयंत्र, तालयंत्र, नाड़ीयंत्र, शलाकायंत्र और . पहले विन्दु इसके बाद अपने वीज 'की' इसके बाद उपयल। . भुवनेश्वरी बीज "हीं' लिख कर इसके वाहर त्रिकोण पूर्वोक्ति ६ प्रकारके यन्त्रोंमें स्वस्तिकयन्त्र २४ प्रकार- अङ्कित करनेकी विधि है। उसमें वाहर त्रिकोण चतु. का है। सन्दंश (साँडासी) यन्त्र दो तरहका, ताल- प्रय अङ्कित कर वृत्त, अष्टदल पन्न, फिर वृत्त अङ्कित कर यन्त्र दो, नाड़ीयन्त २०, शलाकायन्त्र २८ और उपयन्त्र उसके वाहर चार द्वार बनाना होगा। २५ प्रकारका है। ये सव यन्त्र लौह द्वारा ही तय्यार यन्त्र लिखनेके वाद पात्रके सम्बन्धमें मुण्डमालाय'न- | होने चाहिये। किंतु लौहके अभावमें दूढ़दन्त तथा'शृङ्ग - में इस तरह लिखा है, कि तांबेके पालमें, मनुष्यके. कपा आदि द्वाराभो तय्यार किया जा सकता है। सव ..लास्थित अर्थात् श्मशानकी. लकड़ी पर शनि और यन्त्रोंके मुखका आकार व्याघ्रादि हिंस्रजन्तुओंके मुखके . मङ्गलवारको मृत मनुष्यके शरीरमें सोनेके पात्रमें, | आकारका होना चाहिये या मृग पक्षीके मुखका आकार - चांदोके पात्रमें, लौहपात्रमें. विधानानुसार यंत्र करना चाहिये। अथवा शास्त्रके मतसे गुरुके आदेशा- तथ्यार करना चाहिये। इस यंत्रका प्रकारान्तर पहले - नुसार अन्ययन्त्र सामने रखे। या युक्तिपूर्वक तय्यार · ६ कोण. अङ्कित कर उसके वाहर तीन नितीण और उस- किया जा सकता है। . . . . . के वाहर वृक्ष अष्टदल कमल और चर्तुद्वार लिखकर यंत्र ... यत्रतय्यार करनेका विधि। .. • तय्यार करना उचित है। सव यन्त्र इस प्रकारसे तय्यार करने होंगे, जिससे