पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९५

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४१२ यन्त्र यन्त्रको धारण करें। ऐसा करनेसे वे राजा राजश्री | सामने द्वितीयान्त साध्य नाम लिखना चाहिये। उसके सम्पन्न हो जायगे। यह यन्त्र सब कामनाओंको पूर्ण | ऊपर मन्त्र लिख यह श्रीचफ्रके वाहर मातृका वर्णावली- करनेवाला है। से घेर देना होता है। पीछे पूजाके समय यथाविधि लक्ष्मीयन्त्र। संस्कार कर यन्त्रसे छुआ कर एक सौ आठ बार मन्त्र जप पहले बारह पंखडियोको अड़ित कर उसमें प्रणव | करना चाहिये। यह यन्त सोने या चांदीके पालमें रख फिर वारहो पंखड़ियोंके किंजल्कमें "श्री'ही' की" इन हाथमें वांधनसे जगत वशीभूत होता है। हृदयमें धारण तीन मन्तके दो दो करके वर्ण इसके ऊपर बारह पंख करनेसे कामिनीको हृदयवल्लभ, कण्ठमें धारण करनेसे ड़ियोंके वारह किजल्कोंमें "ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्षौं जगत् । धनलाभ, कपालमे बांधनेसे स्तम्मन और शिखामे बांध. प्रसूत्य नमः" इस द्वादश अक्षरके मन्त्र के द्वादश वर्ण | नेसे मोक्षको प्राप्ति होती है। यथाक्रम विन्यास करना उचित है। इसके चहिर्भाग- गणेशयन्त्र। में सोलह पंखडियोंके कमलके सोलह पराग या केसरमें पहले तो अदुव मुखी त्रिकोण बना कर उसके ऊपर दो दो प्रथम बत्तीस पत्रों पर सोलह स्वर्णवर्ण लिखना अधोमुखी त्रिकोण बनाना होगा। इन छ: कोनोंके वीचके होगा। पीछे लक्ष्मीके दो मन्त्रों और वपट् अन्त प्रणवमे 'ग' गणेशयोज लिख इसके चारो ओर श्रीं ह्रीं क्लो त्वरिता मन्दसे इस यन्त्रको घेर कर भूपुरद्वय के प्रत्येक ग्लौं यह मन्त्र लिखना होगा। इसके बाद उसके वाहरके कोनेमें वजनवर्णके अवशिष्ट अन्तिम वर्णद्वय इसका छः कोष्ठोंमें ओं श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं घेछ बीज पीछे विन्यास करना चाहिथे। इस लक्ष्मीयन्त्र धारण करने छ जोड़ों पर 'नमः स्वाहा वषट्, हुं वौषट् फट' ये छ। से सब तरहके ऐश्वय्यं लाभ और सब तरहके दुःखोंका | अङ्गमन्त्र लिखना। पोछे कमलके आठों पंखडियों में तीन चिनाश होता है। तीन मन्त्रवर्ण लिखवाको वर्ण अन्तकी पंखड़ियों में लिखना त्रिपुरभैरवीयंत्र । होगा । गणप १, तये व २, रद व ३, रसद ४, वर्जनं ५, नवयोनिके बीचसे आरम्भ कर "हस इस कलरी) मे वस ६, मानय ७ स्वाहा ८, इस तरह विभाग कर इसरों" इस निकूटमन्त्रका एक कूट लिखना चाहिये। आठ पंखडियों में लिखना चाहिये । पीछे उसे एक पंक्ति इस तरह तीन बार मन्त्र लिख कर अष्टदल के प्रत्येक दलमे | अनुलोम वर्ण द्वारा घेर कर उसके बाहर मां क्रों इन गायत्रीकं तीन तीन वर्ण लिख कर उसे पचास वर्णीसे | वर्णों द्वारा घेर देना होगा। यह यन्त्र फिरसे भूपुर द्वारा घेर देना उचित है। पीछे भूपुरद्वय द्वारा उसको घेर घेर देना चाहिये। इस यन्त्रके प्रयोग सब तरहको कर इस भूपुरके प्रत्येकका विन्यास और कोने में काम- सम्पत्तिकी प्राप्ति होगी। भीरामया वीज लिखना चाहिये । इस यन्त्रके धारण करनेसे त्रिभुवनके लोग विक्षन्ध तथा लक्ष्मी प्राप्त होगी। वोचमें प्रणव लिख कर छ: कोणोंमे 'रामाय नमः त्रिपुरायन्त्र । इसके बाद छहो जोड़ों पर नमः, स्वाहा, वषट् हुं वौषट् ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण पर अधोमुखी त्रिकोण अङ्कित फट, इस षडङमन्त्रको लिख कोण और गएडमें ह्रीं क्लीं कर उसमें 'को" इस चीजमें ही चीज लिखना होगा। यह मन्त्र लिखना चाहिये। इसके बाद किल्कमें दो इसके बाद छ: कोणों में 'ऐ' वीज लिख दो त्रिकोणोंके दो स्वरवर्ण लिख अष्टदल कमलको पत्तों पर मालामन्त्र सन्धिस्थलमें हूँ यह वीज, पीछे उसे 'स्त्री' चीजसे घेर लिखना चाहिये। अन्तिम पत्ते पर इस मालामन्तके देना आवश्यक है। इस यन्त्रके धारण करनेसे सौन्दर्य अन्तके पांच वर्ण लिखना आवश्यक है। अन्यान्य पसो पर छै छै करके वर्णविन्यास करना चाहिये। इसके बाद और सम्पत्ति प्राप्त होता है। श्रीविद्यायत्र। दशाक्षर मन्त द्वारा उसे घेर कर पीछे मातृका वर्णोसे रेफ और इकारके बोच देवोका नाम लिख उसके । घरमा होतो है। उसके बाहर भूपुर लिख उसके चारों