पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९४

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यन्त्र ४६१ आत्मशुद्धि ततः कृत्वा षडङ्ग देवतां यजेत् । ! एक एक मन्त्र, उसके वादके अष्टदलका अष्टकेशरमें क्रमशः तत्रावाह्य यजेद् देवी जीवन्यासं समाचरेत् ॥ 'साई हंसः ओई साईॐ हंसःई हंसः ॐ मुं उपचारषोड़शमिर्महामुद्रादिभिः सदा। हंसः ई हसाई हंस हंसःई हंसः औं हंसः . फलताम्बूलनैवेद्य हवीं तत्र समयेत् ॥ हंसः, ऐं ओं हंसः औं अहसाभ:' इन सब मन्वाक्षरों- पट्टसुत्रादिकं दद्यात् वस्त्रालङ्कारमेघ च । को रखना होगा। उसके ऊपर अष्टदलमें 'आं ह्रीं क्रों' मुद्गरं चामरं घंटो यथायोग्यं महेश्वरि ॥ ये मन्त्र तीन पक्तिमें लिखना होगा। पीछे सारे पद्म सर्वमेतत् प्रयत्नेन दद्यादात्महिते रतः। । घेर कर 'आं क्रो' ये मन्त्र भी तीन पक्तिमें लिखना ततो जपेत् सहस्रन्तु सकलेप्सितसिद्धये ॥ | होगा। इसके बाद अनुलोमसे पचास वर्ण द्वारा घेर वलिदानं ततः कृत्वा प्रणमेच्चक्रराजकम् । | कर उन सब विलोमोंमें रखे पचास बोसे घेरना होगा। अष्टोत्तरशतं हुत्वा सम्पाताज्य विनिक्षिपेत् ॥ इसके बाद दूसरा पद्ममुखके साथ वहिर्देशमें दूसरे होमकर्मण्यशक्तश्चेद्दि वगुण जपमाचरेत् । पद्मके घरको घेर देना होगा। इस यनसे साधकका धेनुमेकां समानीय स्पर्ण शृङ्गाद्यलङ्क ताम् ॥ महा कल्याण होता है। गुरवे दक्षिणां दद्यात् ततो देव्या विसर्जनम् । त्वरिता धारणयन्त्र। फले भित्तौ तथा पट्टे स्थापयेद्य'त्रमीश्वरि । इस मन्त्रके लिखनेके लिये आठ पंखड़ियोंका एक धनधान्यपुत्रपौत्र आयुश्च तस्य नश्यति ॥" (तन्त्रसार) : कमल अङ्कित करना चाहिये। उसको कर्णिकामें एक __धारणयन्त्र। ! प्रणवका विन्यास करना होता है। इस प्रणवमें हूं' धारण-यन्त्रोंमें पहले भुवनेश्वरी यन्त्रको वर्णन आया : इस मन्त्रको लिख कर बीचमें नाम अर्थात् 'हु अमुक है। यह यन्त्र लिखने के लिये आठ तरफ अर्गल लिख बसमानय' लिखना उचित है। पीछे अष्टदलॊमें अष्टा- कर उसमें आं ह्री को ये तीन मन्त्र लिखना होगा। क्षर मन्त्रके अष्टवर्ण, इसके बाद शक्ति अर्थात् 'की' इस इसके बाद के माठ कोनोंमें चार कोनोंमें नमः स्वाहा हु। मन्त्र द्वारा तीन पक्तिमें घेर देना होगा। यह मन्त्र फट ये चार मन्त्र और वाकी चार कोनोंमें वौषट् मन्त्र | कमलके ऊपर ही रहेगा और इसके मुख पर भी एक परवत्ती आठ कोनोंमें आं श्रीं ह्रीं क्लीं क्लो ही श्री | कमल अङ्कित होगा। यह यन्त्र वशीकरण ग्रहादि भय- क्रो-ये अएवर्गात्मक मन्त्र और वादके आठ कोनोंमें नाशक और लक्ष्मी तथा कान्तिका देनेवाला है। 'कामिनी रजिनी स्वाहा' यह अष्टवर्ण मन्लके एक-एकः | नवदुर्गाका धारणयन्त्र। वर्ण इसके बाद के अर्गलान्तर्गत अष्ट कोष्ठोंमें हहां हिं पहले वारह पंखडियोंका एक कमल लिख कर उनमें हो ह ह ह्यह्यां, ह्यि ह्यो ह्यह्याँ ह्यि ही घुघ, प्रणव और "हीं हु" और बीचमें नाम और वारहों पंख हां हि हो वह ह हां हिहहहे हैं हो हौं डियोंमें "महिषमर्दिनी वाहा' इस मन्त्रके दो दो हह, ह्ये ाँ ह्यो ह्यौं ह्यधा, ह ह ह्वाँ ह्रौं ह ह्वा, हे विन्यास करना चाहिये और सभी पत्तों पर "ॐ उत्तिष्ठ है हो ह्रौं हूँ ---इन्हीं सव अक्षरोंको यथाक्रमसे दो पुरुपिकिखपिषो भय में समुपस्थित यदि शक्यमशक्य पंक्तिमें विन्यास करना होगा। इसमें पहला वर्णषट्क वा तन्मे भगवति शमय स्वाहा” इस मन्त्रके तीन तीन पूर्व ओर दूसरा वर्णपटक अग्निकोणमें, तीसरा वर्ण- अक्षरोंका विन्यास करना भावश्यक है, अन्तमें जो वर्ण घटक दक्षिण ओर चौथा वर्णषटक नैमृत कोणमें, पांचवा वाकी वचे अन्तिम दलमें लिखा जायेगा। वर्णपटक पश्चिम ओर छठा वर्णषट्क वायुकोणमें, मातृका वर्णसे उसके चारों ओर घेर कर उसके बाद सातवां वर्णषट्क उत्तर ओर और आठवां वर्णषटक, दो भूयूर' लिखना होगा। यह यन्त्र धारण करनेसे ईशान कोणमें रखना होगा। उसके वादके कोषमें हां गौरि सव सम्पद लाभ होगा तथा भूतोपद्रव भी शान्त होगा। रुद्रदयिते योगेश्वरो हुफट् स्वाहां ये पोडशाक्षर मन्त्रके | जो राजा राजभ्रष्ट हो गये हों उनको चाहिये, कि वे इस