पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९२

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४५६ यदुवंशपणि-यन्त्र योगमाया आकाशमें उड़ कर अन्तर्धान हो गई। उस । यवृत्त (स० क्ली० ) यथावृत्त, जो घटना। समय उसने कहा, तुम्हारा शत्रु गोकुलमें बढ़ रहा है।' यन्त (सपु०) यम-तृन् । १ सारथी। २ हस्तिपक, तभीसे कंसने श्रीकृष्णका काम तमाम करनेकी लाखों फोलवान । (त्रि०) ३ विरतिकारक, वैरागी। प्रयत्न किये, पर एकमें भी सफलता प्राप्त न हुई । आखिर यन्तव्य (संलि०) यम-तव्य । यमनीय, दमनयोग्य । श्रीकृष्णके हाथ कंस मारा गया। कंसके मारे जाने पर | यन्ता (सपु०) सारथी। उग्रसेन जिसे कंसने राज्यच्युत कर दिया था, राजसिंहा- यन्ति (सं० स्त्री०) यम-तिच् (न क्तिचि दीर्घश्च । पा ६४.३६) सन पर बैठा । देवकी और वसुदेव बन्धनसे मुक्त हुए। इति अनुनासिकलोपः दोघश्च न भवति । दमन । श्रीकृष्णके सोलह हजार एक सौ स्त्रियां थीं। जिनमें यन्त्र (सं० क्लो०) यच्छत्यनेति यम (ग्धृवीयचिवचिषमिस- सिर्फ आठ पटरानो थीं। श्रीकृष्णके आठ अयुत और दिक्षदिभ्य स्त्रः। उण ४११६) इति त। १ पात्रभेद। २ आठ लक्ष पुन्न हुए। उन पुत्रोंकी वंशवृद्धिसे यदुवंशमें | नियन्त्रण। (हेम ) ३ अग्नियन्त्र, तोप या बन्दूक । असंख्य मनुष्य हो गये थे। यदुवंशकी संख्या नहीं कही। 8 दारुयन्त्रादि, लकड़ीको कल।५ देवाधिष्ठान, । जा सकती। अत्तमें बदुवंशी उच्छृङ्गल हो कर ब्राह्मण (देवीभागवत ३।२६।२१) शापसे दग्ध हो गये। तन्त्रमें लिखा है, कि यन्त्रमें देवताका अधिष्ठान यदुवंशमणि ( स० पु०) श्रीकृष्णचन्द्र। रहता है। इसीलिये यन्त्र अङ्कित कर देवताको पूजा- यदुवंशी (सपु०) यदुकुलमें उत्पन्न, यादव । की जाती है। यदुवर (स.पु०) श्रीकृष्ण । __ भिन्न भिन्न देवताओंका यन्त्र अडित कर धारण यदुवीर (संपु०) श्रीकृष्ण । करना विधिसङ्गत है। यन्त्र कवच धारण करनेसे यदूत्तम (सं० पु०) श्रीकृष्ण । विघ्न वाधा दूर होती है। पूजायन्त्र साधारणतः चन्दन यद्वच्छया ( स० वि० क्रि०) १ अकस्मात्, अचानक । २ इत्तफाकसे, दैवसंयोगसे। ३ मनमाने तौर पर, द्वारा अङ्कित हुआ करता है। बिना किसी नियम या कारणके। यन्त लिखनेके द्रव्यके विषयमें विषयतन्त्रमें इस यदृच्छयाभिज्ञ (सपु०) कृतसाक्षा के पांच भेदोंमेसे| तरह लिखा है- पक, वह साक्षी जो घटनाके समव आपसे आप या | "काश्मीररोचनाद्राक्षा-मृगेभमदचन्दनः। ' अकस्मात् आ गया हो। विलिखेद्धमलेखन्या यन्त्राणि तानि देशिकः॥ यदृच्छा ( स० स्त्री० ) यद् ऋच्छ-मयूरव्यंसकादित्वात् भूमिस्पृष्ट शवस्पृष्टं दग्धं निर्माल्यसङ्गतम् । निपातनोत् सिद्ध। १ स्वेच्छाचरण, केवल इच्छाके विदीर्ण लधित मंत्री यत्र नैव च धारियेत् ॥ अनुसार व्यवहार । पर्याय-स्वैरिता, स्वरिता । २ माका सौवर्ण राजते पात्रे भूजे वा सम्यगालिखेत् । स्मिक संयोग, इत्तफ़ाक । अथवा ताम्रपात्रे वा गुटिकां कृत्य धारयेत् ॥ यहे वत (स: त्रि०) जिसका जो देवता। यावजीव सुवर्णे स्यात् रौप्ये विंशतिवार्षिकं । यद्वन्द्व ( स० क्ली० ) साभभेद । भज्ज द्वादशवर्षाणि तदर्द्ध ताम्रपटुके ॥" यद्भविष्य (संपु.) १ अदृष्टवादी। २ मत्स्यभेद, ___ इति यंअलिखनद्रव्य" (तंत्रसार ) एक प्रकारकी मछली। काश्मोर या केशर, गोलोचन, अदरख, कस्तूरी और या वा (स' अध्य०) यदि, मगरचे । चन्दन-इन्हीं सव द्रव्योंसे सोनेकी कलमसे यन्त्र यद्वा ( स० स्त्री०) १ बुद्धि। २ पक्षान्तर । लिखना चाहिये। जो यन्त्र भूमिसे या मुर्देसे छू गया यद्वातद्वा (स अव्य०) कभी कभी । हो, निर्माल्यसे तय्यार हुआ हो, टूटा हो या किसी यद्विध (सं०नि०) जिस प्रकार, जैसे। उसे लांध दिया हो, उस यन्त्रको न पहनना चाहि Vol. xVIII, 123