पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४९१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४८ - यदुवंश • अनावृष्टि रही, इसलिये काशीराज श्वफल्कको अपनी , मारे जाने तथा मणिके अपहरणका वृत्तान्त कहा। श्री. राजधानी में ले गये। श्वफल्कके काशी पदार्पण करते कृष्णने शतधन्वाको मार डाला सहो, पर स्यमन्तक मणि ही बड़ी वृष्टि हुई। काशीराजने कृतज्ञताखरूप अपनी हाथ न लगो। क्योंकि, शतधन्वाने पहले ही वह मणि कन्या गान्दिनीको उनसे व्याह दिया । उसी गान्दिनीके आक्रको दे दी थी। अकरने मणिरक्षाका कोई उपाय गर्भसे अकरका जन्म हुआ था। प्रसेन और सत्राजित न देख श्रीकृष्णको वह मणि दो। उस मणि पर ने वृष्णिके वंशमें जन्मप्रहण किया था। स्यमस्तक बहुतोंकी आँखें गड़ी थी, इस कारण श्रीकृष्णने उसे मणिके उपाख्यानप्रसङ्गमें इन दोनोंसे पुराणोंके वक्ता अकरके पास हो रहने दिया। सात्वतपुत्र अन्धकके तथा श्रोतामान परिचित हैं। सूर्यकी उपासना करनेसे कुकुर, भज्यमान आदि पुत्र उत्पन्न हुए थे। कुकुरके सत्राजितको स्यमन्तक मणि मिली थी। उस मणिको | वंशमें उग्रसेन तथा कंस आदिने जन्म लिया। भज्य- गलेमें पहन कर सत्राजित द्वारकापुरीमें गये।। मानके पुत्र देवमोदुष और देवमीदुषके शूर हुए । भूरिकी मणिको देख कर यादव चकित हो गये। श्रीकृष्णन स्त्रीका नाम मारिषा था। मारिषाके गर्भसे वसुदेव भी कहा, 'अच्छा होता, यदि यह मणि उग्रसेनके गले में आदि दश पुत्र तथा पृथा, श्रुतदेवा आदि पांच कन्याए' ही शोभायमान होती।' मणि पर सभीकी स्पृहा देख उत्पन्न हुई थीं। कुन्तिभोज वसुदेवके पिता शूरके मिल थे। कर सलाजितने वह मणि अपने छोटे भाई प्रसेनको दे दी। कुन्तिभोजके कोई वंशधर न रहने के कारण शूरने उन्हें' मणिमें ऐसा गुण था, कि जो कोई शुद्धता और यत्नपूर्वक अपनी कन्या पृथाको पन्यारूपमे दे दिया। इसी पृथाका उसे धारण करता उसको उस मणिसे आठ भार सुपर्ण नाम कुन्ती पड़ा था। कुन्ती पाण्डको ब्याही गई थी। प्रतिदिन मिलता था और राज्य के सभी विघ्न दूर होते ! वासुदेवको दूसरी बहिन श्रुतदेवाका कारुष वृद्धशर्मासे थे। अशुद्धावस्थामें मणि धारण करनेवालेका सर्वस्व हुआ था। उसके दो पुत्र थे, दन्तधक और महाशूरः । नाश हो जाता था। एक दिन प्रसेन अशुद्ध अवस्था श्रुतकीर्ति केकयराजको ध्याही गई थी। उसके प्रतईन ही उस मणिको धारण कर जंगल गये वहां एक सिहके , आदि केकय नामक पांच पुत्र उत्पन्न हुए थे। राजाधि. 'द्वारा मारे गये। प्रसेन देखो। आखिर मणि चुरानेका देवोका अवन्तीराजके साथ विवाह हुआ था। उसके कलङ्क श्रीकृष्णको हो लगा। इस कलङ्कको दूर करनेके गर्भसे विन्दु और अनुविन्दु नामक दो पुत्रोंने जन्मग्रहण लिये श्रीकृष्ण मणि ढूढने निकले। आखिर इफ्कोस किया। श्रुतश्रवा चेदिराज दमघोषसे घ्याही गई थी। दिन युद्ध करके श्रीकृष्णने जाम्बवानसे वह मणि छीन जिससे शिशुपाल नामक पुत्र हुआ। युधिष्ठिरके ली। जाम्बवान्ने प्रसन्न हो कर अपनी कन्या भी श्री-राजसूययज्ञमे यही शिशुपाल श्रीकृष्णके हाथसे कृष्णको व्याह दी। इस प्रकार श्रीकृष्णका कलङ्ग दूर मारा गया था। देवकी आदि कंसकी सात वहनों- हुआ। सत्राजितने श्रीकृष्ण पर कलङ्क लगाया था। का वासुदेवसे विवाह हुआ था। श्रीकृष्ण और अंतपय अपने कर्मसे लजित हो कर उन्होंने भी अपनी बलराम ये ही दो वसुदेवके पुत्र थे। रोहिणाके कन्या सत्यभामाका विवाह श्रीकृष्णसे कर दिया । गर्भसे बलराम और देवकीके गर्भसे श्रीकृष्णने जन्म • स्यमन्तक मणि पर सत्राजित हीका अधिकार रहा। ग्रहण किया। कंसके कारागारमें श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए सत्यभामाले शतधन्वा, कृतवर्मा और अकर विवाह थे। कृष्णा देखो। संयोगवश उसी दिन नन्दके घर करना चाहते थे। इसलिये इस अपमानका बदला लेने- एक कन्या उत्पन्न हुई थी । वसुदेव कंसके भयले पुत्रको के लिये शतधन्वाने सताजितको मार डाला और स्यम- नन्दके यहां रख कर और उनकी कन्याको ले कर मथुरा- .न्तक मणिको ले लिया। इस समय पाण्डवोंके जतु- के कारागारमें चले आये । वह कन्या खयं योगमाया थी। गृहदाहके उपलक्षमें श्रीकृष्ण वारणावत नगरमें गये थे। कंसने योगमायाको मरवा डालनेकी इच्छासे उसे पत्थर पर-पटकनेकी आज्ञा दो। पत्थर पर पटकनेके समय

.सत्यभामाने श्रीकृष्णके. समीप जा कर अपने पिताके