पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४८८

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यदि-यदुनन्दन यदि (सं० अवा० ) अगर, जो। इस अव्ययका उपयोग विलकुल दुर्वल हो गया हूं। परन्तु मैं यौवन उपभोगसे वाक्यके आरम्भमें संशय अथवा किसी वातकी अपेक्षा तृप्त नहीं हुआ। इसलिये तुम मेरा बुढ़ापा और सभी सूचित करनेके लिये होता है। पाप ले लो और अपनी युवावस्था मुझे दो, जिससे मैं यदिच (स अवा० ) यद्यपि, अगरचे। युवक हो कर काम्यविषयका उपभोग कर सकू। जव यदिचेत् (सं० भवा० ) यदिच देखो। हजार वर्ष पूरा हो जायगा, तव पुनः तुम्हारी युवावस्था यदिच्छा (सं० स्त्री०) जैसी इच्छा। लौटा दूंगा।' यदुने इसे स्वीकार नहीं किया और कहा, यदोय (संत्रि०) यस्येदमिति यद् (वृद्धाच्छ। पाहा 'राजन् ! बुढ़ापेमें स्वाने पीने आदि विषयों में अनेक दोष ११४) इति छ। यत्सम्बन्धी, जिस वारेमें। देखे जाते हैं, इसलिये अपनी जवानी दे कर आपका यदु (सं० पु०) यजते इति यज् उ, पृपोदरादित्वात् बुढ़ापा लू, इसे मैं अच्छा नहीं समझता। जो बूढ़े होते जस्थाने इकारः। देवयानीके गर्भसे उत्पन्न ययातिके । उनको दाढो मूछ विलकुल सफेद हो जाती, वे निरा- बड़े लड़केका नाम । | नन्द, शिथिल, वलिविशिष्ट, संकुचित गात्रके, कुत्सित, आर्यजातिके आदिग्रन्थ ऋकसंहितामें भी यदुका दुर्गल और कृश होते हैं, कोई कार्य करनेकी उनमें शक्ति वृत्तान्त लिखा है। (ऋक् ११३६, १८, ११५४६, १२२७०१६, । न रह जाती तथा उन्हें युवकों और सहचरोंका अवज्ञा- ४।३०।१७, ५।३१।८, ६।४५१, ८1819, ८१७११८, ८१४, पान होना पड़ता है, ऐसी वृद्धावस्था मैं लेना नहीं ८।१०५, ६६०२, १०४।८) उक्त संहितामें 'उत त्या चाहता; राजन् ! आपके मुझसे और भी कितने प्रिय पुत्र तुर्व शायदू अस्नातारा शचीपतिः। इन्द्रो विद्वां अपपयत् ।" ; हैं उन्हीं मेंसे किसी एकको अपना बुढ़ापो लेने कहिये, मैं (४।३०।१५) भाष्यमें सायणाचार्यने लिखा है, "उत्यापि नहीं ले सकता।' इस पर ययातिने अत्यन्त ऋद्ध हो च अस्नातारास्नातारौ ययातिशापादनभिषिक्ती त्या त्यौ । कर उन्हें शाप दिया, 'तुमने मेरे हृदयसे जन्म ले कर भी प्रसिद्धौ तुर्वशायदू तुवंशनामानं यदुनामकं च राजानौ । मुझे अपनी जवानी न दी, इस कारण तुम्हारे वंशमें शचीपतिः कर्मणां पालकः। यद्वा शचीन्द्रस्य भार्या कोई भी राजा न होगा।' इसी यदुवंशमें यादवोंकी तस्या पतिर्भत विद्वान् सकलमपि जाननिन्द्रोऽपारयत्।। उत्पत्ति हुई थी। (भारत ११८५ अ०) अभिबैकाविकारयत् ।" ___ द्वापरयुगके शेषमें श्रीकृष्णने इस वंशमें जन्म लिया। उक्त मन्त्रभाष्यके तात्पर्यार्थ से स्पष्ट मालूम होता है, श्रीकृष्णने देहत्यागके पहले ब्राह्मणके शापसे इस मटु- कि महाभारतोक्त ययातिके शापसे यदुका लोप हुआ कुलको ध्वस होते देखा था। और भागवतपुराणके प्रमाणानुसार वे पुनः राज्याधिकारी विशेष विवरण यदुवंश शब्दमें देखो। हुए। यदु पहले पिताके शापसे राज्यभ्रष्ट हुए थे, पीछे २ राजा हर्यश्वके एक पुत्रका नाम । शचीपति इन्द्रको अनुकम्पासे वे पुनः राजसिंहासन पर (हरिवश ६३/४४) बैठे। अतएव महाभारत और भागवतोक्त असम्वन्ध | यदुध्र (स.पु०) पुराणानुसार एक ऋषिका नाम । . प्रयोग भ्रमात्मक नहीं है, यह वैदिक मन्त्रसे सिद्ध हुआ | यदुनन्दन ( स० पु०) यदुकुलके आनन्द देनेवाले, श्री. है। ययाति देखो। कृष्णचन्द्र। . महाभारतमें इनका विषय इस प्रकार लिखा है,- यदुनन्दन-एक प्रसिद्ध भक्त। ये पहले एक तार्किक थे। राजा ययातिकी पत्नी देवयानीके गर्भसे यदु और तुर्वसु उनकी उपाधि चूडामणि थी और ये शान्तिपुरके आस नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। ययातिके पुलोंमें यदु सवसे | पासके रहनेवाले थे। वड़ा था। . एक समय भकप्रवर हरिदास ठाकुर एकान्तमें बैठ शुक्रके शापसे ययाति बूढ़े हो गये। उन्होंने बड़े कर नाम जप रहे थे, उसी समय यदुनन्दन भी वहां लड़के यदुसे घुला कर कहा, 'शुक्रके शापसे मैं बूढ़ा और जा उपस्थित हुए। उन्होंने हरिदासको पागल कह कर . Vol Xlil, 122