पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४३३

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४३० यक्ष्मा पिताके समीप जा कर सारी. वात कह सुनाई। दक्ष चन्द्रमाके पास गये और उनसे बोले, 'तुमने सभी जब यह रोग चन्द्रमाके शरीरसे निकला तो ब्रह्माने . कन्याओंसे विवाह किया है, सभी तुम्हारी धर्मपत्नी हैं! निकाल लिया। इस रोगने ब्रह्मासे प्रार्थना की, 'मैं उन्हें बहुत कष्ट दे कर उनके शरीरसे सव अमृतको वाहर इनके प्रति धुरा वर्ताव करना उचित नहीं, सवोंके प्रति स्वच्छन्दतासे चन्द्रमाके शशेरमें रहता था। अब मैं क्या समान व्यवहार करना तुम्हारा धर्म है। अतएव जसे | करू' कहां आऊँ. मेरी वत्ति ज्या । करू', कहां आऊँ, मेरी वृत्ति क्या होगा, मेरों स्त्री भी वैसा ही करना।' चन्द्रमाने उस समय वोकार तो कर कौन होगी, आप कृपया बता दोजिथे ।' लिया; पर दक्षके चले जाने पर रोहिणी पर इतना तव ब्रह्माने यक्ष्मरोगसे कहा, 'जो ध्यक्ति दिन रात भासत हो गये, कि सवोंके प्रति समान व्यवहार न कर सभी समय रमणियों पर आसक्त हो, रतिक्रीड़ामें मग्न सके। पहलेकी तरह दिन रात केवल रोहिणोके ही पास रहता हो, तुम उसीके शरीरमें वास करो। जो श्यास- रहने लगे। रोग, काशरोग या श्लेष्मरोगयुक्त हो कर स्त्री-प्रसंग करे तव अन्यान्य पत्नियोंने पुनः पिताके पास जा कर तुम उसीमें प्रवेश करो । तृष्णा नामक मृत्युको कन्या चन्द्रमाका वह दुर्यवहार कह सुनाया। यह सुन दक्ष गुणमें तुम्हारे समान है वह स्त्री हो कर सदा तुम्हारी फिर चन्द्रमाके निकट आये और उन्हें अनेक प्रकारके | अनुगामिनी होगी। दुर्वलतो ही तुम्हारा कर्तव्य कम धर्मयुक्त वाक्योंसे सवोंके प्रति समान व्यवहार रखनेका होगा। तुम जिस शरीरमें रहोगे, उसको क्षीणता होगी, उपदेश दिया और यह भी कहा, कि तदनुसार वे यदि मैंने तुम्हारो वृत्ति स्थिर कर दी, अव तुम जहां चाहो, जा कार्य न करेंगे, तो उन्हें शाप दे दूंगा। चन्द्रमा दक्ष सकते हो। ( कालिकापु० १६,२० २१ म०) का उपदेश मान तो लिया पर रोहिणीके प्रेममें जरा "वेगरोधात् क्षयाचे व साइसाद्विष माशनात् । भी न्यूमता न दिखा सके। तव अन्यान्य पलियां प्राण त्रिदोपा जायते यक्ष मा गदो हेतुचतुष्ठयात् ॥" (चरक) त्याग करनेका संकल्प कर पिताक निकट गई और रोती मलमूत्रादिका जोरसे चलना, अतिरिक्त शुक्रक्षय, रोती बोली, 'चन्द्रमा आपको वात विलकुल हो न | साहस और विपम भोजन इन्हीं चार कारणोंसे त्रिदोष सुनेगा। अब हम लोगके जीनेको आवश्यकता नहीं। कुपित हो कर यमरोग उत्पन्न करता है। जितने प्रकार- हम लोगोंकी तपस्याका उपाय बता दें। हम तपस्या के रोग हैं उनमें यह रोग सबसे भयानक है। कर इस देहका त्याग करेंगो।' . __वायु, मूत्र और पुरुषादिका वेगसे चलना, मैथुन और दक्ष कन्याओंको इस प्रकार राती देख क्रोधसे जल लड्नादि धातुका क्षय होना, असङ्गत साहसिक कार्य उठे। उस समय उनके नासिकानसे रमणीसम्भोग- करना ( अर्थात् वलवानके साथ युद्धादि ) तथा विषमा- 'लोलुप, अधोमुख, निम्नदृष्टि, जगत्के कासोत्पाद , शन ( बहुत या थोड़ा अथवा अकाल भोजन ) इन्हीं चार भीपण यक्ष्मरोगको उत्पत्ति हुई। उसका मुखमण्डल कारणोंसे मानवोंको त्रिदोपज यक्ष्मरोग उत्पन्न होता है। । दद्राभीपण, वर्ण अङ्गारवत् कृष्ण, केश स्वल्प, आकृति | इसके सिवा और भी बहुतसे कारण हैं।

अति दीर्घ, कृश तथा शिराध्याप्त, हाथमें एक दण्ड था। इसकी नामनिरुक्ति-

. . इस रोगने जव हाथ जोड़ कर दक्षसे कहा, 'अभी . "वैद्ययाधिमतां यस्माद्व्याधिर्यत्नेन यक्ष्यते । मैं क्या करू, कहां जाऊ, कृपया कहिये।' तव दक्षने स यक्षमा प्रोच्यते लोके शब्दशास्त्रविशारदैः॥ उत्तर दिया, 'तुम अति शीघ्र चन्द्रमाके शरीरमें प्रवेश "राज्ञश्चन्द्रमसो यस्मादभूदेष किलामयः । • करो। तदनुसार यक्ष्म दक्षका हुक्म पा कर धीरे धीरे तस्मात्त रोजयतमेति प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ चन्द्रमाके शरीरमें घस गया । इस रोगके उत्पन्न होते क्रियाक्षयकरत्वात्तु आय इत्युच्यते बुधैः । ही राजा चन्द्रमामें लीन हो गये और इसीलिये संसारमें संशोषणाद्रवादीनां शोष इत्यभिधीयते ॥" (भावप्रकाश) यह रोग राजयक्ष्म नामसे प्रसिद्ध है। .. यक्ष्यते पूज्यते-