पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४१५

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म्लेच्छ राजा ययातिको आज्ञाका पालन न किया ता राजाने रानीके साथ जंगल भाग गये थे। वहां रानोके जव गभ क्रोधमें आ कर उन्हें शाप दिया। ज्येष्ठ पुत्र यदुको रहा, तब उसको सपत्नीने गभस्तम्भनके लिये उसे विष शाप मिला, कि तुम्हारे वंशमें कोई भी राजचक्रवत्ती न खिला दिया । उस विषके प्रभावसे गर्भस्थ होगा तथा तुर्वसु, दूह्य और अनुके वंशधर वेदमार्गविर- | चालक ७ वर्ष तक गर्भमे रहा । राजा बाहु हित म्लेच्छ होंगे। जो इस समय वृद्ध हो गये थे, और्च नामक ऋषिके किन्तु शब्दकल्पद्रुमका उक्त मतसमर्थक एक भी आश्रममे पञ्चत्वको प्राप्त हुए । कुछ समय बीत जाने पर वचन भागवत में देखने में नहीं आता। यदु, तुर्वसु वा राजमहिषीने विपके साथ एक अत्यन्त तेजस्वी पुत्र प्रसव द्रुह्यके सन्तान भ्लेच्छत्वको प्राप्त नहीं हुप और न एक किया। और्वने उस पुत्रका जातकर्मादिकार्य करके समय राज्यहोन ही हुए। यदि ऐसा होता, तो पुराणमे 'सगर' नाम रखा । उपनयनादि संस्कार हो जाने के बाद यादव आदि राजवंशोंका उल्लेख ही न रहना। यदु, और्वने उसे वेद, अखिलशास्त्र और भार्गवाख्य आग्नेय तुर्वसु, द्रुह्य और अनुके वंशीय राजाओं के नाम भाग शीय राजाओं के नाम भाग अस्त्रको शिक्षा दी, पीछे सगरजे जब मातासे इस वनवास- वतमें स्म स्कन्धके २३वें अध्यायमें वर्णित है। का कारण और पिताका नाम पूछा, तब उसने आद्योपान्त इन लोगोंके राज्यप्राप्तिके सम्बन्धमे भागवतमे इस सब कर सुनाया। इस पर सगरने क्रुद्ध हो कर पिता. प्रकार लिखा है- के राज्यापहरणकारियोंका वध करनेकी प्रतिज्ञा करके प्रायः सभी हैहयोंको मार डाला । शक, यवन, काम्बोज, "दिशि दक्षिणपूर्वस्या द्रुह्य दक्षिण तो यदुम्। प्रतीच्या तुर्वसु चक्रे उदीच्यामनुमीश्चरम् ॥२२ पारद और पलवोंने सगरसे आहत हो कर वशिष्ठको भृमण्डलस्य सर्वस्य पूरुमहत्तम विशाम् ।" (६।१६ अ०) शरण ली। अनन्तर वशिष्ठने इन लोगोंको जीवन्मृत- प्राय देत कर सगरसे कहा, 'वत्स! इन मरे हुएको . अर्थात् दक्षिण-पूर्वमें द्रुह्यु, दक्षिणमे यदु, पश्चिममे | मारनेसे क्या लाभ १ मैंने इन्हें तुम्हारी प्रतिज्ञाका पालन तुर्चनु और उत्तरमें अनु राजा बनाये गये थे। फिर भाग- करने के लिये अपने धर्म और ब्राह्मण संसर्गको छुड़ा दिया वतमें दूसरी जगह लिखा है, है। इस पर सगरने वशिष्ठदेवके कथनानुसार यवनों- "द्रुह्योश्च तनयो वभ्र : सेतुस्तस्यात्मजस्ततः । १४ को शिर मुड़ाने, शक को आधा शिर मुड़ाने, पारदोंको आरब्धस्तस्य गान्धारस्तस्य धर्मस्ततो धृतः। लवे लंबे केश तथा पहवोंको मूछ दाढ़ी रखनेको हुकुम धृतस्य दुर्मदस्तस्मात् प्रचेताः प्राचेतसं शतम् ॥१५ । दिया । इन सब क्षत्रियोंके अपने धर्मका परित्याग करनेले म्लेच्छाधिपतयोऽभूवन्नूदीची दिशमाश्रिताः ॥" (६/२३) ब्राह्मणोंने भी इन्हें छोड़ दिया । अतएव वे लोग मुच्छत्व अर्थात् द्रुह्यु के पुत्र वच, बभ्रुके सेतु, सेतुके आरब्ध, को प्राप्त हुए। तभीसे उनके वंशधर म्लेच्छ जातिमें आरब्धके गान्धार, गान्धारके धर्म, धर्मके धृत, धृतके / गिने जाने लगे। दुर्मद, दुमदके प्रचेता और प्रचेताके सौ पुत्र उत्पन्न हुए। मत्स्यपुराणमें लिखा है, कि स्वायम्भुव मनुके वंशमें इन्होंने म्लेच्छोंके अधिपति हो कर उत्तर दिशामें आश्रय | अङ्गा नामक एक प्रजापति थे। उन्होंने मृत्युको कन्या लिया था। सुतीर्थाको ध्याहा था जिसके गर्भसे वेन नामक एक पुत्र महाभारतके आदिपर्व ( ८५ अ० )-मे लिखा है, उत्पन्न हुभा, वह पुत्र अत्यन्त अधार्मिक था। महर्षियोंने ययातिके पुत्रोंके मध्य यदुके वंशमें यादव, तुर्धसुके वंशमे अधर्मके भयसे डर कर उसे अधर्मका त्याग करने के लिये यवन, द्रुह्यु के वंशमें भोज और अणुके वंशमें ग्लेच्छ बहुत अनुनय विनय किया, पर वेनने उनकी बात पर जाति उत्पन्न हुई है। कान नहीं दिया। इस पर महर्षियोंने उसे शाप दिया। विष्णुपुराणमे लिखा है, कि हरिश्चन्द्रवंशीय गजा वाहु, उसी शापसे राजाको मृत्यु पुई। अनन्तर ब्राह्मणोंने हैहय, तालजङ्क आदि क्षत्रियोंसे परास्त हो कर अपनी । अराजक भयसे भयभीत हो इसको देहको मथ डाला