पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३९८

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सुखी है। मोहन-मोहनलाल ३६५ । लखनऊ राजसरकारमें काम करके सभी प्रायः भूसम्पत्ति उनके पुत्रों में वट गई : इससे अधिकारियोंको भिन्न भिन्न स्थानमें जा कर रहना पड़ा। १८८२ ई०में मोहन-अयोध्या प्रदेशके खेरो जिला और नेपालराज्यके । ठार उमेशसिंहले मरने पर उनके लड़के ठाकुर हिम्मत- मध्य हो कर प्रवाहित एक छोटी नदी । पहाड़ी स्रोत- सिंह सामन्त पद पर अधिष्ठित हुए। ये लोग परमार रूपमें निकलो हुई करना और गन्धार शाखाके जलप्रवाह- राजपूतवंशके रेहवाड़ शाखाके अन्तर्भुत हैं। वड़ोदा- से पढ़ कर चन्दनचौकीके उत्तर नदी रूपमें वह गई है। राज, इदरराज और अगरेजराजको ये लोग कर देते हैं। पीछे रामनगरके उत्तर कोरियाला नदीमें आ कर मिलती २ उक सामन्तराज्यका प्रधान नगर। हैं। इस नदीमें महाशिर मछली पाई जाती है। मोहनभट्ट-एक भाषाकवि । ये वांदाके रहनेवाले थे। मोहन–पञ्जावके वुसहर राज्यके अन्तर्गत एक गिरि इन्हींके पुत्र प्रसिद्ध पद्माकर कवि थे। ये पहले वुन्देला दुर्ग। यह अक्षा० ३१ २६ उ० तथा देशा० ७८.१६ पा-नरेशक दरवारमें थे। तदनन्तर जयपुरके महाराज पू०के मध्य अवस्थित है। यहां वद्रीनाथका एक प्रसिद्ध सवाई प्रतापसिंह और जगत्सिंहके दरवारमें रहे। इनकी मन्दिर है। कापता बहुत सरस और मधुर होती थी। मोहनऔरस-उनाव जिलेकी मोहन तहसीलके अन्तर्गत मोहनभोग (सं० पु० ) मोहनश्चासौ भोगश्चेति । १ एक एक.परगना । सई नदीके किनारे अवस्थित मोहन नगर! प्रकारका हलुआ । बनानेका तरीका-सूजीको धीमें इसका बाणिज्यकेन्द्र है। अच्छी तरह भून कर उसमें जल या दूध और चीनी मोहनगा-अयोध्याप्रदेशके रायबरेली जिलान्तर्गत दिग्वि-! डाले। अच्छी तरह पाक हो जाने पर उसमें कपूर और जयगा तहसीलका एक पहला और बड़ा गांव । यहां इलायचीका चूर छोड़ दे। यह खानेमें सुस्वाद और स्थानीय अनाजका जोरों कारोवार चलता है। ' वलर है । (पाकराजेश्वर ) २ एक प्रकारका केला।३ मोहनगा-वाराणसी जिलेका एक प्राचीन नगर। एक प्रकारका आम । मोहनचान्दवसु-एक सुप्रसिद्ध सङ्गोत-विशारद । कलकत्ते- मोहनमाला (सं० स्त्री० ) सोनेको गुरियों या दानेकी वनी: के अन्तर्गत पसुपाड़ामें इनका घर था। इनका चलाया, हुई माला। हुआ हाफ-आखड़ाई सङ्गीतके सुर जनसमाजमें बहुत मोहनलाल-बालवोध नामक व्याकरणके प्रणेता। इनके प्रसिद्ध है। यह सुर गायकसमाजमें 'मोहनचान्दसुर' पिताका नाम हीराधर था। कहलाता है। | मोहनलाल-बंगालके नवाव सिराजुद्दौलाके एक विख्यात मोहनदास-पदके रचयिता एक वैष्णव कवि । श्रीनिवास हिन्दू सेनापति । ये दीवान-इ-आला थे। वाद उसके आचार्य प्रभुके शिष्य थे, इस कारण कवि मोहनदासको मादर उल-मोहन अर्थात् प्रधान मन्त्री हुए। नवावको उनका समसामयिक व्यक्ति कहने में कोई आपत्ति नहीं।। आज्ञासे ये राजकीय विभागके प्रत्येक कामकी देख- मोहनदासमिश्र-हनुमत्कृत महानाटकके टीकाकार। भाल करते थे। महाराजको उपाधि और उसके साथ मोहनपण्डित-तककौमुदीटोकाके रचयिता। वादशाहो प्रथाके अनुसार नाकड़ा और भालरदार मोहनपुर-वम्बईप्रदेशके महीकाण्ठा पोलेटिकल एजेन्सी पालको व्यवहार तथा पांचहजारी मन्सवदारी इत्यादि के अधीनस्थ एक सामन्तराज्य । यहांके सरदार आवू | इन्हें मिली थी। मोहनलालका सर्व व्यवहार और अत्य- पर्वत सन्निहित चन्द्रावतीके राववंशसे उत्पन्न हुए धिक उन्नति ही सिगजके अधःपतनका मल था। हैं। उस शके यशपाल नामक एक राजपूत १२१७ ई०में | १७५७ ई०के पलासी-मैदानमें बंगाली वीर मोहन- चन्द्रावतीसे हटोल नामक स्थानमें आ कर बस गये। लालने अपनी वीरताका पूरा परिचय दिया था। यहां तेरह पोढ़ो रहनेके वाद ठाकुर पृथ्वीराज धोर-सिराज जिस समय राजमहलमें पकड़े गये उसी समय वाड़ामें अपना घर उठा लाये । उनकी जागीर आदि । मोहनलाल भी भगवान्गोलामें पकड़े गये थे। वादमें