पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३८३

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३८० मोटकी-पोड़ उसके बीच जो पेंच दिया जाता है उसीको मोटक मोटाता (हिं कि०) १ मोटा होना, स्थूल काय .. कहते हैं। जाना।२ धनवान हो जाना । ३ अहंकारी हो जाना, २ पद्यावलोधृत एक कवि। अभिमानी होना। मोटको (सं० स्त्री०) मोटक ङीष् । एक रागिणीका नाम । मोटापन ( हिं० पु० ) मोटाई, स्थूलता । मोटापन । मोटन (सं० क्ली० ) मुट-ल्युट् । १ चूणीकरण, पीसना । मोटाया ( हिं० पु०) मोठे होनेका भाव, २ आक्षेप। ३ वायु, हवा। | मोटिया ( हिं० पु० ) १ मोटा और खुरखुरा देशो कपड़ा, मोटनक (सं० क्लो०) एक वर्णवृत्त। इसके प्रत्येक चरणमें | खहड़ । २ योझ ढोनेवाला, कुली; मजदूर। . एक नगण, दो जगण, और अन्तमें एक एक लघु गुरु | मोटायित (सं० क्लो० ) मुट-भावे घम वाहुलकात् धनस्तु कुल मिला कर ११ अक्षर होते हैं। ततो भृशादित्वात् क्यङ, ततो भाव-क्त । स्त्रियोंके मोटर (१००)१एक विशेष प्रकारकी कल या यन्त | स्वाभाविक दश प्रकारके अलंकारों से एक अलंकार । जिससे किसी दूसरे यन्त्र आदिका संचालन किया | इसका लक्षण- जाता है, चलनेवाला यन्त्र। २ एक प्रकारकी प्रसिद्ध । "कान्तस्मरणवार्तादौ हृदितद्भावभावतः । छोटी गाड़ी। यह इस प्रकारके यन्त्रकी सहायतासे प्राकट्यमभिलायस्य मोट्टायितमुदीर्यते ॥" चलती है। इस गाड़ीमें तेल आदिको सहायतासे (उज्ज्वल-नीलमणि) चलनेवाला एक जिन लगा रहता है जिसका सम्बन्थ सखी आदिके निकट नायककी कथा आदि उपस्थित उसके पहियोंसे होता है। जब इंजिन चलाया जाता है होने पर उससे अवहित चित्त दत्तकण नायिकाके चित्ता- तव उसकी सहायतासे गाड़ी चलने लगती है। यह भिलाषकी जो अभिव्यक्ति होती है उसीको मोट्टायित गाडी प्रायः सवारी और बोझ ढोने अथवा खींचनेके कहते हैं। इन नायिकाओंका एक स्वाभाविक अलंकार है। काममें आती है। मोठ (हिO स्त्री.) मूगको तरहका एक प्रकारका मोरा मोटरी (हिं० स्त्री०) गठरी। अन्न । इसे घनमूग भी कहते हैं। यह प्रायः सारे भार- मोटा (सं० स्त्री० ) १ छोटी वलाका पेड़। २ जयन्ती।। तमें होता है। इसकी बोआई ग्रीष्म ऋतुके अन्त या २ चुक्र, चूकाका साग। वर्षाके मारंभमें और कटाई खरोककी फसलके साथ मोटा (हिं० वि०) १ जिसके शरीरमें आवश्यकतासे अधिक जाड़े के आरम्भमें होती हैं। यह बहुतही साधारण मांस हो, जिसका शरीर चरवी आदिके कारण बहुत फूल कोटिकी भूमिमें भी बहुत अच्छी तरह होता है और प्रायः गया हो । २ जिसका घेरा या मान आदि साधरणसे | वाजरेके साथ वाया जाता है। अधिक वर्षासे अधिक हो । ३ जिसको एक ओरकी सतह दूसरी ओर यह खराव हो जाता है। इसकी फलियोंमें जो की सतहसे अधिक दूरी पर हो, दलदारा। ४ जो खुद दाने निकलते हैं, उनकी दाल वनती है। यह दाल चूर्ण न हुआ हो, दरदरा । ५ वढ़िया या सूक्ष्मका उलटा, साधारण दालोकी भात खाई जाती है और मन्दाग्नि घटिया।६ साधारणसे अधिक, भारी या कठिन । ७ अथवा ज्वरमें पथ्यकी भांति भी दी जाती है । वैद्यकमें इसे जो देखने में भला न जान पड़े, बेडौल । ८ घमंडी, अहं गरम, कैसैली, मधुर, सीतल, मलरोधक, पथ्य, रुचिका- कारी । (पु०) ६ मखां जमीन, मार ।१० वोझ, गट्ठर।। रक, हलकी वादी, कृमिजनक तथा रक्त पित्त, कफ, मोटाई (हिं० स्त्री० ) १ मोटे होनेका भाव, स्थूलता। वाव, गुदकोल, वायुगोले; ज्वर, दाह और क्षयरोगकी नाशक माना है। इसकी जड़ मादक और विषैली २ शरारत, बदमाशी। मोटाकोटनी-वम्बई प्रदेश महीकांटा एजेन्सीके अन्त होती है। एक देशीय सामन्तराज्य । यहांके सरदारोंको राजकर मोठस (हि०वि०) मौन, चुप । नहीं देना होता है। मोड़ (हिं० स्त्री०) १ रास्ते आदिमें घूम जानेका स्थान,