पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५७

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३५४ मैस्मेरतत्त्व विश्रामभवन भी कहलाता था। महलके अन्दर जितने | और दृढ़तापूर्वक इसे एक वैज्ञानिकतत्त्व प्रमाणित कर कमरे हैं सभी ऐतिहासिक घटनाके अच्छे अच्छे चित्रों दिया। सजे हुए हैं। फिर राज-उपभोगके लायक उनमें अनेक से असवाव भी देखे जाते हैं। इसकी वगलवाला उद्यान उन्होंने अपने उद्भावित इस भौतिक व्यापारका निदान और कुञ्जवन बड़ा ही चित्ताकर्षक है। नगरके पूर्णभाग- स्वरूप एक काल्पनिक प्रतिनिधि ( agent ) या जन्य- में पुराना रेसिडेन्सी महल है। उसमें अभी सेसनकोर्ट पदार्थ स्वीकार कर लिया है। पश्चात् उस सर्वव्यापी लगती है। उसके दक्षिण-पूर्नमें सर जेम्स गार्डनका प्रतिनिधि शक्तिको मूल उपादान कर उन्होंने अपने वैज्ञा- नाया हुआ वर्तमान रेसीडेन्सी प्रासाद है। ऊंची निक तत्त्वका इस प्रकार तक किया है। वे कहते हैं,- भूमि पर होने के कारण इस प्रासाद परसे समूचा नगर 'जीव देहगत चुम्वकाकर्षणी शक्ति सम्पूर्ण जगत्में रसा- कारमें व्याप्त है। आकाशस्थ ग्रह नक्षत्रादि, पृथिवी दिखाई देता है । कर्नलवेलेस्ली (ड्यूक आव वेलिङ्गटन)- तथा जीवजगत्में परस्पर गक आन्तर्जातिक प्रभाव ने अपने रहनेके लिये जो मकान बनवाया था उसमें अभी विद्यमान रखनेके लिये यह शक्तितरंग सहयोगिता दीवानी अदालत वैठती है। (Medium) करती है। यह प्रवाह अविरामगतिसे चलता मैस्मेरतरव-भौतिक क्रियाके जैसी एक प्रकारकी क्रिया । रहता है, किसी क्षण उसका रोध नहीं होता, अतएव जिस शास्त्र द्वारा कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्तिका उस शक्ति-प्रवाहके ह्रासके वाद पुनरुत्पत्तिकी सम्मा- शरीर स्पर्श कर अथवा उसके शरीर पर हाथ फेर कर वना नहीं रहती। यह ऐसा सूक्ष्मतम है, कि जगत्के या अगुलिसंचालन द्वारा उसके चित्तको अपने एकाग्र- सूक्ष्मसे भी सूक्ष्म किसी वस्तुके साथ इसकी तुलना चित्तके जैसा या अपने अभिमतके अनुवर्ती करने में समर्थ नहीं हो सकती। किन्तु यह शक्तिप्रवाह प्रकृतिमात्रका होता है उसे मैस्मेरतत्त्व ( Meesmerism ) कहते हैं। आकार धारण, विवद्धन और संवहन ( receiving, यह कार्य शरीरस्थ चौम्बिक-प्रवाहका (animal ma- propagating, commnicating all the impress. gnetism) केवल संकर्षणविकर्षण है। प्रसिद्ध फ्रेंच ions of motion) करने में समर्थ हैं और इसका भी वैज्ञानिक और चिकित्सक फ्रेडरिक एन्टन मेस्मेर ज्वार भाटा अर्थात् ह्रासद्धि ( Susceptible of flux साहवने इस विज्ञानका आविष्कार किया था। इसीलिये and reflux ) होती है। उनके नाम पर यह नया विज्ञान मैस्मेरतत्त्व हुआ है। जीवदेह मात्र इस प्रतिनिधिकशक्तिस्रोतके कार्य: . किस वैद्युतिक शक्तिसे आत्मविभ्रमरूप यह चित्त- कारणके सम्बन्धाधोन अर्थात् इसका कार्याफल उपलब्ध विकृति और वाह्यसंज्ञालोप होता है तथा शारीरतत्त्व करनेमें समर्थ है। जोवदेहके स्नायुमूलमें ( into the ( Physiological), निदानशास्त्र (Pathological) substance of the nerves) स्वतः उद्विक्त हो कर और आत्मविज्ञान (Psychological) तत्त्वका निदान- भूत जो मैस्मेरिक व्यापार देखने में आता है, उसके वास्त- यह स्रोत शीघ्र ही स्नायुमण्डल पर आक्रमण करता है | अर्थात् समग्र स्नायुमण्डलमें फैल जाता है। विक कारणका आज तक निरूपण न हो सका है। जो | विशेष परीक्षासे जाना गया है, कि मनुष्य शरीरका हो, इसके द्वारा मनुष्य-शरीरसे एक ऐसे तत्त्वका प्रवाह } उत्पन्न किया जा सकता है जिससे आश्चर्यजनक काय्य यह शक्तिप्रवाह चुम्बकके अनुरूप गुणविशिष्ट होता है। एवं इसके मध्यगत परस्पर विभिन्न और सम्पूर्ण पृथक हो सकते हैं। यह बात नहीं है, कि म स्मेर साहवके आविष्कारके | प्रकृतिकी शक्तिपरम्पराका अनुधावन करनेसे स्पष्ट मालूम होता है कि जैसे दो विशिष्ट केन्द्रोंसे ऐसे विभिन्न पहले इस शास्त्रका लोगोंको कुछ ज्ञान ही न था, परन्तु | यह कहा जा सकता है, कि उक्त चिकित्सक महोदयने | भावापन्न स्रोत नियमितरूपसे परिचालित होते हैं । इस इस शास्त्रको शङ्खलावद्ध विज्ञान के रूपमें लोगोंको दिया | जैविक चुम्वकशक्तिके कार्या और गुण, सजीव आर