पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४८ थे। २री सदीमें जैनधर्म का परित्याग कर उन्होंने । था। १५६५ ई० में दाक्षिणात्यके प्रसिद्ध चार शाही सनातन हिन्दूधर्म का आश्रय लिया था। .. वंशोंने मिल कर विजयनगराधिप रामराजको तालि- पूर्व-महिसुरमें सुप्राचीन पल्लववंशीय राजे राज्य | फोटको लडाईम हराया और मार डाला। उनके वंश- करते थे। वे ७वीं सदीमें चालुक्य राजाओंसे परास्त धरगण दक्षिण भाग गये और वहां कमजोर होने पर होने पर भी १०वीं सदी तक शत्रुपुञ्जके विरुद्ध डटे रहने- भी पहले पेनुगोण्डामें और पीछे चन्द्रगिरिमें राजपाट से बाज नहीं आये। वसाया। यहां रह कर उन्होंने कुछ समय तक विजेता ___ चालुक्योंने ४थी सदीमें यहां आ कर अपना प्रभाव मुसलमान-राजाओंके विरुद्ध हथियार उठाया था। फैलाया। १२वीं सदी तक वे पूर्ण प्रतापसे यहांका | पेनुकोण्डाके नरसिंहवंशके अन्तिम राजाको शासन- शासन करते रहे। अन्तिम सदीमे चल्लालवंशीय ,प्रभावमें जब शिथिलता आ गई तव स्थानीय पलिगार- सरदारोंने चालुक्यराजको परास्त कर उनका राज्य | सरदार स्वाधीन होनेको कोशिश करने लगे। इस हडप कर लिया। चोल और कलचूरी राजाओंने भी | समय दक्षिण महिसुरके उदैयारों, उत्तरमें फेलडीके यहां कुछ समय तक राज्य किया था। नामको पश्चिममें बलम ( मञ्जरावाद ) के नायकों ये हयसाल वल्लालवंशीय राजे जैनधर्मावलम्बी, वीर तथा चित्तलदुर्ग और तारिकेरके बेदर-सरदारोंने जब और उन्नतत्रेता थे। वे वर्तमान सीमान्तभुक्त समस्त देखा, कि नरसिंहके राजप्रतिनिधि तिरुमलको शक्ति महिसुरप्रदेश तथा कोयम्बतोर, सलेम, धारवाड़ आदि कमजोर हो गई है, तब उन्होंने मिल कर १६१० ई में राज्योंके कुछ अंशको जीत कर शासनकाय चलाते उदैयरको अधिनायकतामें श्रीरङ्गपत्तन दुर्गको आक्रमण थे। १६१० ई० तक उन्होंने द्वारसमुद्र (द्वारकावतो | और फतह किया। तभीसे मैसूरमें उदैयारके राजव'शकी पत्तन वत्त मान हलेवीड) में राजपताका फहराई थी। प्रनिष्ठा हुई। उसी साल दिल्लीश्वर अलाउद्दीनके विख्यात मुगल ___उक्त उदैयारके राजा विजयराजसे नौ पीढ़ो नीचे सेनापति मालिक काफूर जव दाक्षिणात्य जीतनेको माया | थे। प्रवाद है, कि भाई कृष्णराजके साथ विजयराज तब उसने बल्लालराजको हराया और कैद किया तथा अपनो जन्मभूमि सौराष्ट्रके अन्तर्गत द्वारकासे १३६६ ई. उसके राज्यको अच्छी तरह लूटा। उसके १६ वर्ष में दाक्षिणात्य आये। ये लोग यादववंशीय क्षत्रिय थे। बाद महम्मद तुगलकके भेजे हुए मुसलमान सेनादलने विजयनगरके राजवंशके गौरव रविका दाक्षिणात्य- द्वारसमुद्रको तहस नहस कर डाला। आज भी हय- | गगनमे पूर्ण रूपसे उदय होने पर इस यादववंशने सालेश्वरका शिल्पमण्डित देवमन्दिर प्राचीन समृद्धिका | वोरताको पराकाष्ठा दिखलाई थी। तदनुसार राजाके परिचय देता है। इसके सिवा कुछ जैन और हिन्दू अनुग्रहसे उन्होंने हदनीस नामक स्थानका सामन्तपद मन्दिर प्राचीन जैन और हिन्दूयुगकी प्रधानता घोषित | प्राप्त किया। राजा उदैयार द्वारा श्रीरङ्गपत्तन अवरुद्ध करते हैं। होनेके पहले यादव सरदारोंने पुरगढ़ नगरमें एक. दुर्ग हसाल-वल्लालव'शकी अवनतिके साथ साथ | बना कर उसका महिषासुर वा महिसुर नाम रखा । दाक्षिणात्यमें तुगभद्रा तीरवत्ती विजयनगरमें एक और महिषमर्दिनीको महिसुर-राजवशकी कुलदेवी देख कर हिन्दु राजवंशका अभ्युदय हुआ। १३३६ ई० में वरङ्गल अनुमान होता है, कि यादवगण महिषासुर निधन- राजके हुक्क और बुक्क नामक दो प्रधान कमचारीने | कारिणी चामुण्डादेवीके विशेष भक्त थे। देवीके प्रति विजयनगर आ कर राजपाट बसाया। हुक्क हरिहर · भक्तिवशतः ही वे लोग देवी नामके पक्षपाती हुए थे। श्रीरङ्गपत्तनमें उतैयारराजवशको राजधानी स्थापित नाम धारण कर सिंहासन पर बैठे। उसका प्रतिष्ठित | - यह राजवंश नरसिंह' वंश नामसे प्रसिद्ध हुआ । मुसल- होने पर भो इतिहासमें उन्हें प्रकृत महिसुरका राजा मान ब्राह्मनी राजवंश इस हिन्दूराजवंशका चिरशत्रु | बतलाया है। राजा उदैयार द्वारा श्रीरंगपत्तन विजयके