पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३४०

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मैदा ३३७ उत्तापकी वृद्धि होती है, उसको दूर करनेके लिये पत्थरके। कलें हो गई हैं। इस तरह तो आटा पीसनेकी वर्ड तरह- सैकड़ोंमें छिद्र किये जा कर वाहरसे हवा पहुंचाई जाती | को चक्रियां और कलें तय्यार हुई है, किन्तु दो तरहकी है। यह रोलर भी ऐसे ढङ्गसे बनाये गये जिससे | कलोंके पीसे हुए आटेका बड़ा आदर है। एक चक्की; उत्तापके मारे आटा जमने नहीं पाता। सिवा इसके (Grind stone) वा दूसरी रोलमिल (Roller mill) का । इससे गेहूं इस तरह पिस जाता है, कि उसकी भूसीमें जरा यह मैदा विविध देशोंमें विविध नामाले परिचित है। भी आटा नहीं रह जाता। और फिर मैदा चाल कर फ्रान्सीसी इसे rleur de farine, जर्मन-Feines mehl जो भूसो वचती है, उसको फिर एक बार कलमें देते हैं। Sammel mehl कहते हैं। हिन्दी में-आटा, मैदा, पिलान; इस बार भूप्ती रह ही नहीं जाती। यह बहुत वारीक | मलयमें-तपुङ्ग, पुलुर ; पुर्तगालीमें--Florde Farine; हो कर मैदामे मिल जाती है। इस कलमे प्रति क्वार्टर | संस्कृतमें-गोध्मपिट, समिता, समीद; सिंहली-भापामे- गेहू से अन्यान्य कलोंकी अपेक्षा प्रायः एक शिलिङ्ग मूल्य विंगुपि तामिल भाषामें-गोदश्व मत्रु : तेलगुमें-गो. का अधिक आटा तय्यार होता है। साइलस् एण्टो धूम पिण्डी; इटलोमें -लेमोलिना, बंगालमें-~गोधूमपिष्ठ, फ्रिकसन कोर्न मिल ( Schicles Antitriction corn- आटा. मैदा, सूजी नामसे यह प्रसिद्ध है। चालनीसे mill ) न्यूजपृष्ठ (conrex ) और दूसरा कुब्जपृष्ठ प्रस्तर छाने हुए साफ वारीक अंशको मदा कहते हैं। इसी खण्ड गठित है। सिवा इसके फ्रान्सदेशवासी | तरह चावल पोस कर भी मैदा तय्यार करते हैं ! वंगला Falguiere और M. D. Arblay ने भी खतन्त्र रूपसे में इसे सफेदा और हिन्दीमें चौरठ कहते हैं। कहीं कहीं मैदा पीसनेकी एक कल तैयार की है। इसके लिये | मैदाके बदले यहो चौरठ व्यवहार होता है। सिवा का साधारणके ये बड़े ही धन्यवादाह है। इसके रोगियोंके खानेके लिये जौ, साग, आरारोट, सन् १८५५ ५६ ई में विख्यात क्रिमियाके युद्धके शाठी, सिंघाड़े से भी आटा तय्यार होता है। केला, कन्द समय ब्लाक लावा समरमे भरेज सरकारने ब्रजर आदिका भी आटा बनता है, किन्तु बहुत कम । और एकान्तान्स नामक दो टोमरों में आटा पीसनेकी कल __ भारतीय चावलकी तरह गेहूं ( Wheat ) या मैदा भेजी थी। यह कल इसीनियर मिष्टर फेअर वेअरनके ( leal of wheat-flour) भी एक वाणिज्यकी सामग्री यत्नसे टोमरोंके पञ्जिनस परिचालित हुई थी। इससे है। बहुत दिनोंसे गेहूं का व्यवसाय चला आता है। प्रति घण्टा वीस वुसल तथा दिन भरमे २४ हजार | युरोप अमेरिका, भारत, चीन, ब्रह्म, जापान, आदि देशोंमें पाउण्ड आटा तैयार होता था। प्रायः सर्वत्र ही गेहूं की खेती और उसका ध्यवसाय ____ सन् १८५६ ई०मे पहले ब्लाकलावाके निकट व इजर होता है । भारतीय आयुर्वेदमें भी इसका नाम आया है। मैदा पांसने लगी। इससे नित्य १८ हजार पाउण्डमा भावप्रकाशमें गेहूं की उत्पत्ति आदिका पूर्ण विवरण अरेजीसेनाके भोजनके लिये तय्यार होने लगा। यह लिखा हुआ है। गोधूम देखो। टीमर वहां तीन महीना टिका रहा। कुल १८ लाख प्राचीन हिन्दू भी गेहूं पीस कर आटा तय्यार करना पाउण्ड गेहूंसे १३३० हजार पाउण्ड मैदा तयार किया जानते थे। भावप्रकाश, अभिधान चिन्तामणि, राज- गया और वाकी गेहूं भूसी आदिके रूपमें चला गया। निर्घण्ट, आदि वैद्यक प्रन्थोंमें 'समिता' शब्दमें मैंदेका गेहका दाम तथा पिसाईकी मजदूरीका हिसाव लगा कर उल्लेख है,- देखा गया तो आधे सेर आटेमे सरकारका एक पेनी "गोधूमा धवला धौतोः कुट्टिताः शोषितास्ततः। खर्च पड़ा। त्रुइजर टोमरते आटा पोसा गया और प्रोक्षिता यन्त्रनिष्पिष्टा श्चालिताः समिताः स्पृताः। इधर एवाडंस धीमरसे रोटियां तय्यार कर सेनाओंको ( राजनिर्घएट) दो जाने लगी। इससे स्पष्ट हो मालूम होता है, कि उस समयके वर्तमान युगमें प्रायः सभी देशोंमें मैदा पोसनेको मनुष्य गेहूं धो कर, कूट कर, सुखा कर यन्ससे पीस कर Vol XV111,85