पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३३९

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मैथुन्य-मैदा "आचामादेव भुक्त्वान्नं स्नानं थुनिनः स्मृतम् ।" तय्यार की है, जिसको अगरेजोमें Flour-mill कहते (मनु ५।१४४ ) | है। इसके द्वारा आटा जाँतेको अपेक्षा सरलतासे पीसा मैथुन्य (सं० वि०) मैथुनमें हितकर, गान्धव विवाह। | जाता है। "गान्धर्वः स तु विज्ञेयो मैथुन्यः कामसम्भवः।" इस कलका पीसा आया तीन तरहका होता है। (मनु ३६३२ )। यह १, २ और ३, नं०के नामसे विख्यात है। आटेके मैदा ( फा० पु० ) गेहूंका चूर्ण।। व्यवसायी पीसनेके पहले आटेके बीजोंके पुष्टापुष्टका इस देशमें मैदाके नामसे प्रसिद्ध है। यह सारे विचार करते है। पुष्ट गेहूके दानेका आटा अच्छा होता संसारमें प्रधान खाद्यके रूपमें व्यवहृत होता है । आकार- है। पतले या अपुष्ट गेहूं का आटा उतना अच्छा नहीं भेदसे यह चार तरहका होता है। (१) बहुत बारीक | होता। मैदा, (२) अपेक्षाकृत मोटा आटा और (३ . इससे | गेहूं पोसनेके पहले उसको अच्छी तरह चुन लेते मोटा रानजी तथा (४) एक तरहका भूसी मिला हुआ | है। पहले इसके साथ मिले हुए अन्य दानोंको झरना- आटा। ये चार तरहके आटा हमारे नित्य व्यवहारकी से अलग कर देते हैं। इसके बाद इसमें जो मट्टी लगो सामग्री हैं। देशो आहारीय द्रव्योंमें जितने पक्कान्न या रहती है, उसको निकालनेके लिये इसे खूब अच्छी तरह मिष्टान्न तय्यार होते हैं, वे प्रायः सभी मैदाके संयोगसे धोत और फिर सुखाते हैं। कहीं कहीं सूर्यतापके प्रस्तुत होते हैं। आटेसे केवल रोटियां तय्यार होती अभावमें यन्त्रसे निकली हुई भापसे सुखाते हैं। है। सूजीस हलवा तैयार होता है। कभी कभी सूजीको ___ पहले यूरोप महादेशके विविध देशोंमें जातका बहुत रोटी भी बनती है। प्रचार था, जैसे हमारे यहां अव भी हैं। उन्नतिशील गेहू पोसनेके लिये चक्की या जातका व्यवहार किया | जातियां उन्नति पथका लक्ष्य रख उक्त यन्त्रके अविष्कार जाता है। इस जाँतका आकार गोल और थालीकी तरह करने में लगी हुई थीं। वे लोग पहले मनुष्यके परिश्रम चिपटा पत्थरसे तय्यार किया जाता है । इसके दो दल को लाघव करनेके उद्देश्यसे (Wind-mill ) वायुयन्त्रसे होते हैं। उनमेंसे एक दल नीचे जमीनमें गाड़ दिया | जांता चलाने लगे । इस तरह एक मिनट में १ सौ या जाता है। इन दलोंमें जो छेद रहता है, उनमें एक किल- १२० वार जाँत चलाने लगा। हाथसे जांता चलानेको के साथ निचला दल जमीनमें गड़ा रहता है । ऊपरके , अपेक्षा इसमें बड़ी सुविधा हुई । किन्तु इसमें एक खराश दलमें एक काठका टुकड़ा जिसको हत्था कहते हैं, ठोक पैदा हो गई। वह यह कि अधिक तेजीसे चलनेसे दिया जाता है। इसी हत्थेको पकड़ कर इसे चलाया जात तापकी वृद्धि हो कर आटा जातेमें सट जाता था। इससे है। इन दोनों दलोंमें लोहेको छेनीसे दांव निकाल दिये मैदेकी बड़ी हानि होने की सम्भावना हुई। जाते हैं, इससे इसमें डाला हुआ गेहूं चूचिचूर्ण हो । इस असुविधाको दूर करनेके लिये कलकी ओर जाता है। इसके बाद इसको चालनसे छान लेते हैं। लोगोंकी दृष्टि गई। जांतमें भाटा सटने न पावे इसके क्रमसे मोटे पतलेका विभाग किया जाता है। बहुत पतले लिये वहांके वैज्ञानिक धुरन्धर बद्धपरिकर हुए। भागको मैदा और उससे मोटेको आटा और उससे भी काकेरिन, गर्डन टेलर, वभिल, पिसेल मालेलन, वैक्स, मोटेको सूजी कहते हैं। इसके छाननेसे चालनमें जो गुडियर, वेष्ट्रप, सगाइलर, वल्क, सियली हारउड ह्वाइट वच जाता है, वह चौकर या भूसी कहलाता है। आदि विज्ञानविद् इसकी खोज में लगे। वडिल साहवने जाँतका पीसा हुआ आटा सब तरहके आटोंसे | उत्तप्त वायु द्वारा वीज गरम करनेका यन्त्र आविष्कार किया। उत्तम और पुटिकर है। किन्तु इस समय जाँतेसे पीसे महात्मा हाइटने देशो चर्खा प्रथासे गोलाकार पत्थरके आटेका प्रचार बहुत कम दिखाई देता है । यूरोपीय, टुकड़ोंसे आटा पीसनेका उपाय निकाला। उन टुकड़ों- को रोलर कहते हैं । इन रोलरोंके संघर्षणसे जो वणिक-समितिने भाटा पीसनेके लिये एक आटाको कल