पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३२३

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शनि देखे तो चौरघातक, अतिशय शूर, निर्दय, नोच स्त्रो, सुख और मानहोन, दीन,पराकांक्षी और मलिन वेशधारी: पर बासक्त और स्वजनविहोन होता है। बुधके देवनेसे मूर्ख, प्रगल्भ, अनार्य मावसम्पन्न, अवि- मेषराशिमें बुध रहे, तो मनुष्ण विग्रहप्रिय, अनवेत्ता, | नयो. चौर, नोच प्रकृतिका और क्रूर ; वृहस्पतिके देखनेसे अतिशय चतुर, प्रतारक, सर्वदा चिन्तान्वित, अत्यन्त विनयी, सुदेह और बहुपुन ; शनिके देखनेसे अतिशय कृश, संगीत और नृत्यकर्म में रत, असत्यवादो, रतिप्रिय, मलिनदेह, लोकसेवक और चोर होता है। मेषराशिमें लिपिवेत्ता, मिथ्यासाक्ष्यदाना, बहुभोजनशील बहुश्रमो- शनि रहनेसे व्यसनी, वन्धु पो, आलसी, निष्ठुर, निन्दित त्पन्न, धनधान्य-विनाशकर, अनेक बन्धनभोगी, रणमें कर्मकारी और निधन हुआ करता है। अस्थिर और बञ्चक होता है। इस बुधको सूर्य देखे तो यह शनि रविसे देखे जाने पर कृषिकर्ममें निरत, सत्यवादी, सुखी. राजसम्मानित और बन्धुप्रिय तथा धनवान , गो, मेष और महिषयुक्त तथा पुण्यात्मा; इस बुधको चन्द्र देखे तो युवतियोंका चित्तहारी, सेवक, | चन्द्रमाके देखनेसे चंचलस्वभाव, नीच प्रकृतिका, दुःखी, मलिनदेह और गतिशोल ; मंगल देखे तो मिथ्याप्रिय, दीन ; मङ्गलके देखनेले प्राणिवधपरायण, क्षुद्र प्रकृतिका, सुन्दरवाक्य और कलहयुक्त, पंडित, प्रचुर धनवान्, | चोरका सरदार, यशस्वी, मांस और मद्यप्रिय ; बुधके भूमिप्रिय और शूर' ; बृहस्पति देखे तो सुखो, प्रभूत धन देखनेसे मिथ्यावादी, अधी, वाचाल, चोर यथेच्छा- वान् तथा पापात्मा ; शुक्र देखे तो नृपकार्यकारी, सुभग, चारो, सुख और विभवहीन ; बृहस्पतिके देखनेसे पर- विश्वासी, अति चतुर, दुःखभोगो और शनि देखे तो दुःखमें कातर, परकार्यमे निरत, लोकप्रिय, दाता और अतिशय दुःखी, उग्रप्रकृति-सम्पन्न, हिंसारत तथा स्वजन | उद्यमशील, शकके देखनेसे मद्य और स्त्रीमें आसक्त, गुण- विहीन होता है। वान्, वलवान् और राजप्रिय होता है। (वृहजोतक ) मेषराशिमें वृहस्पति रहनेसे रागादिसम्पन, कर्मठ, ७लग्नविशेष, मेषलग्न । 'राशीनामुदयो लग्न' राशियों- वक्ता, सत्त्व अधर्मयुक्त, दाम्भिक, विख्यातकर्मा, के उदयका नाम लग्न है। मेषराशिका जव उदय होता तेजस्वो, बहुशत्रु और वहुष्ययार्थयुक्त, क्रोधो, कर और है, तब वहो फिर लग्न कहलाता है। अर्थात् जव दण्डनायक होता है। तक मेषराशिमे सूर्य रहते हैं, तब तक ही वह लग्न है। ___ यह गुरु यदि रविसे देखा जाय, तो धार्मिक, अमृत उस समय यदि किसीका जन्म हो, तो उसका मेषलग्न भोरु, प्रसिद्ध, भाग्यवान, अशुचि और रोमश ; चन्द्रमाके होगा। देखनेसे इतिहास और काव्यकुशलं, बहुरत्न और अनेक ___प्राचीन लग्नमानके साथ वर्तमान लग्नमानका मेल स्त्रीयुक्त, नृपति और पण्डित ; बुधके देखनेमे झूठा, पापी, नहीं खाता। प्राचीन मेष ठग्नमान ३४७ पल है। विद्वान्, कपटी और नीतिवेत्ता ; शुक्रके देखनेसे सर्वदा- यदि किसीका मेषलग्नमें जन्म हो, तो वह अत्यन्त गृह, भय्या, वस्त्र, गन्ध, माल्य, अलङ्कार और युवतोत्री क्रोधो, भेदकर्ता, पित्त और वायुप्रकृतिका, अत्यन्त क्लेश- सम्पन्न, धनी, बुद्धिमान् तथा भीरु ; शनिके देखनेसे | सहिष्णु, बचपन में गुरुजनरहित, अधम पुत्रयुक्त, विदेश मलिनदेह, लोभी, क्रोधो, साहसी, अस्थिरमिन और वासी, नीच स्वभावका और बहुमित्रयुक्त होता है। मेषलग्न जात व्यक्तिको अस्त्र या विष, पित्तज व्याधि, माननीय होता है। ___ मेषराशिमें शुक्र रहनेसे रोगी, दोषी, विरोधो, डाहो, | दुर्ग वा उच्च स्थानसे पतन हो कर मृत्यु होती है। (सत्याचार्य) वन और पर्वतमें विचरणकारी, नीच, कठोर, शूर, यह लग्नका साधारण फल है। विशेष फलको विश्वासी और दाम्भिक होता है। यह शुक्र यदि रविसे देखा जाय, तो स्त्रीके कारण | विचार करनेमें ग्रहसंस्थान तथा उसका सम्बन्ध स्थिर कर लेना होता है। दुःखी और धनी ; चन्द्रके देखनेसे उद्धत, अत्यन्त चपल, कामी और अधम स्त्रोका स्वामी ; मङ्गलके देखनेसे धन, | मेष (सं० पु० ) सींगवाला एक चौपाया, मेढ़ा । यह लग-