पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३

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श्रीयुत् वसु और उनके हिन्दी-विश्वकोष पर महात्मा गांधीका अभिमत । (यंग इण्डिया १०वीं जनवरी १९२९) श्रीयुत् वसुके हिन्दी विश्वकोषके सम्वन्धमें कल- मित्रने मुझे हो इसे प्रकाशित करनेकी सलाह दी। कत्ता-राण्द्रभाषा सम्मेलनमें बहुत कुछ कहा जा चुका है। अतः ४७ वर्षकी अवस्थामें मैंने यह वृहत् कार्य आरम्भ इस बृहत् ग्रन्थका हाल मुझे गत दो वर्षोंसे मालूम था। कर दिया। अभी मेरी उमर ६३ वर्षकी है। यह प्रन्थ मुझे यह भी मालूम था, कि सम्पादक महाशय बहुत दिनों- सम्पूर्ण होनेमें और भी तीन वर्षे लगेंगे। यदि मुझे से पीड़ित और शय्याशायी हैं। उनके परिश्रमसे मैं इतना इसके अधिक प्राहक या और किसी प्रकारको सहा. आकृष्ट था, कि स्वयं उनसे मिलने और इस प्रन्थके विषयः यता न मिली, तो फिलहाल मुझे २५००० रु०का नुक- में कुल वातें जाननेको मेरी प्रबल इच्छा हो गई थी। इस सान होगा। फिर भी, मैं इसकी परवाह नहीं करता। कारण कलकत्ता-कांग्रेसके समय मैंने उनसे मिलनेका मुझे पूरा विश्वास है, कि अन्तमें ईश्वर मेरी अवश्य सङ्कल्प किया। सादपुर-खादीप्रतिष्ठान जाते समय मैं | सहायता करेंगे। मेरा यह कार्य ही साधना है।" विना कोई पूर्व सूचना दिये वसुजीके भवनमें आया। वसु महाशय जरा भी निराश नहीं हुए हैं। अपने ......जब तक मैं उनके पास रहा, तब तक बड़े कष्टसे | | कार्यमे इन्हें अटल विश्वास है। इस वारकी यात्रामें उन्हें श्वास लेते देखा। वसुजीने कहा, "जब मैं किसी | मैंने अपनेको कृतार्थ समझा। यह सुयोग खाना मेरे अभ्यागतसे वातचीत करता, तव अपनी सारी पीड़ा लिये अच्छा नहीं होता। उनसे बातचीत करते समय भूल जाता है, वादमें पूर्ववत् अनुभव करता हूँ।" | मुझे डा० मरे और उनके वृहत् कार्याकी याद आ गई। वसुजीने अपने कार्यका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार | मैं निश्चय नहीं कर सकता, कि उन दोनों से कौन बड़े दिया,-"जब मेरी उमर १६ वर्षकी थी, तभी मैंने बङ्गला | हैं। मैं उन दोनोंमेंसे किसीका हाल अच्छी तरह नहीं विश्वकोषमें हाथ लगाया। ४५ वर्षको उमरमें उसे शेष जानता। दोनों महान् पुरुषोंको तुलना करनेका प्रयोजन किया। मुझे इस कार्यमें पूरी सफलता मिली। पीछे हो क्या ? पर हां, इतना मैं जरूर कहूंगा, कि ऐसे हिन्दी संस्करणको मांग हुई। स्वगीय जस्टिस शारदा- | महान् पुरुषोंसे ही जातिसंगठन होता है।