पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२९०

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मेघज्योतिस-पेयना . २७ जल छोड़ कर दूसरा जल नहीं पीता, इसीसे उसको | मेघना-पूर्व बंगालको एक नदी । इसकी उत्पत्ति गंगा मेघजीवन कहते हैं । २ तालवृक्ष, ताड़का पेड़ । ३ चाप पद्मा ) और ब्रह्मपुत्र नदके संयोगसे हुई है। इसकी पक्षी, नीलकण्ठ। | विस्तीर्ण जलराशिको देख वर्तमान भौगोलिक लोग मेघज्योतिस् (सं० पु०) मेघस्य ज्योतिरग्निः मेघादुत्- | इसे बंगीय डेल्टेका एक प्रधान मुहाना मानते हैं। पन्न ज्योतिर्वा । वनाग्नि, विजली। भैरव बाजारसे ले कर श्रीहट्टके वराक वा सुरमा संगम मेघडम्वर (सं० पु०) मेघस्य डम्वरः ।१ मेघगर्जन। । तक प्राचीन ब्रह्मपुत्रका खात स्थानविशेपमें मेघना कह- . "अजायुद्ध' अपिनाद्ध प्रभाते मेघडम्बरे । लाता है। किसी किसी मानचित्रों मैमनसिंह जिलेमें दम्पत्योः कलहे चैव वह्वारम्भे लघुक्रिया ॥" (उद्भट) । वहती हुई जो एक छोरी नदो भैरव बाजार के पास ब्रह्म २ वड़ा शामियाना, वड़ा चोवा । ३ एक प्रकारका | पुतमें मिलती है उसका आदिमेघनाके नामसे उल्लेख छन। है। वर्चमान कालमें पद्मा और यमुना (ब्रह्मपुत्र) मेघडम्बर रस (सं० पु० ) एक रसौषध जो श्वास और गोलंदो संयुक्त हो चांदपुरकी दूसरी ओर मेघनाके हिचकोके रोगमें दी जाती है। समान भाग पारे और मुहानेमें गिरती हैं। इन दो नद और नदीको जलराशिको गन्धककी कजलीको चौलाईके रसमें पांच दिन खरल करे धारण कर मेघना विशालकाय हो गई है। अतः जव तव पोछे मजबूत घरियामें रख कर वालुका यन्त्रले दिन भर! अपनी वाढोंसे तीरवासियों को खूब सताया करती है और आँच देनेसे यह वनता है। इसकी मात्रा ६ रती है। कभी कभी दोनों किनारोंको भसा कर निकटवत्तों मनुष्य, मेघतरु (सं० पु० ) मघका साकारभेद। पशु पक्षी आदि जीवोंको डकार जाती है। मेघतिमिर (सं० पु०) मेघेन तिमिर' अन्धकारो यन। इसकी विस्तीर्ण जलराशिने दक्षिण-पूर्व बंगालको मेघाच्छन्न दिन, बदलीका दिन । । दो भागोंमें विभक्त किया है। दहिने अर्थात् पश्चिमी मेघतीर्थ (सं० क्ली०) प्राचीन तीर्थभेद । शिव उ० २११११) किनारेमें उत्तरसे दक्षिणकी ओर मैमनसिंह, ढाका, फरीद- मेधत्व (सं० क्लो० ) मेघस्य भावः त्व । मघका भाव पुर, धाकरगंज तथा वाये अर्थात् पूरवी किनारे त्रिपुरा या धर्म। , और नोभाखालीके जिले दीख पड़ते हैं । जलप्रवाहके मेघदत्त--एक व्यक्तिका नाम । (श्रीहर्ष ३६) । प्रवल होनेके कारण इसके तीर निरूपित नहीं हो सकते। मेघदीप (सं० पु०) मेघजनितो दीप इव । विद्युत, विजली।, आज जिस किनारे हो कर धार वहती है, १० दिनके मेधदुन्दुभि (सं० पु०) १ असुरभेद, एक राक्षसका नाम । बाद वही स्थान गावोंके साथ नदीगर्भमें विलीन हो २ मेघगर्जन, वादलको गरज। जाता है। मेघदुन्दुभिखरराज (सपु० ) बुद्धभेद । दक्षिण शाहबाजपुर, हतिया और शनद्वीप नामक तीन मेघदूत--महाकवि कालिदास द्वारा प्रणीत एक खण्ड- सवृहत् डेल्टेको घेर कर मेघना चार शाखाओं में विभक्त काव्य । इस ग्रन्थमें नायक दक्ष विदेशमें रह कर अपनी | हो वंगालकी खाड़ी में गिरती है। प्रियतमा पत्नीके लिये विरह करते हैं। महाकवि कालि मेघनांके ज्वार और भाटोंके प्रवल होनेके कारण दासने मेघको दूत बना कर उसका विरह संदेश उसकी एक ओर देश जलगर्भमें जाता है तो दूसरी ओर नये स्त्रीके पास भेजा है। कालिदास देखो। देशकी उत्पत्ति होती है। समुद्रजल तथा भिन्न भिन्न २ मेरुतुङ्गसूरिविरचित एक जैन ग्रन्थ । जैन पण्डित स्रोतोंसे उद्वेलित हो मेघना मांति भांतिकी वस्तुओंको मेरुतुङ्ग, सूरि और शीलरत्न सूरिने इसकी दो प्रसिद्ध वहा कर समुद्र मुख पर सञ्चय करती है जिससे बड़े टीका लिखी हैं। वड़े चर वनजाते हैं तथा वृक्षादिसे चुक द्वीपोंकी उत्पत्ति मेघद्वार (सं० स्त्री०) शून्य, आकाश । होती है। इस प्रकार गत ४३ वर्षोंमें नोआखाली जिला मेघधनु (संपु०) इन्द्रधनुप। समुद्रको ओर ५, ६ मोल अधिक बढ़ गया है।