पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२७५

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२७२ मृत्यु-मृत्युजित दाहिने हाथको मध्यमांगुलिको मुड़ कर अंगुष्ठके। पुराणादि नाना हिन्दूशास्त्रों और वैद्यक ग्रन्थोंमें एक सौ नीचे लगा वाकी तीन उंगलियोंको जमीन पर सटा कर एक प्रकारको मृत्युका उल्लेख है। उनमेंसे एक कालमाप्त रखे। पीछे उन्हें एक एक कर उठा कर अंगुष्टके नीचे ले मृत्यु है और बाकी सभी व्याधि, आकस्मिक विपद् जावे। यदि अनामिका अगुष्ठके निम्न भाग तक पहुंच अथवा अभिशाप दारुण आगन्तुक नामसे प्रसिद्ध हैं ।* जाय, तो जानना चाहिये, कि उस व्यक्तिका आयु-काल बुढ़ापेमें जो मृत्यु होती है उसोको कालमृत्यु कहते हैं। सिर्फ दो पहर रह गया है। ऊपरमें मृत्युको पौराणिक उत्पत्ति तथा दर्शनशास्त्रको जिस व्यक्तिका शरीर नीला हो जाय तथा वह कटु को यथायथ युक्ति दिखालाई गई। हिन्दुको छोड़ कर अम्ल और लवणरसयुक्त द्रश्यका कुछ और स्वाद मालूम | वाको सभी मतावलम्बियोंका मृत्युसम्वन्धमें एक मत करे, तो उसकी छः मासके अन्दर मृत्यु होगी। है। संहारमूर्ति देवादिदेव महादेव ही मृत्युके आदि- समर्थ पुरुपको यदि स्त्रीप्रसङ्गके वाद तमाम अंध | कर्ता हैं, किन्तु यमराज हैं उनके अधिनायक। यमराज कार सा दिखाई दे और पीछे उसके मनमें क्षोभ उप हो मृत्युके बाद जीवात्माके सत् असत् कर्मोंका विचार स्थित हो, तो वह पांच महीनेके अन्दर ही यमराजका करते हैं। चित्रगुप्त उनके प्रधान सहकारिरूपमें पाप- मेहमान बनेगा। पुण्यका हिसाव ठोक कर रखते हैं। मृत्युके नियामक प्रातःकालमें जिसके हृदय, चरण और हाथ सूख | होनेके कारण यमराजका एक नाम मृत्यू भी है। जाय, वह सिर्फ तीन मास तक जीवित रह सकता है। ४ विष्णु। ५ अधर्मके औरससे नितिके गर्भसे जिसका शरीर अकस्मात् कम्पित हो उठे उसकी चार उत्पन्न एक पुत्रका नाम । ६ ब्रह्मा । ७ माया । ८ कलिं। मासके अभ्यन्तर और जो अपनी प्रतिमूर्ति तथा मस्तक- है आचार्यभेद । १० बौद्धदेवता पद्मपाणिके एक अनु- को जलप्रतिविम्बमें नहीं देख पाता उसकी छः मासमें | चर। ११ अष्टद्वापरके व्यासभेद । १२ ग्यारह रुद्रोंमेसे मृत्यु होती है। एक । १३ एकाहभेद । १४ फलित ज्योतिपक्ति जो दिनको आकाशमें तारे देखते है, रातको नहीं आठवाँ ग्रह। १५ ज्योतिषात १७वां घोग। १६ काम- देखते, जिनका बुद्धिभ्रंश और वाक्य स्खलित हो गया है। देव। १७ सामभेद । १८ वौद्ध-देवता पद्मपाणिका जो इन्द्रधनुष और छिद्र नहीं देख सकता, रातको चंद्रमा अनुचरविशेष। और सूर्य दोनों ही देखता है तथा चारों ओर इन्द्रधनुष- मण्डल के साथ पर्वत और पर्वतके ऊपर गन्धर्वोका मृत्युक (सं० पु० ) मृत्युसम्बन्धीय। मृत्युकन्या (सं० स्त्री०) मृत्युकी अधिष्ठात्री देवी, यम- नगरालय, दिनको चन्द्रमा और रातको शरीरकी आकृति | निरीक्षण करता है, उसकी मृत्यु सन्निकट समझनी | मृत्युजित् (सं० पु०) मृत्यु जितवान् जि क्विप् । १ चाहिये। जिसके हाथ हठात् शिथिल हो गये हैं, श्रवणशक्ति | मृत्युञ्जय, जिसने मृत्युको जीत लिया हो। २ शिवका एक रूप। . . जाती रही है और जो स्थूल मक्तिको कृश और कृशको स्थूल देखता है, वह एक मासके भीतर पश्चत्वको प्राप्त

  • "एकोत्तरं मत्य शतमस्मिन् देहे प्रतिष्ठितम् ।

होगा । जो व्यक्ति अपनी छायाको दक्षिणकी ओर अच्छी तत्र कः कालसंयुक्तः शेषास्त्वागन्तवः स्मृताः। तरह नहीं देख पाता, वह सिर्फ पांच दिन तक जीवित ये विहागन्तवः प्रोक्तास्ते प्रशाम्यन्ति भेषजः॥ रह कर परलोकवासी होगा। जपहोमप्रदानश्च कालम त्युन शाम्यति । __जो व्यक्ति मृत्युशय्या पर पड़े रह कर भी आह भरते पीड़ित रोगसाधरपि धन्वन्तसि स्वयम् । हैं उनकी मृत्यु होनेकी सम्भावना नहीं। जिस रोगीको सुखीकत्तु न शक्नोति कालप्राप्तं हि देहिनम् ॥" नाक टेढ़ी हो गई हो, उसकी दो तीन दिनके मध्य अवश्य मृत्यु होगी। कन्या। . (सारचन्द्रिका)