पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२४२

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मूल्यकरण-मूषिकपणीं इति यत् । १ किसी वस्तुके बदले में मिलनेवाला धन, मूपकाराति ( स० पु०) भूपकाणां अरातिः। विडोल, कीमत । पर्याय-वस्त्र, अवक्रय । विल्ली। "पञ्चाशतस्त्वम्यधिक हस्तच्छेदनमिष्यते । मूषकाह्वया ( स० स्त्री०) १ मूषिकमारी, श्रृंतश्रेणी नाम शेषत्वेकादशगुण मूल्याद्दण्डं प्रकल्पयेत् ॥" की लता। २ आखुकणी, मूसाकानी । ३ दन्तीवृक्ष । (मनुसंहिता८।३२२) | ४ मूपिकनी, विल्ली। मूल्यते अर्यते इदं। २ मासिक वेतन, तनखाह । मूषा (सं० स्त्री०) मूपति गृहातीति मूष क, स्त्रियां टाप् । पर्याय-कर्मण्या, विधा, भृत्या, भृति, भर्म, वेतन, १ स्वर्णाद्यावरण पान, सोना आदि गलानेको घरियो । भरण्य, भरण, निवेश, पण। संस्कृत पर्याय-तैजसावर्तिनी, आवर्तिनी, मूषो। २ ___"मल्येन यः कर्म करोति स भृतः।" (मिताक्षरा) | देवताड़क, देवताड़ वृक्ष। ३मूपिक स्त्रीजाति, विल्ली । ' (त्रि०) मूलं रोपणमहतोति मूल यत् । ३ प्रतिष्ठाके ४ गोक्षुर वृक्ष, गोखरूका पौधा । ५ गवाक्ष, झरोखा । योग्य, कदरके लायक । मूषाकणी ( स० स्त्रो०) मूषयोः कर्णा इव पत्राण्यस्याः। मूल्यकरण (सं० क्ली०) मूल्य निरूपण, दाम ठीक करना। आखुकणी, मूसाकानी । मूल्यवान् (सं०नि०) जिसका दाम अधिक हो, कीमती। मूषातुत्थ (सं० क्लो० ) मूषा-जातं तुत्थं । नीलतुत्थ, मूल्यविवर्जित (सं० वि०) १ मूल्यहीन। २ अमूल्य । तूतिया। पर्याय-कांस्यनील, हेमतुत्थ, वितुन्नक । मूशली (सं० स्त्री० ) तालमूली। मूपिक ( स० पु०) मूष्णाति द्रव्याणोति मूष (मषे दीर्घश्च मूशा खाँ-वङ्गालका एक मुसलमान जमींदार, ईशा खाँ । उण १४२) इति ककन्, दोर्घश्च। १ चूहा, मूसा। का लड़का और शीलमानका पोता। यह शब्दरत्नावली पर्याय-उन्दुरु, आखु, भूप, मूयोक, उन्दुरु, वभ्र, वृष, नामक अभिधान-प्रणेता मथुरेशका प्रतिपालक था । | आखनिक, वृश, मूषक, पिङ्ग, उन्दुरुक, नखो, खानक, विल- कोलक साहबके मतसे १६६६ ई०में मथुरेशने यह ग्रन्थ | कारी, धान्यारि, बहुप्रज। इसके मांसका गुण-श्वास, रचा था। संस्कृत ग्रन्थमें मूशा खाँको जगह मूर्छा | वायु और कासनाशक, पित्त और दाहवद्धक । (राजनि०) खाँ लिखा है। राजवल्लभके मतसे-मधुर, स्निग्ध, व्यवायी और वल. मूष् (सं० पु० स्त्री०) मोपति अपहरतीति मूष-इगुपध वर्द्धक। इन्दुर देखो। पारिभाषिक मूषिक, यथा- त्वात् । १मूपिक, चूहा। २ सोना आदि गलाने "विभवे सति नैवात्ति न ददाति जुहोति च। की घरिया। तभाहुराखु तस्यान्नं भुवत्वा कृच्छण शुध्यति ॥" मूषक (सं० पु० स्त्री०) मूष-खार्थे कन्। १ इन्दुर, चूहा । २ तैजसावत्तंनी, सोना आदि गलानेकी धरिया । ___ जो व्यक्ति विभव रहते हुए भी भोजन, दान और मूषककर्णी (सं० स्त्री०) १ आखुकर्णी, मूसाकानी नामको | यज्ञादिकाअनुष्टान नहीं करते उन्हें मूपिक कहते हैं। ऐसे लवा। २ द्रवन्ती। व्यक्तिको अन्न खानेसे चान्द्रायणवत द्वारा पाप दूर होता मूषकमारो (सं० स्त्री०) श्रुतश्रणी नामकी लता। है। २ महाभारतके अनुसार दक्षिणके एक जनपदका मूषकयुग्म (सं० क्लो०) हुख और दीर्घ मूषाकर्णी। प्राचीन नाम। मूषकवाहन (सं० पु०) गणेश। "द्रविड़ाः केरलाः प्राच्याः म षिका वनवासकाः ।" मूषकशत्रु (सं० पु०) विडाल, विल्ली। (भार० ६६८) मूषका (सं० स्त्री० ) मूषक-स्त्रियां टाप, क्षिपकादित्वात् मूषिकपणी (सं० स्त्री० ) मूपिक कर्णवत् पर्णानि यस्याः। न अत इत्वं । मूषिका, छोटा चूहा।। | जलज तृणविशेष, जलमें होनेवाला एक प्रकारका तृण । मूषकाद (सं० पु०) मूषक अत्ति अद्-अप् । मूषिकभक्षक, | पर्याय-चिता, उपचित्रा, न्यग्रोधी, द्रवन्तो, सम्वरी, वृषा, बिल्ली। प्रत्यक्श्रेणी, सुतश्रेणी, पुलश्रेणी, ओखुपर्णिका, वृषपर्णी, (मार्क० पु.)