पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१७५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७२ मुसलिन-विन-हिज्जान-नैशापुरी-मुसहर बार रकतकी उपासना करनेमें पहले दो यथारीति । मुसव्विरी ( अ० स्त्री०) १ चित्रकारी २ नक्काशी, बेल- समाप्त करके दूसरे आहयात्के पशि तककी आवृति । बटेका काम । करनी होती है। इसके बाद तसमियाहसे ले कर तृतीय मुसहर-एक प्रकारकी जंगली जाति । जातितत्त्वविद. और चतुर्थ रकतमें आहयात् समूचा पढ़ कर उपासना गण इन्हें वनवासी द्राविड़ीय जातिके वंशधर बतलाते शेषकी जाती है। यह चारों सुन्नत-रकत नामसे प्रसिद्ध है। हैं। विन्ध्यकैमूकी अधित्यकाभूमि, सोननदीके पार्व- तीन फरज रफतमें पहले दो रकतकी उपासना शेष तीय अववाहिकाप्रदेश तथा उत्तर पश्चिम और मध्य- कर आहयात् और सेलाम पाठ पर्यन्त शेष करना होता भारतमें कई जगह इस जातिका वास देखा जाता है। इन है। चार फरज रकतमें प्रायः इसी तरह है, केवल इसमें लोगोंकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें अनेक प्रकारको किंवद- सबसे पहले तकवीका पाठ किया जाता है । जैसे- तियां सुनी जाती हैं। ___ अल्ला हो अकवर-४ वार; अश-हदो अन-ला इन्लाहा वनभूमिका आश्रय लेनेके कारण लोग इन्हें' वन- इललाहो-२ चार ; वो आशा-इद दो अन् महम्मद उर मानुस, वनराज, देवशिया, मासखान धा मुशेरा कहते रसूल उल्लाहे (हय)-२ वार ; हय आल' अस सलावत- हैं। मिर्जापुरवासियोका कहना है, कि परमेश्वरने सृष्टि- २ वार; अल्ला हो अकवर-२ वार और सवसे पीछे के प्रारम्भमें प्रत्येक जातिसे एक एक आदमी तथा उनके 'लाह इल्लाहा हाह इलाला पलाहा महम्मद-उर रसूल- जातीय व्यवसायके लिये एक एक अस्त्र और व्यवहारार्थ उल्लाह' का सिर्फ एक बार उच्चारण करना होता है। एक घोड़ो दिया । इस वंशके भादिपुरुषने अपनी दुवुद्धि- मुसलिन-विन-हिजाज नैशापुरो-काश्मीरवासी एक मुसल वशतः घोड़े के पंजरेमें गड्डा बना कर उस पैर रख घोड़े मान कवि। ये अबदुला आवू मुसलिम और अवुल पर चढ़ना चाहा । परमेश्वरने यह देख कर उसे अभिशाप हुसेन मुसलिम-विन-अल हिजाज विन मुसलिम अल-दिया, कि 'तुम इसी प्रकार मिट्टी खोद खोद कर मूसा कुशैरी नामसे परिचित थे। शाही मुसलो नामक कुरान- पकड़ कर खायगा।' तभीसे मूसा खाना इनका जातिय की टीकामें इन्होंने प्रायः छ लाख प्रवाद-वाक्यका मूल व्यवसाय हो गया है। मूसा पकड़ कर खाते हैं, इसीसे उद्धत किया है। इसके सिवाय इनका धनाया हुआ | इनका नाम मुसहर हुआ है। मसनद-कवीर नामक एक और ग्रन्थ मिलता है। इनका इन लोगोंके मध्य वहतवार, चांडवार, चिकसौरिया, जन्म ८१७ और मरण ८७५ ई० में हुआ। धार, कनौजिया, मगहिया (मागधो) वा देशवार, नाथुआ, मुसली (हिं. पु) १ मुशनी देखो। (स्त्री०) २ हल्दीको पछमा, सूरजिया और तिरहुतिया नामके कई दल हैं। जातिका एक पौधा । इसको जड़ औषधके काममें आती। इनमें से चाँड़वार दलमें-घरमुला, चिकसौरिया दलमें-- है और बहुत पुष्टिकारक मानी जाती है। यह पाधी गियारो, कड़ाहा, कोसिलवाड़, महत्वार, पुत्वारो, फुल- सीड़की जमीनमें उगता है। यह खास कर विलासपुर वार और शोनवाही ; मगहिया दलमें-बालकमुनि, दैत- जिलेके अमरकण्टक पहाड़ पर बहुत पाया जाता है। निया, गहलोत, पैल, रिखमुनि, ऋषिमुनि और तिस- मुसल्लम (फा०वि०) १ जिसके खण्ड न किये गये हों, वाडिया तथा तिरहुतिया दलमें-वाँसघाट, पहाड़ीनगर, पूरा। (पु०) २ मुसलमान देखो। पाईधनहारिया, सरपुरका-यकवाडिया, कसमेटा, मारियां, मुसल्ला ( अ० पु०) १ नमाज पढ़नेको दरी या चटाई ।। वैयार, बलगाछिया, वत्वाड़ी, भादुयाय, भाखियासिन, २ एक प्रकारका प.तन। यह बड़े दिएके आकारका भुइयार, चुड़िहार, धङ्गपतिया, दियार, दोदकार, गौड़िया, होता है। वीमें यह उभरा हुआ होता है। इसमें मुह. गेण्डमा, गिभारी, काश्यप, खटवार, मेहारिया, मन्दवाय, ममें चढ़ौसा चढ़ाया जाता है। २ मुसलमान देखो। सन्धोया, सोनधुआर, सुरुयार, टिकाइत, भोगता, उलौ- मुसवाना ( हिं० कि०) १ लुटवाना। २ चोरो कराना। डिया और उपवाड़िया आदि गोत्र या वंश-विशेषका मुसन्धिर (अ० पु०) १ चित्रकार, तस्वीर सींचनेवाला। । परिचय पाया जाता है। २ ऋषत बनानेवाला।