पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१७४

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मुसलमानधर्म १७१ है । अशुचि, सुरापायी, रमणी और उन्मादग्रस्तके , एलाहा आघयरोका । तउज, 'आउस विल्लाह मिननस- लिये अजान देना मना है। सैतान निर-रहीम ।' तसमिया,--विसमिल्ला हिर-रहमान ____ कुरानमें वन्दना करनेका जो पांच समय कहा है, निष्ट-रहीम।' इसके वादं सुरे फतेहा वा सुरा-ए-आल. उनमें फजरकी नमाजमें चार रकत अर्थात् दो सुन्नत। हमद' पढ़ना होता है। वह इस प्रकार है- और दो फरज; जहरकी नमाजमें वारह रकत अर्थात् ४ ___अल-हामदो लिल्लाहे रव-विल आ-लेमिन अरहसार- सुन्नत, ४ फरज, २ सुन्नत और २ नफिल, असरकी निर-रहीम-ए-मालिके. इनोमिहिन ईयांका नाषदो भोया- नमाजमें ८ रकत् अर्थात् ४ सुन्नत-धैर-मविपकेदा प्रायः ईयाफा ना स्ताइन एहे देनाश सेरातल मुस्तक-इमा सेरा कोई भी यह नहीं पढ़ता) और ४ फरज । इसीको सव तल लजिना आन आमता आलेहिम धैयदिल माखदुवे आलेहिम वालद दोआल्लिन् ।" कोई पढ़ता है), मधिवकी नमाजमें ७ रफत अर्थात् ३ फरज, २ सुन्नत और २ नफिल तथा एशाकी नमाजमें इसके बाद नमाज पढ़नेवाला अपने इच्छानुसार १७ रफत अर्थात् ४ सुन्नत-धैर मेवेक्केदा (कोई भी इसे कुरानका १ला वा २रा पारा पढ़ता है। इस समय समूचा · नहीं पढ़ता), साधारणमें ४ फजर, २ सुन्नत, २ नफिल कुरान पढ़नेका नियम है, परन्तु विसमिल्लाका उच्चारण ३ वाजिव उल वित्तर और २ तुसफी-उल वित्तरका पाठ करना मना है। इसके बाद दोनों घुटनों पर दोनों हाथ किया जाता है। रख सामने सिर हिला 'रुकु' भोवमें खड़ा हो कर 'सुभा- उपासक पहले मुंह, हाथ और पांवको धो कर मस- नर रवि उल आजिम' तथा सरल भावमें खड़ा हो जिदमें अथवा नमाज पढ़नेके निर्दिष्ट स्थानमें मुसाला वा कर 'समामा अल्ला हो लायमन हम्मायदा रवावना जाए-नमाज अथवा गलीचे आदिके ऊपर मक्काभिमुखी नुक् अल हमद' नामक रुकुकी तसवी ३से ५ वार हो खड़ा होता है। वादमें "इन्नि वाजाहातो वाझिझया तक पढ़ना होता है। इसके बाद फिरसे सिजदा लिलजी फतरस समावाते अल अर्दा हनीफों ओमा- हो कर (घुटना टेक कर ) उसे ५ वार 'सुभानर रवावी अनामिनल मुशरकि' कह कर सबसे पहले एकाग्रचित्त ! उल अल्ला' पाठ कर माथा उठा कर कुछ समयके लिये हो भगवान के उद्देशसे इस्तगफार (क्षमाप्रार्थना ) तथा घुटने पर बल दे बैठता है। पीछे फिरसे सिजदा हो प्रातःकालीन सुन्नत् रकत् और नियत (प्रणाम) समाप्त | कर तसवोका पाठ करता है। प्रत्येक वार उठने वा वैठनेके समय अल्ला-हो-अकवर' पढ़ना होता है। . करता है। . ___ इसके वाद सिजदासे 'कियाम' हो खड़ा हो कर __ प्रातःकालोन सुन्नत् वन्दनाके समय 'न्नवेता अन | विसमिल्लाके साथ कुरानका एक पारा और विना विस- ओसेल्लिया लिल्लाहेता आला रेक-अतेई सलातिल फजर मिल्लाके दूसरा एक पारा पढ़ कर एक बार रुकु, दूसरी सुन्नते रसूल इल्लाहे-ता' ला मुतवजिहान एलाजेः तिल वार कियाम' और पोछे पहलेके जैसा 'सिजदा' करे। कारतोश्वरी फतेह अल्ला हो अकवर" इस मन्त्रको पाठ अनन्तर बैठ कर उपासनाका शेषांश अर्थात् 'आहयात् करना होता है। और दरुद' (भगवान्को अनुग्रह प्रार्थना ) समाप्त कर - इसके बाद हनिफी-साम्प्रदायिक दोनों हाथोंको सभी पहले दाहिनी और पीछे वाई और मुंह घुमावे । इस अंगुलियोंको फैला कर वृद्धांगुलिसे कर्णमूलके पश्चाद प्रकार दोनों ओर मुंह घुमानेके समय उपासना करने- भागको छूता और 'अल्ला हो अकवर' पढ़ता है। इसके | वाला 'आसल्ला मुन आलयकुम रहमत उल्लाहे कह कर वाद नाभिके वाए और उसके ऊपर दाहिने हाथको रखा | दो बार सलाम करे। इसके बाद दोनों हाथोंकी फन्जो कर जमीन पर दृष्टि डालता है। अनन्तर सिजदाह हो द्वारा दोनों हाथोंको दूढ़वद्ध कर फिरसे उसे कंधेके साथ कर प्रणाम करता और क्रमशः सना, तिउज और तस्- एक सीध फैलावे। पोछे 'मुनाजात' प्रार्थना कर दोनों मिया पढ़ता है। जैसे-सना,-'सुभान नाखल्ला हुम्मा वेह- हाथोंको सिकोड़ और मुंहको ढक उपासना समाप्त मका वोतवार रसक मोका ओताअल्ला जद्दोका ओला | करे। यही द्वितीय रकत् उपासना है। . .