पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१७३

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१७० . मुसलमानधर्म पर्वका अनुष्ठान करते हैं। सम्राट अकवरके शासन-। एक नाव बना कर उस पर मिट्टीके प्रदीप सजाते और कालमें नौ-रोज पर्व बड़ी धूमधामसे मनाया जाता था। उसे नदीमें वहा देते हैं। इस वर्षारम्भके दिन विभिन्न श्रेणोके मुसलमान दल ___मुसलमान जातिके सभी प्रकारके शुभानुष्ठानों में बांध कर घूमते थे। बन्धुवान्धवों के साथ भ्रमण, सदा- फतिहापाठकी विधि देखी जाती है। ये लोग सभी लाप, आपसमें साक्षात् और आलिङ्गन आदि द्वारा धर्मकर्मीका पालन करते हैं। प्रत्येक मुसलमान धर्म- "आपसका मनोमालिन्य दूर होता और आत्मीयताकी के मुख्य पथ पर चढ़नेके लिये खुदासे इवादत करता है। वृद्धि होती थी। इस दिन खयं वादशाह जनसाधारण | सम्प्रदायभेदसे इस नमाजप्रणालीमें वहुत पृथक्ता देखी के साथ मिल कर आमोद आह्वादमें मस्त रहते थे। घर जाती है। शिया, सुन्नो और हाजी सम्प्रदायके नमाजमें घर नाच गान, आत्मीय कुटुम्वोंका भोज होता, रोशनी | जैसो पृथक्ता है उसे लिख कर प्रकट करना कठिन है। बाली जाती, उपढौकनादि भेजे जाते और जनसाधारणके विभिन्न समयकी नमाजमें केवल समय-निरूपणात्मक उल्लास-कोलाहलसे नगर प्रतिध्वनित हो कर समारोहकी सामान्य प्रभेद लिपिवद्ध हुआ है । नीचे साधारण नमाज- पराकाष्टा दिखलाता था। अन्दर-महलमें भी इसी प्रकार का पाठ लिखा जाता है। का आमोदस्रोत वहता था। मुसलमानोंको भजनाप्रणाली वा नमाज अन्यान्य वसन्तऋतुके शुभागमन पर कोमल कुसुमकिशलय धर्मसम्प्रदायकी उपासनासे विलकुल खतन्त्र है । परिशोभित वासन्तो वनराजी जव वसुन्धराको नये अरबी कुरानशास्त्रमें यह उपासनाप्रणाली रकत अर्थात् भूषणसे भूषित कर देती थी, तव आर्यहिन्दू लोग नव- सुन्नत्, फरज और जफिल नामक तोन विशेष भागोंमें रागरञ्जित वसुन्धराके उस स्फूर्तिविनाशको देख कर विभक्त है। वासन्ती वेशभूषासे अपनेको सजा वसन्तके शुभागमन मुसलमान-सम्प्रदायके मध्य अबोला अथवा मस- की सचना करते थे। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थमें यह वस- जिदमें अनेक लोग इकट्ठे हो कर नमाज पढ़नेकी विधि न्तोत्सव मदनमहोत्सव नामसे वणित हुआ है। | प्रचलित है। धर्ममें प्रवृत्ति तथा भजनमें आसक्ति पैदा मदनमहोत्सव देखो। करने के लिये प्रत्येक मसजिदमें एक मोवाजन नियुक्त वर्तमान समयमें श्रीपञ्चमीके रहता है। वह व्यक्ति वन्दना समयके कुछ पहले मस- पश्चिम भारतमें होलीपर्वके दिन इसी प्रकार वासन्ती जिदके किसी ऊ'चे स्थान पर किवला ( मक्का) की ओर उत्सव मनाया जाता है। मुसलमान बादशाह और खड़ा हो कर अजान देता है। इस समय वह अपने नवाब वसन्तकालीन मलयमारुत सेवनके लिये इसी कानोंमें दोनों तर्जनीके अग्र भागको घुसा कर हथेलीले प्रकार वेशभूषा करते थे। जो इस दिन शसन्ती वस्त्र कानकी जड़को दवाये रहता है। पीछे चार वार 'अल्ला- नहीं पहनता उसे राजदरबार में घुसने नहीं दिया जाता हो अकबर', दो वार 'अशहदो-अन-ला इल्लाहा इल्ल. था। यहां तक कि इस दिन मुसलमान बादशाह और ललाहो', दो बार 'बो-अश-दो अन महम्मद-उर रसूल उमरा लोगोंके हाथो, घोड़े, ऊंट आदिको भी पीले | | उल्लाहे' पढ़ता है। इसके बाद दाहिनी ओर घूम कर वस्त्रसे आच्छादित कर नगरमें घुमाया जाता था। इस दो बार 'हय-अल-अश-सलओवत तथा वाई. ओर घूम दिन बादशाह एक दरवार बैठाते और जनसाधारणको कर दो बार 'हय अल-फल्लाह' कह कर चिल्लाता है भोज देते थे। इस समय सिंहव्याघ्रादि हिंस्र जन्तुका और तब मक्काकी ओर मुंह कर दो वार 'अंस सल्लाता खेल दिखाया जाता था। खेर रून्-मिन-नन-नोयम्' तथा दो बार 'अल्ला हो अकवर' ____ लखनऊ नगरमें श्रावणकी वर्षा शेष होने पर नौका- और एक बार 'ला इल-लाहा, इल्लललाहो' पढ़ कर अजान विहार पर्वका अनुष्ठान होता है। वह वृन्दावनचन्द्रके | शेष करता है। इसके बाद वह अपने दोनों हाथोंसे नौकाविहार पर्वका अनुकरणमात्र है। इस दिन वांसको मुखको ढक कर भगवान के समीप अपनी प्रार्थना सुनाता