पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१६६

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मुसलमानधर्म २६३ ६ठी सदीसे लेकर १४वीं सदीके मध्य मुसलमान! घोर विवाद चला आ रहा है। इस सूत्रसे दोनों राज- साम्राज्य बहुत दूर तक फैल गया। इस समय दक्षिण ! वंशके मध्य दो सदी तक खून खरावी होती रही। यूरोप, उत्तर अफ्रिका तथा मध्य और दक्षिण एशिया: जो मुसलमान-शक्तिपुंज एक समय संसारमें खण्डमें महम्मदीय सम्प्रदायकी विजय पताका फहराती! अदम्य समझा जाता था, आज वह जातीयताके दैन्य थी। १५वीं सदीसे अपने अपने सम्प्रदायके मध्य धर्ममत- और दुर्वलताके कारण अध:पतनको प्राप्त हो गया है। विपर्यय तथा खुष्टान-जगत्में कुस्तुनतुनियां और साली / सटमान साम्राज्यको अवनति मुसलमान शासनकर्ताओं- मनके प्रादुर्भावसे यूरोपखण्डमें अर्द्धचन्द्र ( Crescent) ! के स्वजाति विद्वपसे ही हुई थी। कुरान-प्रतिपादित के वदले क्रोस-चिह्न ( Cross ) प्रतिष्ठित हुआ था। इस : इस्लाम धर्मके एकेश्वरवादने जव ज्ञानवान् मुसलमानों- प्रकार अधःपतित ईसाधर्मके पुनरभ्युत्थानसे सरसेनी के चित्तमें धर्मको उद्दाम आकांक्षामें शिथिलता उत्पादन प्रभाव धीरे धीरे यूरोपसे जाती रही। उत्तर अफ्रिका- कर दी थी, जव प्राचीन कवियोंके प्रकृति मूलजात परा वासी मूर लोग भी बहुत कुछ ईसाई हो गये। सारे और अपरा शक्तिरूप दार्शनिक तत्त्व द्वारा जगत्की यूरोपमें एकमात्र तुरुष्कके सुलतान हो इसलामधर्म : उत्पत्ति तथा ईश्वरत्व निष्पादित और स्वीकृत हुआ था, तथा चन्द्रचिहाङ्कित महम्मदीय जातीयकेतनको आज भो तवसे ही यथार्थमें इस्लामधर्मकी अवनतिका सूत्रपात अक्षुण्ण रखनेमें समर्थ हुए हैं। हुआ। अंगरेज और फरासो अभ्युदय तथा ईसाधर्मका समस्त मुसलमान साम्राज्यके मध्य तुरुष्क (यूरो- प्रचार उसका दूसरा कारण था। पीय) के सुलतान तथा पारस्याधिपति शाहराज गण | ___उन्नति और अवनतिका कारण । वर्तमानकालमें मुसलमान गौरवको अक्षुण्ण रखे हुए डेढ़ हजार वर्ष व्यापी इस्लामरूप जातीय जीवन हैं। तुरुष्काधिपतिने १८५४ ई०में रूसयुद्धमें और १८६७ किस प्रकार धर्म के अभ्युत्थानके कुछ समय बाद ही ई में ग्रीस-युद्ध में महम्मदीय सैन्यके वाहुवल और वीरता- विलुप्त हो गया, उस जातीय जीवनके इतिहासकारोंने को दिखला दिया है। जिन शाहराजोंने एक दिन राज्य- इस सम्बन्धमें जो सिद्धान्त दिखलाया है वह संक्षेपमें प्रयासी हो कर देश देशान्तरमें जयध्वनि निनादित की; नीचे लिखा जाता है। • थी, जिस नादिरशाहका गौरव और वीरत्वकहानी मुसलमानजाति तथा इस्लामधर्म यद्यपि एक आज भी भारतवासीके हृदयमें जागरूक है, वह शाहवंश समयमें विलुप्त नहीं हुआ तो भी यथार्थमें लक्ष्यभ्रष्ट हो माज रूसराहुके कराल कवलमें प्रस्त हो गया है । यद्यपि उद्दामशून्य जातीय जोवनको वहन करनेमें वाध्य हुआ वे स्वाधीन राजा कह कर आज भी जनसाधारणमें परि था। इसका मुख्य कारण है, तत्प्रतिपादित सुखानुध्यान, चित हैं, तथापि राजनैतिक संस्थानरक्षाके कारण अभी | धर्म विश्वासोका अनन्त स्वर्गसुखभोग और स्वर्गीय वे रूस राजके मुखा-पेक्षी और परामर्शाधीन हैं। विद्याधरी लाभ आदि मोहका प्रलोभन । जगत्में इच्छा- भारतवर्षमें मुगलवंशके अवसान होने पर हैदरा रूप रूपवती युवतीके पाणिपीड़न, मदिरादि प्राणो- वादके निजाम वंश ही दक्षिणभारतमें अपनी प्रतिपत्ति मादक वस्तुके पान आदि अनेक अनैतिक विषयोंमें अक्षण्ण रख सके हैं। धनवल ले कर यदि तुलना को कुरानका प्रश्रय रहने के कारण तथा तलवार द्वारा काफर- जाय, तो तुरुषकके सुलतान और पारस्याधिपके नीचे ही। के दमनप्रसङ्गमें धमविस्तृति और विना कारणके विभिन्न निजामको स्थान दिया जा सकता है। जातिके प्रति निर्यातनकामी हो उल्लसित अरवी जन- १४६२ ई०में पारस्यराज शाह इस्माइल गही पर बैठा। साधारण थोड़े हो समयके मध्य इसलामधर्ममें दीक्षित . तभीसे शाह लोग शिया-सम्प्रदायके दलपति कहला कर हुए थे। फिर अर्थागमको सुविधाको आशासे मुसल- मुसलमान-समाज में मादर पाते हैं। इसी समयसे मानोंने प्राण-नाशका भय दिखा कर तलवार और कुरान पारस्यवासी और तुर्क जातीय मुसलमानोंके मध्य धन-1 छू कर विधर्मियोंकी दीक्षादान द्वारा जिस असार और