पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५७

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मुसलमान कहना है, कि एक पुर्तगीज मल्लाह मुसलमान बन कर | जिस तरह बढ़ी है और विजय प्राप्त की है, जातीयता- वदर नामसे मशहूर हुआ। वहुतोंका विश्वास है, कि के अभ्युदयके साथ साथ मुसलमान साहित्य और यह ख्वाजा खिजिर है। चट्टप्रामी भाषा वदरशन्दका विज्ञानकी उसी तरह कमी हुई है। यथार्थ वात यह है, अर्थ है-अनुग्रह प्रार्थना । चट्टग्राम और वङ्गालके | कि वीरचेता महम्मदी इस लामधर्मकी विस्तृति और अन्यान्य स्थानोंके मल्लाह मालसे लदी नावको खोलते प्रचार करने में तथा राज्य विजय-वासनामें उत्तावला हो समय 'वदर वदर' पीरका नाम उच्चारण कर लेते हैं। । कर साहित्यादीको जलाञ्जलि दे दी थी। पहले खलीफा ५ शाह अहमद घेसुदराज-त्रिपुरा राज्यके अन्तर्गत ही धर्म विस्तारमें लगे हुए थे। उनके वादके खलीफों- खरमपुरमें यहां उसकी कत्र है। इसने श्रीहट्टके शाह के अमल में जब मुसलमान-साम्राज्य यूरोपसे एशिया- . जलालको ओरसे श्रीहट्टके राजा गौरगोविन्दके विरुद्ध तक फैल चुका था और जव राज्यलोलुपताका इस तरह युद्ध किया था। रणक्षेत्रमें ही इसको मृत्यु हुई। अन्त हुआ था, जव खलीफा विषय वासनासे परितृप्त ६ ख्वाजा मिर्जा हलीम-चम्पारणके नेहासी ग्राम हो कर धीरे धीरे सौभाग्य सुख उपभोग कर रहे थे, तभी, में यहां हर साल एक मेला होता है। उनके हृदयमें माधुर्यामयी कवित्वस्पृहा जागरित हो ७ पातुकी सेन (साइन)-मोतिहारीकी कचहरी उठी थी। उनकी यह वलवतो आंकाक्षा अभी दृढ़ भी के सामने । पातुकी १८६४ ई० तक जीवित रहा। होने न पाई.थी, कि भोगविलासमें ही मुसलमान जाति ८ मखदुम शरीफ उद्दीन-विहारमें। विलीन हो गई। ६ मखदुम शाह आवूफते-हाजीरने। प्रधान खलीफा अनमन्सुर, हारुन अल रसोद और १० असगर अली शाह-मुजफरपुर में । अलमामून विशेष अनुराग और उत्साह द्वारा मुसलमान उपयुक्त पीरोंके सिवा मुसलमानोंमें और भी कितने | साहित्यकी जैसो उन्नति की थी, पिछले पार्थिव सुख- ही पौराणिक महापुरुषोंके नाम पाये जाते हैं। इनमें | लालसाप्रिय मुसलमानराजे वैसी ज्ञानोन्नतिका पथ पैगम्बर ख्वाजा खिजिर ( ये महम्मदके जन्मसे १ हजार प्रशस्त न कर सके थे। वर्ष पहले इस धरती पर मौजूद थे) बहराइचके गाजी | सिरिया, पेलेटाइन, अरव, फारस, अनिया, नटोलिया मियां, सुन्दरवनके जिन्दागाजी, हिमालयके निकटक मिदिया, या आजरवेंजान, बेविलोन, असिरिया, सिंधु, गाजी मदार, सत्यपीर या सत्यनारायण, अमरोहाके | सिजस्थान खुरासान, तायरोस्थान, जुज्जन, कावुल- शेख साधु, गयाधामके सुलतान शाही, पांच पोर, मुसल- स्थान, जावुलिस्थान, भवरुनदर, बुखारिया, इजिप्ट (मिस्त्र) मान गाजी नियां, पीरवदर, जिन्दा गाजी, फरीद, शेख मौरिटानिया, इराक, मेसोपोटामिया और युथोपियासे ख्वाजा खिजिर, और शेख साधु आदि नामो पांच पीर जिवाल्टर तक समूचे उत्तर अफ्रिका जर्जिया, सासिया मनोनीत कर लेते हैं । यथार्शमें ये वट या पीपल वृक्षक आदि विविध राज्य ललोफा हारुन अल रसोदके अधीन- नीचे मिट्टोक पांच पिण्ड बना कर पूजा करते हैं। पड़े। में थे। उस समय विस्तृत राज्यमें मुसलमान जाति लिखे मुसलमान इसको 'पञ्चत नोपाक' की कल्पना करते और इस्लामधर्मका प्रभाव फैलने पर भी उस देशके हैं। शिया-सम्प्रदायक मतसे महम्मद, अली फतिमा, अधिवासी अपनी भाषा भूल न सके। अथवा अपनी हालेन और हुसेन-ये ही पांच और सुनियों के मतसे | भाषा त्याग कर इन लोगोंने अरवी भाषा नहीं सोखी । महम्मद और उनके चार चार यानी उनके पिछले प्रथम | सिवा इसके महम्मदवंशीय खलीफोंके मक्केमें रहने के खलीफोंको ले कर पांच परियां 'पञ्चतनोपाक'की कल्पना | वाद हो ओस्मैयद और अब्बासवंशीय खलीफोंके क्रमा- . नुसार दमश्कस और बुगदाद नगरमें राजपाटके परि- वर्तन होनेके कारण खलीफा उत्साहहीन हो गये। मुसलमान. साहित्या गत १५वीं शताब्दीमे मुसलमान जाति धीरे धीरे इससे अरवी भाषा दर्शन, विज्ञान, साहित्य, व्याकरण