पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५३

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मुसलमान थी। कितने ही मुसलमान बङ्गालको धन धान्य-पूर्ण। साहब आदि धर्मवीर और सैनिकों का नाम सुनाई देख कर भी चले आये थे। वहांका वर्तमान मुसल-1 देता है। मान-सम्प्रदाय वैदेशिक विविध श्रेणोके मुसलमानोंसे! सन् १३३८ ई० में पूर्व बङ्गालमें मुसलमान राजवंश- संगठित हैं। सिवा इसके यहां इस लामधर्म ग्रहण के शासनाधीन हुआ था। ये राजे डेढ़ सौ वर्ष सोनार- करनेवाले (हिन्दू ) समाजका विस्तार होनेसे वङ्गालके गांव ( सुवर्णग्राम )-मे रह कर राजकर्म चलाते किसी किसी विभागमें मुसलमानोंका ही प्राधान्य दिखाई थे। सोनारगांवको वाणिज्य-समृद्धिका विषय इतिहासके देता है। पढनेवालों से अविदित नहीं। सुवर्णग्राम देखो। राढ़देशक गौड़ नगरमें (लक्ष्मणावती) मुसलमानों आक्रमणके वाद विभिन्न वीरजाति द्वारा परिवेष्टित के राजपाट स्थापित होने पर किसी तरह उत्तर, पूर्व, होने पर भी भारतीय-मुसलमान साम्राज्यको पूर्वी सोमा और दक्षिण वङ्गाल मुसलमानोंने विस्तृति और प्रति । पर अवस्थित इस महानगरमें बहुतेरे मुसलमान साधुओं- पत्ति लाभ को थो, वङ्गालके मुसलमानराज और नवाव का समावेश हुआ था। उन सवों के मकबरों के खण्ड- खान्दानके इतिहास पढ़नेसे उसका विशेष परिचय हरों से आज भी उस पुराने जनपदका ज्ञान होता है। मिलता है। गौड़, पाण्डुया, राजमहल, ढाका, मुर्शिदावाद, इस नगरमें पूर्व बङ्गालके रव्यन्दकार वंशका तथा जला- नोयाखालो, वगुड़ा, वाकरगञ्ज, मैमनसिह, कोचविहार, लद्दोनके उस्तादका जन्म हुआ था । पूर्व बङ्गालमें रङ्गापुर, चट्टग्राम आदि स्थानोंमे धीरे धीरे जिस तरह मुसलमानों के साढ़े पांचसी वपके आधिपत्यमें हम मुसलमानों का आधिपत्य फैला हुआ था, उसका संक्षिप्त केवल जलालुद्दीनको हो ( १४१४-१४३० ई०) हिन्दू- इतिहास नीचे दिया जाता है। । धर्म विद्वपी और प्रकृत विरुद्धाचारो देखते हैं। इसने __डाकर वायज, बुकानन, हेमिल्टन, ब्रायन, हजसन् | इसलाम धम के विस्तार करनेके लिये हाथमें हथियार आदि जातितत्त्वके अनुसन्धान करनेवालों के प्रयत्नसे | लेकर जिहादको घोषणा को थो। कुरानका सहारा या उत्तर बङ्गालके मुसलमानों का जो इतिहास प्रकल्पित मृत्युका आश्रय लेनेके सिवा उस समय हिन्दुओं के हुआ है, उससे मालूम होता है, कि कोच जाति हिन्दूः | लिये तीसरा कोई पथ नहीं था। केवल सत्रह वर्षमे समाज अनादत और हेयस मफो जाती थी. इससे उस मुसलमानों की जितनी संख्या बढ़ी थो, उतनी पिछले ने मुसलमान धर्म का आश्रय लिया था । समाजमें | ३००सौ वर्षों में बढ़ी थी या नहीं सन्देह है। इस समय मसालमानों के भयसे कामरूप राज्यमें या कछारक वन ॐचा स्थान पाना ही उनके धर्म परिवर्तनका प्रधान | कारण है। रङ्गपुरमें मुसलमान समाजको प्रतिपत्ति न जङ्गलो मे जा कर हिन्दुओं ने आश्रय लिया था। रहने पर भी वहांके मुसलमान आदिम अधिवासियों के | उत्तर-भारतसे वङ्गालमें मुसलमानोंके आने और वंशधर प्रतीत होते हैं । वहांके आदिम अधिवासी उपनिवेश कायम करनेका विशेष कोई ऐतिहासिक प्रमाण विविध स्थानों के मुसलमानों के प्रभावसे या मुसल नहीं मिलता है। सम्राट अकवरके राजत्वकालमें वङ्गाल मानों फौजों के वलप्रयोगसे मुसलमान वानाये गये थे। अस्वास्थ्यकर-स्थान कहा जाता था। मुगल आक्रमण- १३वोंसे १४वीं शताब्दीमें धर्मोन्मत्त मुसलमान कारी यहांका आना कालापानी समझते थे । उस सैनिकों के प्रयत्नसे पूर्व वङ्गालमें मुसलमानो'का नीव समयके नवाव और उमरा आदि जमींदार यहांका खजाना जमा । इन्होंने अपनी तलवारका भय दिखा निम्न वसूल कर दिल्ली, और आगरेमें विलासवासना चरि- श्रेणीके लोगों में या यो कहिये, कि सघन जंगलों को तार्थ करनेके लिये लौट आते थे । उनके अधीनस्थ- पार कर श्रीहट्ट जिलेमें एक ग्रामसे दूसरे प्रामों में मुसल- नौकर चाकरों और सैनिकों में कुछ लोग वहांकी स्त्रियों मान धर्मका सिक्का जमाया था। अब भी पूर्व बडाल- के साथ विवाह कर वहां ही रह गये थे। इसी तरह में आदम साहब, शाहजलाल, मुजरंद और कारफर्मा | धीरे धीरे वङ्गालके स्थान-स्थानमें कभी कभी मुसल-