पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१२४

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मुर्शिदाबाद १२१ और महल वनवाये तथा निपुणताके साथ दोवानो। वहीं रहने लगा! वहादुर शाह और आजिमको मृत्यु बाद चलाई। १७०७ ई०में औरङ्गजेवको मृत्यु हुई । आजिम उसने पटने में अपनेको "वादशाह" वतला कर घोपित उस्लानको सहायतासे वहादुरशाह दिल्लीके सिंहासन किया और वादशाही लेने के लिये मुर्शिदकुलिसे सहायता पर बैठा। उसने संतुष्ट हो अपने पुत्र आजिम उस्सान- | मांगी। लेकिन मुर्शिदकुलोने जबाव दिया कि मैंने को बङ्गाल, विहार और उडिसाँका सूवेदार बनाया। जहान्दारको वादशाह स्वीकार कर लिया है, इसलिये अब लेकिन आजिमको बहुत समय पिताके पास रहना पड़ा उनके विरुद्ध मैं कोई काम नहीं कर सकता। इस था, इसलिये फर्रुखसियरको बङ्गालका प्रतिनिधि | पर फर्रुखसियर वड़ा विगड़ उठा और मुर्शिदको सारी रख छोड़ा। सम्पत्ति तथा शिर काट लानेके लिये सैयद हुसेन अली- इस समय मुर्शिद कुली वादशाह वहादुरशाहसे आज्ञा को भेजा। इस समय फर्रुखसियरने अंग्रेज और डच ले कर बङ्गाल, विहार और उड़ीसाकी दीवानोके तथा लोगों पर ४।५ रु०का दावा किया । अङ्गरेज लोगोंने नवावके वङ्गाल और उड़ीसाके नायव नाजिमके पदको प्राप्त कर कर्मचारीको रिश्वत दे कर इस वार अपना पिंड छुड़ाया। दीवानी और निजामतके सभी कार्य स्वाधीनताके साथ फर्रुखसियरको सेनाको मुर्शिद कुलो खोने वार वार करने लगा। मुर्शिदकुली खाँ देखो। - हराया और अन्तमें उसके प्रधान कर्मचारीके भाई रसीद खांको मार डाला। दिल्लीकी गड़बड़ीका समा- १७०६ ई० में फर्रुखसियर और मुर्शिद कुलोको कुछ। चार पा फरुखसियर आगरेको ओर बढ़ा तथा सैयद जरूरी कामके लिये दिल्ली जाना पड़ा और इन लोगों भाइयोंकी असीम चेष्टासे १७१३ ई०में दिल्लीके सिंहासन के स्थानमें शेर बलवत् खांको बंगाल, बिहार और पर बैठा। मुर्शिदकुलीने भी पूर्व प्रथाके अनुसार वाद- उड़ीसा सम्बन्धी सभी कार्यका भार मिला। इस शेर | शाहको नजर आदि भेज उनके मानको रक्षा को । वलवंत बांको ८५ हजार रु० दे कर अङ्गरेजो कम्पनीने | ____ पहलेसे असन्तुष्ट रहने पर भी फर्रुखसियर जानता वङ्गाल, बिहार और उड़ीसामें वेरोक-टोक व्यापार करने- | | था, कि मुर्शिद एक कार्यदक्ष और विश्वस्त कर्मचारी का हुकुम पाया था। इसी वर्षके नवम्बरके महीनेमें शेर, है । अतएव इसके वर्तमान व्यवहारसे पहलेके द्वेषको बलवंतने छुट्टी ली। १७१० ई०में आजीम उस्सानका | भूल कर इस बार इसीको उन्होंने बङ्गाल, बिहार और प्रतिनिधि हो मुर्शिदकुली फिर कार्याक्षेत्र में उतरा।। उड़ीसाकी सूवेदारी तथा दीवानी दी। • सन् १७१२ ई० के फरवरीके महीनेमें वहादुर शाह मर इसकी सूवेदारीमें वङ्गालकी सुख सम्पत्ति कुछ चढ़ी गया। उसकी मृत्युके बाद ही उसके लड़कोंमें विवाद बढ़ी थी, यह पहले ही लिखा जा चुका है। मुर्शिदकुली खां खड़ा हुआ। विवादमें अजीम मारा गया । उसका देखो। अपने पुत्रको प्राणदण्ड देनेके बाद मुर्शिद अपने वड़ा भाई मैज उदोन "जहान्दार शाह"-को उपाधिसे | नाती सरफराज खाँकी ओर अधिक झुका । यहां तक सिहासन पर बैठा। दिल्लीके उलट फेरको खबर मुर्शिदा- कि १७२४ ई०में अपने दामाद सरफराजके वाप सुजा- वादमें लोगोंको अच्छी तरह न लगी थी। मुर्शिद कुलो उद्दीन के लिये कोशिश न कर सरफराजको मुर्शिदावाद यहां अजीमके मृत्यु-संवादको दवा कर उसोके नामसे का नाजिम वनानेके लिये मुर्शिद विशेष प्रयत्न करता सिक्का चलानेको कोशिश करता था। अन्तमै जहान्दार- था। लेकिन सुजाउद्दीनने दरवारके कर्मचारियोंको मुट्टीमें को ही सम्राट :वतला कर उसने घोषणा कर दी। कर लिया जिससे मुर्शिदका उद्देश्य सफल न हो सका। __इधर फर्रुखसियर आजिम उस्सानका प्रतिनिधि हो | १७२५ ई०में मुर्शिदकी मृत्युके वाद सुजा ही वङ्गालका ढाकामें कई वर्ष रहा और बहादुरशाहके गद्दी पर बैठने- सूवेदार हुआ और अपने पुत्र सरफराजकं. व्यवहारसे के बाद मुर्शिदावाद आ कुछ दिन लालवागके महलमें सन्तुष्ट हो उसे वङ्गालकी दीवानी स्थायी रूपसे दे दी। उहरा । पश्चात् वह राजमहल हो कर पटना गया और । सुजाने वङ्गालके सुशासनके लिये एक मन्त्री सभा Vol, XVIII. 31