पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१२२

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मुर्शिदाबाद ११६ स्थानमें छोटे छोटे गांव हैं। यहां एक दरगाह है जिसे। जव बंगाल विजय करने आये उस समय भी उत्तरराढ़ीय लोग गयाहोनकी दरगाह कहते हैं और एक देव-मन्दिर कायस्थ लोग राज्य करते थे। ये लोग पठान लोगोंके साथ मानसिंहके विरुद्ध लड़े, लेकिन मुगलसेनाके एक मुर्शिदाबादर्स ६ कोस पर रांगामाटी है। यहांकी प्रधान कर्मचारी सवितारायकी चेष्टासे फतहसिंहके मिट्टो लाल होती है इसीसे इसको संग'माटी कहते हैं। कायस्थ, शूर और हाडि राज्य नष्ट कर दिये गये। उत्तर एक समय यह स्थान गौड़की प्राचीन राजधानी कर्ण-1 राढीय कायस्थोंकी प्राचीन कीर्ति इस जिलेके अनेक स्थानों सुवर्ण समझा जाता था। अभी यह भागीरथोके पेटमें में विखरी हुई है। उनमें सोमेश्वर घोष द्वारा प्रतिष्ठित है। ईट, पत्थर, मूर्तिखण्ड आदि पूर्व कीर्तिकी याद | यजानकी सर्वमंगला और सोमेश्वर नामक शिवमन्दिर दिलाता है। अभी तक नदी-गर्भ में पुराने गृहखंड तथा तथा पांचथुपि गांवमें उत्तरराढ़ीय राजाओंकी कीर्ति गुप्त राजाओंकी मुद्रा आदि पाई जाती है। यहां दक्षिण | उल्लेखयोग्य है। राढोय और वारेन्द्र कायस्थोंका प्रसिद्ध समाज था । कर्ण- मुर्शिदाबाद शहरसे ३ मोल दक्षिण-पूरव चुनाखालि सुवर्ण की प्राचीन समृद्धिका विषय कर्ण सुवर्ण शब्दमें देखो। । नामका पुराना गांव है । पठान राज्यमें यह विशेष __ महीपाल गांवके बारेमें पहले ही लिखा जा चुका | प्रसिद्ध था। टोडरमलने जव परगना विभाग किया तो है। यह वाडला ष्टेशनसे आध कोस पर है । वाडला- इस गांवके पास फैला हुआ रकवा चनाखालि परगना से गयासावाद तक ४ कोसको दूरीमें प्राचीन महीपाल | कहलाया। यहां मसनद औलियाको कत्र है। कत्रके नगरके खंडहर पाये जाते हैं। तिरुमलयकी गिरिलिपि- पास एक शिलाखण्ड पर अबुल मुजफ्फर फिरोज सुल. से जाना जाता है कि राजेन्द्र चोलके दिग्विजय कालमें | | तान (१४६० ई०)-का नाम पाया जाता है। पहले यहांका उत्तरराढ़में राजा महीपाल राज्य करते थे। गौड़ देखो। कागज प्रसिद्ध था। यहांके जंगोपुर महकूमेमें चांदपाड़ा इन्हीं महीपालका वसाया हुआ ननर अभी महीपाल | गांव है। हसेन वादशाह होनेके पहले सवद्धिरायके अधीन गांवमें परिणत हो गया है। अभी भो इस गांवमें काम करता था। पीछे उसने गौड़का सुलतान हो सुबुद्धि महीपालदेवके राजवनों, दूसरे दूसरे महलों तथा रायको गांव वे लगान देना चाहा । सुबुद्धि रायने गांवको मन्दिरोंके खंडहर दीख पड़ते हैं। इससे ७ मीलके वे लगान लेनेसे इन्कार किया । अन्तमें इसका एक आना फासले पर सागर नामका एक बड़ा तालाव है। लोगोंका निश्चित कर चांदपाड़ा उन्हें दे दिया गया। तभीसे कहना है कि यह तालाब राजा महीपालका खुदवाया इसका नाम 'एक आना चांदपाड़ा' हुआ है। हुआ है। इसकी लम्बाई प्रायः आध कोस है। इतना चांदपाडासे तीन कोस पश्चिम एक बड़ा तालाव है बड़ा तालाव इस प्रान्तमें नहीं है। जो शेखकी दिग्गी नामसे प्रसिद्ध है। शिलालेखसे मालूम ___ यह मुर्शिदावाद जिला उत्तर राढ़ नामले प्रसिद्ध है। होता है, कि १२१ हिजरीके रवि-उस्सानिके महीनमें आदित्वसूरके राज्यकालमें उत्तर-पश्चिम प्रान्तसे जो ५ हुसेन शाहके राज्यकालमें यह दिग्गी खोदो गई थी। कायस्थ आ कर उत्तर-रादमें वस गये वे हो वर्तमान उत्तर जंगोपुरसं ६ कोस उत्तर पश्चिम 'जोयत् कूडि' नाम- राढीय कायस्थोंके आदिपुरुष थे। उत्तरराढ़के सिंहेश्वर का एक गांव है। इस स्थानमें एक अत्यन्त पुराना कुंड यजान, बहड़ान, मेहग्राम और विरामपुर इन पांच ग्रामोंमें या तालाव है जो अभी सूख गया है। यही जीयत् घे पांचों आ बसे थे। इसीलिये ये पांचौ गांव उत्तरराढोय कुंडि या जीवतकुंड है। इसोके नाम पर गांवका . कायस्थोंका आदिसमाज माने जाते हैं। सूरपाल और सेन शोंके प्रभाव नष्ट होने पर यहाँके उत्तरराढ़ीय भी नाम पड़ा है। कुड बहुत छोटा मालूम होता है तो कायस्थ लोग प्रवल हो उठे और आधो स्वाधीनतासे । भो एक दिन वहुत गहरा था। इसके चारों ओर ईटोंके राज्य करने लगे। फतहसिंह परगना इन लोगोंका कर्म- वने मकानोंके खंडहर और देवदेवीकी टूटी फूटो क्षेत्र रहा। वादशाह अक्रयरको आज्ञासे राजा मानसिंह । मूर्तियां इधर उधर पड़ी हुई हैं। ईंट और मूर्तियोंको