पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८९

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• भयसिंह सवाई मगे मातिर्षिद रूपाराम और कवि करणराम नहीं की। इन्होंने प्रसिह 'जोज महम्मदशाही" अन्य मा. समामें रहते थे। से पहले अपने सभास्थ जगवाथ पण्डित द्वारा समादः .. सम्राट महम्मदशाहने जब इन पर पत्रिका संस्कार- सिहान तथा रेखागणित नामक उकिड और नेपियर. .' का भार दिया था, उस समय प्रहनक्षवादिको गति | लत गणित पुस्तकमा संस्कृत अनुवाद प्रकाशित करया' विधि, चन्द्रसूर्यका उदयास्त, राशिस्फट, ग्रहण पादिको था। विशुद्ध गणना, परिदर्शन और भभिनव नक्षत्रके प्रावि ___जयपुरस्थापयिता जयसिंह पन्जिका संस्कार के विषयः ।। कार के लिए उन्होंने अपनी बहिसे जिन जिन यन्त्रोंका में जो कुछ अपना मत प्रसिद्ध कर गये २, राजपूतः . : भाविकार किया था. उन सबको उन्होंने दिनो, ममाम में अब भी उसो मतके अनुसार पपका पनाई, जयपुर, उज्जैन, पागरा और मथु राम बड़े बड़े मान जाती है। किसी समय समस्त मुगल सामाध्यम इन्हीं मन्दिर बनवा कर उनमें स्थापित किया था। को पञ्जिका प्रचलित थी। पायाता और माधुनिक जोतिर्विदगण सृष्टितत्त्व जयसिह सिर्फ प्रधान ज्योतिर्विद ही थे ऐसा नहीं । परिदर्शन कर एक प्रकारसे नास्तिक हो गये थे। । किन्तु वे एक प्रसिद्ध ऐतिहासिका भी थे। इसी प्रयम परन्तु पण्डितप्रवर जयसिह सूक्ष्मानुसूक्ष्म गभोर वैज्ञा. और नामानुसार "जयामह कस्पट्ठम" नामक एक तिक तत्वानोचना करते हुए भी सर्व व भगवानका | सहहत् स्मृतिसंग्रह सदलित हुपा था। पश्खये देखते थे । इन्होंने स्वरचित "जीज महम्मद ___जयसि में सिर्फ इतना हो दोप था कि, उन्होंने :: गाहो" नामक पारसिक अन्य के प्रारम्भमें लिखा है बुढ़ापेमें अफोमको खराक बहुत हो बढ़ा दी थी। इस ___ "भगवान्की सर्व मालमय अनन्तशक्तिका तत्त्व न | फोमके दोषसे ही वे मारवाड़पति अभयसि' और '.. आन कर हो रिपार्कसने निर्वाध रुपकको तरह केवल | भासिंह के साथ युद्ध कर पराजित हो गये थे। बामे .. विरति दिखाई है। विश्वस्रष्टाको महान शक्तिकल्पनाम | इन्होंने बीकानेरपतिको मारवा के अधीनतापागसे मुख टलेमो चमगादड़को तरह सताक्प सूर्यके पास तक नहीं किया था। मारवाड़ और बीकानेर देसी। पहुँच सके हैं। चक्ति के स् ( उस विश्वरूपो पत्र १७३३ ईमें बादशाह महम्मदशाइने इनको मालष. यो । अनन्त सृष्टिक पसम्पर्ण पालेख्यको कल्पित राज्यका गासमभार दिया था। उस समय महाराष्ट्रका रेखामात्र है । नसर्थ द दसो पथवा नासिरतसो इसो बल कमध्यः बढ़ ही रहा था। ये समझ गये थे कि, धोरे वरदके व्यर्थ पण्डयम कर गये हैं." धोरे ये महाराष्ट्रदस्य गण समस्त हिन्दुस्तान की बाधित पोर्तुगलाधिपतिने इनके पास जो यन्त्र मजे थे, उनके कार फर मैठेगे. इमलिए एहनि महाराष्ट्रवीर बालो। विषय, जयसिंहने इसप्रकार लिखा है-"य.स्तयिक | राषके साथ मित्रता कर उन्हे' मानयका पासनकर्वस्व परोषा और समालोचना करनेऐ मालूम होता है कि प्रदान किया। इसमें जयसिंह पर पन्य राजपूतीक इस यन्त्र में चंद्रका जो प्रवस्थान स्थिर किया गया है विरत होने पर भी बादशाह इनमें सन्तट पर थे। यह प्राधा प्रश कम है, इसलिए यह ठीक महों, । दो राजा कवियर युधराय जयसिके बहनोई : पायान्य ग्रहों के पवस्थानके विषय में यद्यपि इसमें कोई उन्होंने किसो विशेष कारणमे जयसिइको दिगो गड़बड़ नहीं, परन्तु ग्रहण सम्पन्धी गपनाम ५ मिनटका | उड़ाई थी, इस पर योरजयसिंहको कोध पा गया पोर . अन्तर पाया जाता है. ऐसे पवाय यन्त्रक कारण | उन्होने १७४०१ में भगिनोपतिका राग्य पधिकार कर होरिपाकम, उलेमो. डिलाहायर सादिको गेपनाम भूलें लिया। र, यह भी जयसिंहस्पष्ट लिख गये है। म हावस्या पनि समाज-मस्कार के विषय विशेष बनाये हुए पचय और पपूर्व कोतिस्वरूप मानमन्दिर मनोयोग दिया था । राजपूत समाजमे कन्या पियार १५ मी भारती विद्यमान मानमान्दर देश) पर याद दिमें मभोको माध्यातीत एवं करना पाता ।