पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८२०

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मिन्दन महाराणो पुरसे स्थानान्तरित करनेका इन्तजाम किया गया।, होने पर महाराणी मिन्दैनने गवर्नर जनरलक पास मिन्दनने आत्मरक्षाक लिए बारम्बार प्रार्थनाएं को, पर | एक प्रस्ताव भेजा कि, उनको कारावासमे मुक्त करके • वे सब व्यर्थ हुई। उन्हें मणिरत्र-अलङ्कारादि ममस्त | पञ्जावमें भेज दिया जाय, ऐसा होने पर वे शीघ्र हो · सम्पन्ति सहित बनारस भेज दिया गया। विद्रोह दमन करनेमें ममर्य होंगी। परन्तु यह प्रस्ताव उनको यह भी कह दिया कि, उनको सम्मानरक्षा | अगाध हुआ। गुजरातके युद्दमें मिाव-सेना विल्कुल पोर आपत्तिको जरा भो आशङ्का नहीं करना चाहिये, परास्त हो गई, अवशिष्ट विद्रोही सेना और सेनापतियों- नये स्थानों उनको विश्वम्त अग्रेज-कर्मचारीके | ने ग्रेजोंमे प्राययको प्रार्थना को । कुछ दिन बाद हो धोन रकंवा जायगा । किन्तु अंग्रेजों के विरुड पड़यन्त्र | पञ्जावराज्य अ'ग्रेजों के अधिकारमें भा गया : शिशमहा- करने पर उन्हें चुनारमें कंट करके रक्खा जायगा और | राज हत्ति महित फतेपुर भेज दिये गये। इसके कुछ दिन भवस्था इससे भी कष्टकर हो जायगी । इस समय महा बाद विधवा रणजित् महिपो झिन्दन बनारसमे भुमार राणीको हत्ति पौर भी घटा दी गई, सिर्फ १ हजार | भेजी गई। यहां १८४८ ई०को ६ प्रमोनको वे कोशल- ___ रुपये मासिक दिये जाने लगे। इमक बाद भिन्दन पर | से कारागारमे भाग कर नेपालकी तरफ चल दी। बहुत और एक विपत्तिा पड़ी । उनको विद्रोह पोर पड़यन्त्रम कष्टसे अप दुर्गम पथको अतिक्रम कर ये किसी तरह .: लित समझ कर गवर्मेण्टने उनके मणिमाणिक्य-अल. नेपालके मोमान्तप्रटेगमें उपस्थित हुई और राजासे गदि सब जप्त कर लिए, दो सम्भ्रान्त विवियों द्वारा प्राययप्रार्थना को। प्रसिद्ध जङ्गबहादुरने महागणीको "उनकी परिचारिकाधीक कपड़े तककी खोज कर विद्रोह- उसी समय नेपालस्थ रेसोडेण्टक पास भेज दिया। सूचक पनादिका सन्धान लिया गया, पर कुछ भी न | गवर्मेण्टने इस बातको जान कर महाराणीको प्रयमिष्ट • "निकला। तो भी वे अपनी सम्पत्तिसे वञ्चित हो रहीं।। सम्पत्ति भी जप्त कर लो और मासिक एक इशार रुपये. इस समय उन्हें अपना खर्च चलाना भी भारी पड़ गया। को हत्ति देना कबूल कर उमो स्थानमें रहनेका पादेश उन्होंने निउमा साहबको वकौल नियुप्ता कर उनके दिया। ___ जरिये अपनी दुरवस्थाका विषय गवर्मेण्टको ज्ञात | कुछ दिन बाद महाराज दसोपसिंह पड़ गये कराया। गवर्मे गटने उस पर कर्थ पात भो नहीं किया।| महारापी नेपाल में ही रहने लगीं। किन्तु नाना कार. निउमार्चने विलायत जा कर भारतसभामें महाराणीको | पोंसे झिन्दिनको नेपालका रहना कष्टकर हो गया। सरफसे आवेदन करने के लिए ४०,००० रुपये मांगे, पर | जगाबहादुर इन पर नाराज थे; बिगेपतः झिम्दनको उस समय महाराणीके पास उतने रुपये थे नहीं, इस.. नेपालमे २० हजार रुपये मिलते थे, यहो जङ्गबहादुरको "लिए उन्हें प्रोत्मरक्षा 'विषयमें बिल्कुल हताश होना | ग्वटकता था। पड़ा। १८६१ में दलीपसिंह अपनो मम्मत्तिकी मीमांसा, • 'धर रणजितसिंहकी महिपोके पञ्जाबसे निर्वासित व्याघ्र शिकार पोर.माताके लिये कुछ बन्दोवस्त क्षर- -' किये जाने के कारण खालसा सेना अत्यन्त प्रमन्तुष्ट हो । नेक उद्देश्य से भारतवर्ष को लौटे। गवर्नर जनरलने 'गई। ये समस्त पंसाधयासियों की मास्थानीया थी./ मिन्दनको नेपालमेल प्रामेको अनुमति दे दो। महा- इनके निर्वासित और प्रपीडित होनेका संवाद सुन कर | राणीने बहुत दिन बाद पुत्रके मुम्ब दगनमे महापकित पनाबवामी भौतं और • कह हो गये। निरपन्न ऐति- हो कर कहा-"अब में पुवमे विश्विन न चोकगी।" मासिकाने खोकार किया है कि, ला डालहौसोके द्वारा इस समय महाराषीका पूर्व सौन्दयं विलुम हो गया था। किया गया महाराणी झिन्दनका निर्वामन ही २य मिख. | दुर्विषद चिन्ताके भारसे उनका शरीर पीण, मनिन और युद्धका अन्वतम कारण है। इसके बाद श्य मिखयुद्ध | · रग्न हो गया था। इसके बाद, मिनाप्रमामाको विलियानवालाक्षेत्र में ग्रेनोंके भन्नीभांति पराजित | चुनारके दुर्ग में छोड़ गई थी, ये भी को मिलन . Vol. Vill. 186 .. ." ...