पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८२

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नयसिंह सकता। जयसिह ही राजा ग्रहण करे। मैं प्रतिज्ञा सिद्धराज नाममे प्रसिद्ध गुजरातपत्तन चौलुक्य. करता है कि, यदि मैं दीवारीको सोमाके भीतर चुल्ल । वशीय एक राजा । ये कार्य के औरस पोर जयकेशीको भर भी पानी पोज', तो मैं आपका पुत्र ही नहीं।" यह कन्या महाल देबोके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। यायय- कहते हुए भीम अपनी जन्मभूमिको मोहको विसर्जन काव्य, प्रबन्धचिन्तामणि, कुमारपालचरित आदि बहुँतसे कर मेवाड़ राजासे बाहर चले गये और बहादुर शाहसे ग्रन्यों में इन जयप्तिइ सिदराजका विवरण मिलता है। मिल कर उनके सेनापति हो गये। इन्होंने थोड़ो ही उनमें शास्त्र और शास्त्र की पारदर्शिता ___ सम्वत् १९३७में महावोर राजसिको मृत्यु के बाद .! माल को थो। इनको बुद्धिमत्त और वीय वत्ता अत्यन्त जसिंह निर्विघ्नतासे राजगहो पर बैठे । निस समय बादः प्रसन्न हो कर वृहराज कर्ण ने इन पर राजाका भार 'भाइ औरङ्गजेबके साथ राणा राजसिहका घमसान युद्ध । सौंप (१०६३ ई में ) वेगग्य अवलम्बन किया था। हुया था, उस समय जयसिइने अशेष वीरता दिखलाई । कर्णको मृत्युके पीछे उनके सहोदर देवप्रसाद भी अपने थो। किन्तु सिंहासन पर बैठते हो उन्होंने औरङ्गजेबकै पुत्र त्रिभुवनपालको जयसिहके हाथ सौंप परलोक साथ सन्धि कर ली। कुमार आजिम अोर दिलवरखान | सिधार । समसिद्ध जनराजा कुमारपाल उक्त त्रिभुवनपाल. सम्राट्कै प्रतिनिधि स्वरूप उक्त सन्धिम त्रको बांधा था। के हो पुत्र थे। राजा होने के उपरान्त जयसिंहने "जयसमुद" नामक | जयसिंहक राजत्वकालमें बर्वरक नामक एक मुसल. पन्द्रह कोसके बीच एक सरोवर खुदवाया था। इस मानराजा सिद्धपुरमें पा कर देव वाहाणके ऊपर अनेक सरोवर के किनारे पर उन्होंने "रुतारानो" नामसे प्रसिद्ध । अत्याचार कर रहा था, अन्तर्धान देशके राजाके छोटे कमलादेवी के लिए भो एक सुन्दर प्रासाद बनवाया था। माई भो यवन राजाके पृष्ठपोपक थे । महावीर सिंहराज ___ जयसिहको दो पहरामियां धीं- एक बू'दी राजकन्या। इस अत्याचारको खबर सुनते ही सेना सहित श्रोस्थल. अमरसिहको माता और दूमरी कमलादेवी। राणा | | तीर्थ में उपस्थित हुए और बर्वरकको पराप्त कर कैद कर कमलादेवी पर ही अधिक स्नेह करते थे, परन्तु कमला. लिया। देवौकी उससे सन्तोष न होता था, क्योंकि वे जानतो ____एक दिन एक योगिनोने मा कर सिवराजसे कहा- थी कि, उनके सपनोपुत्र अमरसिंहको हो राजा । "उन्जयिनी नगरी में प्रसिद्ध महामालीका मन्दिर है उनकी मिलेगा, इसलिए राणाका प्यार होना न होना बराबर पूजा करनेसे महायगका लाभ होता है। आप उज्जयिनोके है, ऐसा समझ कर वे स्पलीके साथ हमेशा झगड़ा राजाके साथ मित्रता कोजिये ओर वहीं जा करमहाकालो. किया करती थीं। बूदी राजकन्याने इस व्यवहारसे | को पूजा कौजिये।" यह सुन कर सिद्धराज या जयसिंहने प्रत्यन्त दुःखित हो कर एक दिन अमरसिंहको बहुत सेना सहित जा कर मालवराजा पर पाकरण किया। फटकारा । इससे अमरसिंहने उत्तेजित हो कर बूंदो अवन्तिनाथ यथोवर्मा जयसिंहके हाथ बन्दी हुए । अवन्ति ,राज़ामें पहुंच पिताके विरुद्ध अस्त्र धारण किया। इधर | और धारराजा जयसिंहके इस्तगत हुआ। इन्होंने इस . मेवाड़के बहुत से प्रधान सामन्त भी उनकी सहायता समय उज्जयिनोक यार्ववर्ती सिंधराजको भी पराजित . करनेको राजी हो गये। अमरसिंह पहिले पहल कमला। और कैद कर लिया था। मालवराजा जय कर के सौटते मेरके राजाकोषागार अधिकार करनेको अग्रसर हुए। समय मार्ग में बहुतमे राजापोंने इन्हें अपनी अपनी परन्तु राणाकी तरफसे कई एक प्रधान सर्दार झोलवाड़ा, कन्याएं परणाई थीं और वे कुटुाम्बतासूत्रसे पायद गिरिसङ्कटको रक्षा कर रहे थे, यह सुन कर उन्हें पिताके हुए थे। साय सन्धि करनी पड़ी। एकलिङ्गदेव मन्दिर में पिता इसके उपरान्त कुछ दिनों तक ये सिद्धपुरमें भा पुत्रका मिलन हुा । जयमिक १०५६ सम्बत्म पुत्रको कर रहे। वहां पापने सरस्वतो नदीके किनारे रुद्रमाल राजा देकर परलोक सिधार । .. . .. ! पार महावारस्लामा। और महावीरस्वामो (वर्दमान का मन्दिर बनवाया ।