पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८१४

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झालावाड ... ७४३.: • सिइने वय:प्रास होने पर जालिममिर कोलिक नाम । इस राज्यमें मायः सभी प्रकारके पनाज उसाव होत • . धारण कर १८८४ ई०में यथाविधि शामनभार ग्रहण | है. । दक्षिण -भागमें बहुत अफीम उपजतो और वह • किया। झालावाड़ के राजाको १५ मान्य सोपं दो जाती। बबई नगरमै रफतनी होतो है। शाहाबाद में , बाजरा थीं। वे २४७ गोलन्दाज मैन्य, ४२५ अखारोही, ३२६६ / तथा दूसरी जगहमें ज्वार, गेहू और अफोम हो प्रधान • 'पदातिक सैन्य तथा २० बड़ी और ७५ छोटी तो रखते । उत्पत्र द्रव्य है । प्रायः कुएँ से जल सोचनेका काम होता थे। किन्तु जब वे निर्धारित नियमोंसे राजकार्य न चला है। इस राज्यमें थोड़ो हो गहराई में पानी निकलता है।

सके, तब १८८७ ई में भारतसरकारने सनकी क्षमता झालरापाटनमें एक बड़ा मरीवर है, उसोके जलमे

छीन ली। १८८२ ई में जान्निमसिने राज्य सुधारका विस्तीर्ण क्षेत्र सोचा जाता है।

कुल भार अपने सिर ले लिया। अत: भारत सरकारने १०. प्रवारोही पौर ४२० पदातिक सैन्य शान्ति

'राजस्व विभागके सिवा और सभी अधिकार उन्हींके हाथ स्थापनके काममें नियुक्त है। कारागारक केदी मड़क सौंप दिये। राजस्व विभाग काउन्सिलके अधीन रखा बनाते तथा कम्बल बुनते हैं। ...। गयो । किन्तु १८८४ ई०के सितम्बर माममें आलिमसिंह - यहां विद्या शिक्षाको अच्छी व्यवस्था नहीं है ; किन्तु को रही सही सभी क्षमता तो मिल गई, पर वे राज- धीर धोरे उन्नति होती जाती है। देशीय भाषाको पाठ- कार्य सुचारुरूपसे चला नहीं सकते थे । अतः वे १८८६ शालाके मिवा झालगाटन घोर छावनी नगरमें दो ई में सिंहासनच्यु त किये गये। बाद वे बनारम जा | विद्यालय ' है, उन्हीं में अगरेजी, उर्दू और हिन्दो भाषा कर रहने लगे और वार्षिक ३००.०, रुपयेकी वृत्ति मिखुलाई जाती है। राजराणा टोवानको सहायतासे उन्हें मिलने लगी । जालिमको कोई लड़के न घे। अतः | रियासतका इन्तजाम करते हैं। पांचों तहसीलमें पांच भारत सरकारने कोटाको वे सब प्रदेश लौटा दिये, जो | तहसीलदार हैं जिनके कामों में नायब तहमोलंदार मदद ८३४ ई० में झालावाड़ राज्य के संगठन के लिये दिये देते हैं। सटिश भारत के न्यायशास्त्रानुमार यहांका गये थे। बाद उन्होंने शेष जिन्तीको ले कर एक नया ) भी न्यायक्षाय मम्पन्न होता है। निम्न प्रदान्ततमें तह-

राज्य इस ख्यालसे स्थापित किया कि उसमें | सोलदार रहते हैं। वे दोयानो मामले का विचार करते

. . प्रथम राज-राणा जालिम सिके वंशज राज्य कर | हैं। उन्हें एक महीनेमे अधिक कैद तथा सीस रुपयेमे • सके । १८८७ ई.में फतेपुरक ठाकुर छत्रसाल के लड़के | अधिक दण्ड करनका अधिकार नहीं है। इमर्के ऊपर 'कुंवर भवानोमिह नये राज्यके प्रधान मरकारको दोवानो अदालत है जहां केवल ५०००, रुपये तकका "पोरते ठहराये गये। ये कोटाके प्रथम झाला फौज. | मामला पेश किया जाता है। फौजदारी अदालत दो · दार माधोसिइके वंशज थे। राज्यका सब अधिकार वर्ष कैद और ३००) रु. जुर्माना कर सकती है। इसके - मिल जाने पर भवानीसिको गजराणको उपाधि | वाद पौल कोट है। यहां कान नके पनुसार कितना और ११ सम्मानसूचक तोये' मिलीं । . इन्हें टिग | ही दगई क्यों न हो, मिलता है। लेकिन बड़े बड़े गवर्मेण्टको वार्षिक ३०००० रुपये करम्वरूप देने पड़ते मुकदमाम महकमा खाससे जिसमें राजराणा प्रधान है, हैं। राजराणाने मेयो कालेजमें शिक्षा प्राप्त की है। | सलाह लेनो पड़ती है। . : इनके समयमें जो कुछ घटना दुई वे इस प्रकार है- राज्यको वर्तमान पाय लगभग चार लाख रुपयेकी २८८६-१८००,ई में दुर्भिक्ष, १८०० ई०में इम्मीरियल , है। जिनममे ३०००० ० टिश गवर्मेण्टको. करमें पोस्टकी खोसति, १८०१६ में घटिश करेन्सी पोर तीन-देने पड़ते है। ... का प्रचार, १८०४ ६ में मिलायत यावा. इनका पूरा पाने झालावाड़ राम्यमें निजका.सिका शिमे मदन- नाम यह है-महाराज राणा सर भमानीमिजी पाहा. गाडी कहते थे, चनता था। यह सिका मूम्पमें. पनरेनी दुर के सी० एस० माई एम: भार. ए एस पादि। | सिमे से कभी वरावर और: कभी ज्यादा. होता था।