पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७७१

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ज्वारभाटा Entry मामी। एगो मांटा। पन्द्रका भाप मामलोमे वो चन्द्रको तरफ पोर मरा सामे ठोक पिरोत दिमाम चन्द्र पोर मां का दूरत्व मा ममाम नही . TRAINIमका गुरुशाम मधुप्पामको पेशा पन्द्र पोर के नोधे प्रयात् प्रविशनि छटस्य माना PA५ पधिक मना पूर्य गरि पारा में रहते समय पमावस्या या पूर्णिमाको मोहार को दापन पाठाकारका गुणस्याम मायामशी पपेक्षा प्राय: उमको उपसा पौगि अधिक होती है। पशु पन्द्र २५.पर सोगा। । सूर्य के दूरसम स्यानमै रहनेमे पार पम्प उशीतो। . पमायया पो पूर्णिमा के दिन उनका प्रायः योग- वियुवरगाने यन्दर पादिका दुरत्व तया - - पनहारा पोर पटमी टिम पियोगकन बाग वास्तविक, को प्रवनति होतो पात् यिपुषमपमें दूर उपार उत्पथ होतो , पर्यात् पृर्णिमा पोर प्रमावाको कारण भो ज्वारभाटा कमो थेगो पा करती है। सार यस चन्द्रगति दारा वरपय ब्यारमे १ गुमो बार-सरायके दो गौस्याम परस्पर विपरीत दिने नया पटमीको ग्यार चम्हारा उत्पन्न ग्यारमे : गुमी ! रहते हैं। पर यदि किमी स्याम पार पौर यिपुयः जाती है। मनिए पूर्णिमा-मार पोर पटमी ज्वारका बामे चन्द्रका कोषिकदूरत्व ममान चोर दोनों विपु. पतुपात प्राय: १३:५ अर्थात् टाई गुर्नमे भी अधिक राकि एक पार्गस्य हो, तो चन्दक किमी भी समय । । उस स्थान मम्तक के अपर पानगे उस स्थान भारत अपर निनिए प्रमागीदा। मैगप्रैदाइयम जार। तरद्र का एक मौर्य होगा। यह पृथियोको पाकिमि प्रमभव है, वर्षोंकि मेमगे भगातार जलागि पिपुष हारा एम एनमें प्राय: १२ घंटे याद पन्द्र जिस देशाना मण्डम पर वारफे म्याम धावित हो रही पोर में पयस्थित हो, उममे ठीक विपरीत देगामार वापिस विन्दुम विन्दुधी पपमा चन्द्रका पाकर्षण अधिक होगा। किन्तु म समय म्यारतरफा पम्प गोय पण कार्यकारी सोम के कारण पाक्षिक-वार सनटो-वारको गोलाईमें पूर्याप्त स्यानमे एमके प्रधानारमे दूमो दुरीकर पेला प्रथम होगी। किन्तु नाना कारणाम येमा देवनः पयस्पित होगा। इसके लिए उलटी ज्वारको अधा उम में नहीं पाता । मके कारण काग: लिरी जात ।। जगह बहुत कम होगी । म तर चम्ट्र पोर या म्यान पूर्योल दीप यदि यिपुरंपा हामी प्रान्तों में बहुत | म यिपुयरेग्याके दोनों पार्ग में पा सायगा, सपातिक दूर तक मिस्त हो, तो यार-तरह झोपमा प्रतिहत ज्यार बहुत कम पोर उसटो ज्यार त यो गोगी। को कर उत्तर और दक्षिण दिगामें मेह-भदेगयो तरफ | विघुमाया किमो म्याममे १२ घटा १४ मिट पा अपमर होती है तथा दोपके दोनों मामाको घेरकर प्रायः ममाममायमे स्यार होतो।। दूमी तरफ यथासममे दक्षिय और उत्तरकी पोर यूरोपीय विज्ञान पनेक तरसी परोपापी दारा विपुपांगताकी तरफ समान गतिम पग्रमर हो । भारत महासागर चीर पाटलागिटक महामागरकी प्यार म र पिपुरंगाने यदूरयों मागर उपमागरादिम मे मीभांति परिचित हो गये है। इन दो महामार्मि भी महानगरको पार तर प्याम को भालो। मिव मिव मम मिय भित्र स्थानों पर गर्योप स्मारका मायमा पीर पूर्णिमाके दिम चन्द्र पोर म मित फान पर्य येवापारा ग्रिर को शरता पाई। कर प्यारकी उत्पत्तिमें सहायता देते मनिए प्यार | मिया कोपर दधिराम्य महानगर उत्पीकर हममें पायमा प्रथम सोनो। किन्तु परमोके दिम मन पर प्रधिमको वनोपमागा चौर वारण मागको नरफ पर सिम कार्य करने में चार उतनो पर नहीं | भापित समासातिपाय मभयार पार कर होती । क्रममा प्रमागमा पर पूर्णिमा सिनो निश्ट. | मदन दोनों उपक्रमीम यार मानतमि पग्रमा पोता पी तो मानो , ERATA NEET परिमाप बढ़ता राम प्रकारको मारमा प्रायः HTHI | चोर भी देपा बाता कि, पियों पर घट साद यह गा या मिन्न मदो मुहानम