पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७३९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सदर न्याम hifiorus मायदेमन्द है। मस्तक में उक्त ४. पोदाडे प्रारम्भमे उगमय पति जोकर समारो' में परमा नया ceniphor पोर Aruice का ध्यान गये धागोको सरह मम किमता में नायर किया जा मकमा शिमो प्रकारका x दुर्गन्ध नहीं होतो, किन म मा माय : प्रायः पत्र पनि ar, जिममे पयोत्पत्ति हो. मी पुस्लिम देव तया मिशना करतापीड़ित पति और पोर शाम किमीमाएका महा त हो तो chlorinite: kreorote, मग्माम दुर्गध नहीं पायो जाती। Trrrlerts ark. tunentine प्रादिका प्रयोग करना। ५, एमके घट गोलाकार या पण्डाकार हो कर अधिक।मम्तमपटाए पोर प्रनायकानमें bollulnm चमड़े में कुछ रचे धभर पारी है। ये पासे यो और सा वापहार करम उपकार होता है। मादमें मत सदित नया बसस्थतम प्रकागित हो । भाषिक भरकी प्रघमावस्यामें रोगों के घरकी यागु परन्तु हात पनि कमो महले होते। निमम पिश और नातिमोसोग होये, प्रेमा श्यया उदराभान इसका एक विगेप मपात । रोगी करना चाश्यियामि, मात्र या भात मायका पप्य पेटमें गुड-गुढ़ साद पोता है। देना चाहिये । भुजनलीम प्रदा हो तो ईयत् धर्मादी- ०, स्थितिकालकी नियता नहीं। पक पानोय प्रदान करें। किन्तु धर्म उत्पन्न करने के लिए हम रोगमे प्रायः गुपकरण को नहीं पाकामा उपाय हारा गरीर दक देना उचित नहीं। म्राय होते। यिक प्रयया घरफ भीतर ठठी या त पाने देये मस्तिष्कबर-१, अधिक मोगों का एक माम या ' विम्तएको गरम रखें, किन्तु जिममे यायु दूषित अस्थिति तथा अपरिच्छयमा कारण म स्वरको महोने पाये नया धर्म पधिक पादमियोका जमाघ म उत्पनि सोती है। रोगी नाम:प्राम भोर पमेमे म धोना चाहिये । रोगीका गरीर पोर पिस्तर विगेप परि- रागका संक्रामक विप पन्य वरि गरीर# मधेश फर । का तया उमको जिता पोर मुजको पछी तरह धो पीड़ा सत्पत्र करमा टे । कुफ कुछ गरम जन नया परारोट पयया सन २. मुपमण्डल गभीर होने पर भी गिय मनाशून्ग, पादिजादा मिमा कर देखें। किमी प्रकारका फन | कणोमिका माचित पोर प्रनाय पपिरत, किन्तु गदु . पागेको न मा चाहिये । मस्तिष्क ज्वरी भिममे मपित होता है। रोगोको गारीरिक पोर मानमिक माहि पूर्वावस्याको ३, पोड़ाके प्रारम्भमै नाकमेगन मी गिरता ! माम को पेमी पौषध दें। पौर कथोपकथन करे। ४, माधारणतः कोठवला, फगम पोर दुर्गम पायिक, ममिारक पर सस्पविराम पर लताँका यमन निकलता तया रोगी गोरगे दुर्गन्ध छटनी निय कारगै मिए मोचे एक तामिका दो पाती है- मनके निकनी ममय हस्राप नीशीता। पाधिक वर--१. पहिम्म पार जानराव मु म . ५, पदमारग कालेपनको लिए मान होता। कर वायुफोपित करमो. उम दूपित यायुके मेवनमेनका पो विप पाकार महीनीता पौरन पर ये रोग हापच ओमप्रमाम वायु प्रयया माय धर्म मे मेरे होते। मुगमन, प्रदेश तथा एम पोदाका विपमं कम दारा पर याति गरोगम) पदादिम ये गत धोम । प्रमिष्ट हो कर पीडा उपदी कामा। १. दरामागदा पेटमें गुरु गुरु गद नही होता। २. मुखमपम उम्स, गाम्यस पाल, कपोनिगा स्थितिकान माम मापसे। प्रमाप्ति पोर प्रभाव ता*। पोड़ा दिनकी सत्पपिराम-पर-१, मरिया कापाया पंच को प्रपन होती है। | सत्पद होती है पर यर झामक मी धोती। '. पोहा मारभमे संबर त सस नामे गन २.पारण होने पर रोगोशा र पीतामा - गिरा ।। विमिया पोर यमन रमजा मागमा