पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७३५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६०२ मका पाप भयाया। म व्यरमे पाझारा दोन | - ठोक महीं । रोगीकी शय पाके लिए विगेप नियोशा र रोगीको दोनोग दिनी गाट पर पढ़ना परता पालन करते हुए पोषध पादि मेंयाग कराये । रोगो पर मो ने दिनो नगा कर १४वें दिन में भोतर पर विशेष दृष्टि रचना पाययक है। एतज्ञा और पम गरीर का भेद प्रकट होते हैं। वे प्रथमतः यष्ट: कारफ पथ हो ससम है। परारोट, 'माम ( HITमें म्यन या कादंग पर, मणिबन्ध के पीछे या उदरो उपरि ममामा काय) और दूध व्ययम्येय ।। उदशमय हो भाग दोहो . पोई पग: हाय पेमि फैन्ता! पर दूध न टना चाहिये । गेगो पचा दुर्यन शोनमे । दीको दायर्नमे पहग्य हो जाते है, तथा एक मापदाना, परारोट वा हाय हे माय थोड़ी। म. Ex. पार पदृश्य होने पर फिर प्रकट नहीं होते। ये माधार how torands मिमा पिलाना चाहिये। एक माय प्यादा पात: १५ दिनमे वें दिन तक पधिक प्रापुट होते पियाना पच्छा नहीं, थोड़ा योढ़ा कर पुनः पुन: पर सारनी मला पनुगार पं.साका गुरुत्व मालूम हो देना उचित है। किसी ताइका कठिन पटान माता है। बिलाना चाहिये ; पोंकि उममे अन्त फट लामो ये पन्ने मान और बौद्धि समगः झाले हो जाते हैं। मभायमा है । म रोगी धनको रक्षा करते रहने १३ दिनके भे.तर पिनालय को कर चमड़े के माय उमहे जीवन की भी पागा की जा मकसो गमिए मिल जाते है । म, गेगीको देश कालो दोसती है। रोगीको विशेषरूपमे पथ्य देना चाहिये । गो मिद्रित पौर भयाया नक्षप प्रकट होतेरते है । नाडीको द्रुत होने पर भी उपयो जगा कर पथ्य देखें। गति, दुयन्नता, प्रलाप, पचैतन्य, हायरोका कांपना, मस्तिष्क ज्यर यानों के लिए उतना महटनमक गव्यायपण, पाटलत शिक्षा, पेटका फूलना, काग, नहीं है। डा. पनीमन् (Dr. Aliaon) ने इस गेगमें विधको पादि लमग मम्प ण उपस्थित होने पर रोगीको मृत्य मग्न्याको तानिका निम्नितिरूप दी :- मृत्य निकटवर्ती ममझनी चानिये, किन्तु उता लक्षण | उम आक.मग गापु यदि प्रमगः घटते रहें, तो रोगीक पीनेको पागा की १५ वर्ष से कम ८७ जा मकती है। मस्तिष्क ज्यर प्रान्तिक ज्यरकी तरह १५-३. १४८ अधिन दिन तक नहीं ठहरता । माघारगासः गेगो १४ । ३.-५० दिनमे दगा य.र २१ दिन भीतर भीमर पारोग्यलाभ ! ५.मे ऊपर करता या मर जाता है। - उमको पधिकता के अनुमार हम वरका पाकामा भी मम्तिफावर मगरिका और धारा बर ( Scar. ' भीषणतर होता है। सिाझको अपेक्षा पुरुषों के लिए रम Irn feri की तरह मिषा पावित हा उत्पन गेगका माझमण अधिकतर माहातिक है। किन्तु गर्भ मोर मारित देता है। किसी भी कारण इमकी यी नियों के दम रोगसे भाकात होने पर प्रायः उनका जापति पौ न हो, इस रोगके प्रकट होते की ग्रहोंको गर्मसाय को जाया करता है। माश्योपयोगी नियमों के प्रति पिदृष्टि रपनी चाहिये। मानमिक रोगाकाना यति रम गेगमे पीड़ित होने लिममे रोगो घरमै यि यायु पा मई, गया परि ! पर मंहगी मुल नहीं हो सकी। शो मोग मयंदा कार से पोर घरमें मोगों का जमाय नको, सम विषय प्रफुल रहते, तमा पीते १, पनको प्रायः यः घर में पिरोप गत सा रगनी चाहिये । गेगो घरमें नहीं होता । भयकाग रोगयालोको भी म दुपारी किमी नाकी दुर्गध या अपरिष्क त मामयो न चपनी पीड़ित नको कोना पड़ता । जिमको एक बार यह रोग भारिये ।। दुर्गम र निए रिमन ( Chie , धमको फिर कभी नही भोगा। ri ) या पति मकमाश पदार्य मिशसभ्यरकी यिगंप मत साई माघ felanा का सर करें। गोगों के पाम किमीका भी ना ! करना चाहिये । पोषध प्रयोगमे रम पकानमा पर.