पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७२९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नि मेयन किया जा सकता है। डा मागगियरी कहते| पर देनी चाहिये। इसके बाद मारट या एमिटी देगीय नीयूका काय ( Docuution of Iremon) | ग्रेन कुनै न मिना कर गोनिया धना पोर यह रोगीको - नकी भांति बरा । यदि चर चानका ४ घंटे मेयन करावे । यदि इसमे भो भोपध उठे, तो मनासे पदनमेधोरमका मेयन कराया जाय, तो घर नहीं पा . . नैनको मनमारमें मिला कर पिचकारी देनी चाहिये। माता। मिम मलेरियाग्रस्त रोगोको फुनै नके पानमे | पयवा त्वक् भेद कर 'माइयोडामिक मिरिन्न' पारा कुछ फायदा नहीं पहुंचा, उसको इसके सेवन करनेमे | निउटाल कुनै न गोरके भीतर प्रविष्ट करामा चाहिये। माम हुआ है। बुखार भाने एक या पाध घंटे पहले चरगेगोके मम्ति कविषयक दो प्रकार के समापदेपनि. १५।२० प्रयया ३० ग्रेन रिजर्मिन (Resorcin) पानेमे | में प्रति है। यहुत ममय देखा जाता है कि, रोगी मृदु फिर बर नहीं पा मकाता। मविरामज्वरमें माधारणतः प्रलाप ध रहा है, उमको पनि मुदी जा रहो है, नाडो कुनको ध्ययस्या की जाती है । कुनैन को गोलीका मेयन द्रुतगामिनी तया हाथ और मोम स्पन्दित को रही। करना हो तो उसके साथ साइट्रिक एमिड, एक्सट्राक .ऐमो हालतमें ममझना चाहिये कि रोगोका स्नायु- कम्मम्बा, चिरायता. टरेकमिकम कन्फेकमन् पाफ रोज माइन दुर्घन हो गया है । मस्तिष्कावरण प्रदाह मोने और अरवी गोद इनमेंमे किमी मी एक पौषधका २१ पर रोगी ऊचे स्वरमे प्रलाप यकता है, उमको पात' म मिना लेनमे काम चल सकता है। घोर लान तथा नालो भरी हुई पोर वेगयतो है, . तथा वरकी यिरापस्या चिहिमा-ज्य विच्छटमें गेगीका हाथ और नोभ उग्रकार्य करनेत्रा भाव धारण करतो पण ठगड़ा होने लगे, तो धर्म निवारणार्थ जो वागडी | है। मस्तिप्कायरणले प्रदाहमे कभी कभी ऐमा भी और मगनामि मिथित घोषध.ध्यवाहत होती है, उमके | होता है कि, स्वाभाविक दुर्वल रोगोको भी १४ प्रादमी माय ५१७ ग्रेग कुन न झाइनिउट और सालफिरिक नहीं थाम सकते है। मस्तिष्कावरणमें साधिका होनम एमिड मिला कर सेवन करावे । म प्रथस्याम पुनः जर को द्वितीय प्रकार के नहाय प्रकट होते। चढ़ने पर रोगोके जोनको प्रागा नहीं की जा मकती। प्रथम प्रकार के लक्षणों के प्रकाशित होने पर चैतन्य ऐमीदशामें पथ्यके लिए मांसफा शाय, दूध, वेदाना, मायू, मम्पादन के लिए पहने जिम गानिमार भोर कमेनका यार्नी प्रत्यादि व्ययस्य य है। यदि स्वरविको दमें पाका• मिकाको वावस्था को गई है. उमोका मेयन कराई गयकी उत्तेजनामे निन या भुक्ता मामग्रोधा.वमन हो तया दूध, मांस को काय इत्यादि पथ्यकी व्यवस्या परे। माय, तो मत उत्तेजनाको प्रथमित करने के लिए ग्लेम | पहले जिस व्रोमाइड पटाय माझ प्रौषधका विषय मेंड, को नारियनका पानी, बरफ इत्यादिको वावम्या लिया गया है, द्वितीय प्रकारका नक्षण प्रकट होने पर करें। इममे भी यदि वमन निवारित न हो, तो नाभि । उमका सेवन कराना चाहिये, मम्तक मुगइन करके ऊपर बसस्थनमे नीचे एक राईका पातसा देखें और शोतल बलको पहो पोर लघु पप्यको. व्यवस्था करनी नोचेफ मियरका मेवन करायें। । । । चाहिये। इसमे यदि विशेष फन न हो तो मम्सक पर विममय मारदाम . . . ... .. ७ग्रेन। राई (मरमी )-का पलम्तर दें। . 1. एमिड हायड्रोमियनिक डिन . . ... .२.युद।। . सविराम ज्यरम, गेल्यावस्था में रतसञ्चयके कारण प्रहा. । । प्रोट झोरोफर्म ; .. .... : ..., । और यहाको यिदि पोर परिवर्तन होता है। मलेरिया ' ' ; मीराप ने मन : .. ... .. .. .१ डाम । हो यक्षत-विहिका मूल कारण है। सोहा और यक्षमे . गुम्माय जल । .. ... ..... . " पीड़ित रोगी पत्यन्त कर पाता चोर गोग होता रहता टपकाया मा (Distilleri) पानो :मिला कर मय है। लोहा भार यकूर शम्द देखो ! मयिराम घरमें मत .) सगेत ४ प्रामको एक पुगक बनायें। इस प्रकार एक समय यशसको पिगहालाके कारण पान्ड, कामना (Ja: • एक पुरानमनके पातिययानुसार १.२ या ३ घटे | unclice) राग उत्पन्न होता है। यह उपादानका बम