पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७१८

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पाक न होता। हम ज्वरम दश दिन तक महन , तमको व्यायाम, नो-ममर्ग, खाग पीर ममप न करना और अम्पागन प्राटि क्रियापों द्वारा चिकिग्मा का ! चाहिये। इन नियम का पालन न करनेमे उसको फिर पोलिसपायादिका प्रयोग किया जाता है। ग्वार पा जाता है। । दोषोंक झमकी अपेक्षा कार्य इस बरमें दो पनुचितरूपमे दोपोंक्षे निकाले जाने के बाद जिम दीपों में एकका सत्कर्ष पथवा दोनों को ममताके पन् । वरकी निवृत्ति मोती ६, यो हो प्रपचारमै था, मार तथा मनिणत घरमें तीन दोषमि एकका उत्कएँ । युमार फिर पा जाता है। जो व्यक्ति बहुत दिन तक दो दोषों को ममताके अनुमार बैद्यको चाहिये कि. विवे । घरमें कट भोग कर दुर्यन पोर होनचेता को जाता चनापूर्य यथोक्त पीपध हाग उनकी निकिमा करें। है. यदि उमका पर एक यार ष्ट कर फिर पाक्रमण मविपात बरापमान में यदि कण के मूनप्रदेशमैं निरुण | करे, तो थोड़े ही दिनोंम उमका माप विनाम होता है: गोध हो जाय, तो कभी कोई व्यक्ति उम वरमे छुट• पथवा टोपीका क्रमग: धातुममूहमें परिपाक हो कर कास पाता है। जिस व्यक्षिा स्वर रतस्य हो जाने- बर न होने पर भी होनता, गोय, ग्लानि, पाडता. के कारण जीत, ग. निग्ध पर रुन पादिी द्वारा धचि, कगड, उल्कोठ, पिडफा पीर पग्निमान्य गर्भ मे मित्त न हो, सामोसा करनेमे वर वर प्रगमित | कोई न कोई एक रोग उत्पन्न होता है। हो जाता है। जो ज्वर विमर्प, अमिधात पोर विस्फो. पुनगरप्त वामें अभ्यरा, उदतन, दान, धूप, टका कारण होता है, उम वरमें यदि कफपित्तका पनन ओर नि त प्रत्यास हितकर है। मुगुतमें पाधियय न हो, तो मथमतःो पिनाना उचित है। कहा गया है कि, छाग वा मेष धमलोम, वथ, कुड़, सप्तमें लिया है-जिम दिन वगका उदय होगा। पनपा पीर मिचिपट मधुझे माय इनकी धप प्रयोग उस दिग बरमे पहले गिविध सर्प द्वारा पथया| करमो चाष्टिये। कम्पन होममे हम अपने विमोको चौर्यापयाद धारा रोगीको भय दिखायें तथा भूपा रफ यिठा मिला दें। पयवा अत्यन्त पभियन्दी या गुरुला द्रश्य बिना कर पीपन, मधव, सरोका तेन पोर नेपाली नफा . पुनः पुनः यमन कराये । प्रथया तोच मद्य या चर• पञ्जन यना कर पात्र में नगाना चाहिये। चिगयसा. नायक टन किग्या काफो पुराना घी पिलावे, पयवा | कटकी, मोया, चित्रपर्पटी और गुना इनका फ्राय कुछ ममधिक विरेचन या पहले मंद प्रयोग करके निन्द मेवन करनेमे पुनरावत बा गान्त हो जाता है। यम्ति प्रयोग करें। नव उपराकान्त व्यक्तिको गुरु पर उपवस्त हारा ___यर घटते माय ममुणको कठजन, मि, प्रा. मारत रखना चाहिये। पोपडे मिया मिर्फ पप्य मचानन, साम, गरोर यियर्णता, धर्म, कम्प, पषममता सारा भी ममय ममय पा रोगको गामि मातो: प्रलाप, मीन में उता, कभी कभी गोतन्नता, पजामता मिस पप्य पर ध्यान न रखनेमे उपसमको प्रत्यायामही पोर पर की पधिकता होती है मया रोगो। रहतो। समय बरमें परिपेक, प्रदेस. रोपान, मो. फसको मामि दीपना : मका मन गद पोर पनाम-पौषध, दिवानिद्रा, मेगुन, व्यायाम, तुषारजन, थेग गदित निकलता है। श्री पर टोपों के कारण धेग] कोध, प्रयास पौर गुपभोग्य दृश्यका परित्याग करना मा कर समा: निहत होते हैं उन घरोक टो ममय/चित है। किमी तर शाहमण नहीं टिकाई देते। ग्यरको प्रथम पयस्पामें मातम, मध्याचम्पाम कराटाम पर मनुष्यको मानिस, मम्ताप पोर .रोपी अधिक हम में साये. मन ध्यधाशो निति नियाको गिमता पर पाभाविक गरनिश्रिया सरनी नारि रियोरन रामग, मत्व पम्पित होता। पसको न करना पाहिये : परमपन परे को - सरमुकामय तक धनवान् म तव नक, सनम राना पारि। ममेवटी श्री, बार, पद, YoLVIII.165