पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७०६

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छवर ६४५ करते है। विपदूपित जलपान प्रथा उनका मयोग, विषका उप- | तन्द्रा, पानव्य पोर प्रबमे पाच को भातो है । उदय योग, पर्वतादिका उपोष मेंह, स्वेद, यमन. पास्या | वेदना होतो घोर नगर मख जता है। कामज्वरमें मम, पन, अनुवासन पौर गिरोपिरंचन पाटिका अयमा प्रावि और दाह होता है नया लम्बा निद्रा, बुद्धि पोर प्रयोग, बियाका विषमभावमे या अममयमें प्रसव होनेमे धारणागतिका क्या होता है ।भियों को कामजा होने तया प्रमय के बाद पहिसाचारादि पोर पूर्योम्ह वातपित्त | मे मूळ भरोसे दर्द पिरमः, नेवचाप न्य, स्तनां और नेमाके कारण मयका मियभाष हो जाता है पोर इस से पर पपीना नया हदय द होता है। लिए विदोप अथवा विदोपके निदानगत वैपम्य धारा | ____कभी कभो मा पो गोजनिन नरम प्रताप तया एक ही ममयमें यायुःपित्त कफ तीनों प्रकुपित हुमा । फ्रोधजन्य घरमै कम्म होगा। भूताभिषणाचरम उद्दे ग. धनयं क कास्य पीर रोदन ' . म प्रकारसे प्रकुपित दोपममूह उपर्युमा भानुपूर्थिक तथा गरोर कांपता है। कभी कभी इम पर वेगका ज्वर लाता है । म ज्वरक लक्षणममूहम मियभावविशेष तारतम्य हुपा करता है। का देख कर दो दोषक विश देखें तो इन्धन घोर पभिचार पोर पभिगापानित ज्वरमै मोट पोर विदोपके चिज देखें तो सामिासिक बर समझना | पियामा होतो। वाग्भट कहते है कि हम वरमें प्रधा. चाहिये। नतः मनस्ताप शिर गारोरिक उगता, विस्फोट, पिपामा, पभिघात, मभिपता, अभिचार पीर अभिमाप के कारण भ्रम, दाह पोर मर्गशेती है। यह वर दिन दिम यथापूर्वक पागन्तुज ज्वर होता है। । बढ़ता रहता है। पागन्तुज-ज्वर उत्पत्ति के समय स्वतन्त्र र कर पीछे यन्ति, पाति (कार्य पपत्तिो . विधणं सा, मुग्न दोपों ( यायु, पित्त, कफ) के साथ मिथित होना येरम्य, नयनतम । पार्मि पानो भर पाना), गोत, अभिधातजन्य वर यायु शरीरगत दुष्ट शोणित का वायु पीर धूपमें मुमुद रहाा परिवर्तन, पनामर्द, पायय न कर रहती है। अभिपङ्गज बर वायु पोर (गरोस्में ठन मरोपन, रोमाव पनि समोटि. पित्तसे झाग तथा पभिचार और पभिगापजन्य ज्वर | प्रामवता मोर गोतानुभम ये मम लक्षण वर पनि विदोपके माथ मिल जाता है। दिखाई देते हैं। विशेषत: वायुजन्य ज्वरमें उधामो पिn. भागन्तुक वरयुत लिङ्गप्राही है । उसको चिकित्सा | जन्य में नेवदाह पोर कपननिन र अग्रमे पनि घऔर ममुत्यानकी विधि पना स्वरमि भित्र है। होती है। विदोप ज्वरम मन मक्षण तथा इन्दज घरमै ___ गुमन्तापके हारा यमुभूत ज्वरको किसी पभिप्रायमे। दो दोपविलग दिखाई पड़ते हैं। दीपा पोर पागन्तुज भदमे दो प्रकारका कह सकते हैं। निद्रानाय, मम माम, नन्दा, पदमुनि परषि, उनमे यातादि विदोपके ये कल्यहेतु ज्वर दो प्रकारका, पणा. मोहमद, मत, दाह, गोत. अदय में घटना. तीन प्रकारका, चार प्रकारका पीर मात सरहका कहा पधिक ममयम टोपका परिपाक, उन्माद, दन्तम्यापवर्ष, गया। दन्त को मलिनता,मिताका परम्पर्ग पोर झणव होमा, विषभरणजन्य पागज या रोगोका मुख ग्याम सन्धिम्पलमें पोर मस्तकमै धेदना नेवीका पफ पोर मैना 'यो भाता रे, चतोमार. पत्र प्रापि, पिपामा, शेना, कानमें पेदना पोर गदययण, ममाप, मुग, लोद ( सहिदने जमो वेदना ) सधा मूळ होती है। मामिका पादि सोनपयका पाक, कान, पचेमनता;म्मेद, किसी प्रकारको सोलापीपधके इंधनमे जो ज्वर मय पोर मतका दरोमे योढ़ा निकनना-ये मदमा उत्पन होता है, उनमें मूर्खा, गिरोघेदना, दोक पोर विदोपायरमें दिखाई देते हैं। के होती है। काममित व्याम पर्यात् पभिलाषानुरूप घरफमहिला वर पूर्वमधमका पर्णम रम प्रशार जोके म मिलने पर नो पर होता है, उममें मनोग, निया-सुका येरप्य, सरारमा गुरुत्व, पवमा Vol. VIII. 1c