पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६८२

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ज्योतिष और 'पू' को यदि विषुवरेखा समझा जाय पोर फ्रान्ति: मकर -२२ दिमम्पर, उत्तरायण मंक्रान्ति । कृतको कल्पना की जाय तो मानचित्रके ठीक मध्यस्य | ११ | कुम्भ-२१ जनवरी, विपदो। स्थानको जिम में उता दोनों हत्तोका मम्पास दुपा १२ । मौन-१८ फरपरो, पड़गीति । है-मैपराशिका प्रथम कम या वामन्तसम्पात अथवा प्रथम छोराधकके उत्तर केन्द्रमे २३॥ शतक और महावियुवम कान्निकट सकते हैं। उता स्थान पर मयं- क्रान्तिविके किमी भी स्थनमे शतक स्थानके का मकामंण होने पर हो दिनरात्रिक परिमागकी। किमी निर्दिष्ट ग्यानको कान्ति केन्द्र ( Poll of the ममता होती है। नो होगचक ऐमे स्यनको भेद कर relintic) करते हैं। यह म्यान मृहत् भन्न कके गमन करता, 'उ' और 'ट' रखादारा जमा टिग्वः । निकटवर्ती डोको नामक धुव नक्षत्र के शोच में है। लाया गया है, उमे प्रयम होराचक्र कहते हैं। यह प्रथम भाकाशमण्डल के उत्तर केन्द्र इम तरह विमकता भोगचक्र ही मेपरागिका प्रथम कक्ष और वर्ष का पसला | रहता है कि २५८६८ वर्ष में फ्रान्ति क्षेत्रको वेष्टित कर । एक गोप्पट हो जाता है। यह गति इतनी पन्नध्य है ___ मानचित्रको गोलाईमें १० घश है. जो २४ कि कोई अपने जीवन में इसका अनुभव नहीं कर ध में एक बार घूमते हैं। इस हिमाव मे ग्बगोलका | मकता। परन्तु जय एमको गति है, तो अवश्य ही वर प्रत्येक अंश पगठे में १५ अग पयिमको घोर जाता है। उत्तरकेन्ट्र यतं मान केन्द्रनारा ध यमे दूरवर्ती हो कर यही कारण है कि मोराचको न कह कर कमी। धीरे पुनः पूर्व स्थानमें पावेगा एममें मन्दे नहीं। कभी होरा पा घण्टा कहते हैं। ममयके माथ पृथिवी- भारतीय ज्योतिष- प्राचीन भारत में सभ्यताके प्रथम को प्राधिमाका भो ऐमा हो मम्बन्ध है । दीर्घातांगका | गुगर्म हो जोतिषशास्त्र की उत्पत्ति हुई थी। वेद प्रत्येक प्रश घगर्ट में १५ अ पूर्व को पोर इट पायों के प्रादिग्रन्य है। वेदमन्चकै मर्मार्थ को नानने के जाता है। लिये प्राचीन ऋपियोंने कुछ अन्य रचे हैं, जो "प्राधाण" कामिक धार ममभाग!म विभा है। प्रत्येक कहलाते हैं। वेद पढ़ने के लिए ठसारण और छन्दो. भाग ३० के समान है। हम भागीको रागिन को जानको पावश्यकता है, वेदमन्च समझने के लिए शरीर मेधाशिक प्रयोग एमकी गणना शुरु 'व्याकरण' घोर "मितिको पावश्यकता तया यतके होती है। नीचे एक नामिका दी जातो है, जिममे | लिए वेदान्त का व्यवहार करना हो तो 'जयीमिय" पीर मम्प ण गगियों के नाम पर उनमें सूर्य के प्रवेगकालका "कल्प" के ज्ञानको पावरा ता है। इन विषयों में परिभान हो मकता है। मे प्रायः मभो नियम ‘बामणों" के मध्य वित्तिा थे, मेप:२. मा. महाविपुवामत्र मंक्रान्तिम किना परवर्ती कालमें व्यवहार के मुमीताके लिए उपयुक दिवागव ममान प्रत्येक विषयक नियमोका संग्रह कर उनका पृयक .२ सप-२० सप्रेन, विगुपदी। पृथक् नामकरण हुपा। अमे-गिचा, छन्द, प्याकरण, ३। मिय म-२६ मई, परगीति . मिस, जोतिप पोर कम्प! इन कहींका घेदान्त ४। ककंट-२१ जन, ग्रीम-संक्रान्ति । कहते हैं। इसमे मान म होता है कि मोतिप पह: ५ । मिर-२३ जुनाई, विष्णुपटी। वेदादीका एक मंद है। इसमें मिर्फ उम ममय के यत. । कन्या-२३ अगस्त, पड़गोति । काल निणयमें उपयोगी नियमोका मग्रा किया गया गुना-२३ मेगमा, प्रमविष व गारदमंफ्रान्ति, । है। जिम उज्यमे यह रचा गया था, उमी उद्देश्य मर्व व दिवालि ममान। , . उपयोगी गूबमात्र इममें है। बिना मनोतिष-वेदान्त- . पिक-२३ पाय घर. यिशुपदी।., । मे उम ममय के ऋपियों गोलिप मधीय चामडे, . धनु-२३ नयेम्बर, पड़गोति। : ..! विषम किमी प्रकार मिहान्त करना म पषित मम ।