पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६०१ . ज्ञानरङ्ग-ज्ञानवापो । नर-एक कवि। इन्होंने उपदेगको अनेक कपिः। दोर्धिव । कागोम स्थित वापोरूप एक सोय। दमको ताए रवो हैं, जिनमें एफ एम प्रकार है- उत्पति आदिका विवरण स्कन्दपुराणोय काशीखण्ड में आहे लागे चोट सोईजागे। इन प्रकार लिखा है-अगस्यने एकदिन स्कन्दमुनिके 'दा लहरी राहगिज ॥ पाम जा कर कहा-'महात्मन् ! देवगण भो भानयापोको किमो के न होवे ज्ञानरंग दीठ लगी जाणे ॥ बहुत प्रग'मा किया करते हैं। पाप रुपा कर इसको नराम-मिडान्त सुन्दर नामक जोतिप-प्रत्यके प्रणेता ।। उत्पत्ति प्रादिका विवरण कह कर मेरा मनोरथ पूर्ण ये नागनाघके पुत्र और सूर्य देवनके पिता थे। करें।' स्कन्दने उत्तर दिया-हे मुने ! पहले मत्ययुगमें एम मानलक्षणा (म' स्त्रो०) भान लक्षण यस्याः, वनी ।। अनाटिमिद ममारमें जिम ममय मेघाम पानो नहीं घर. अनौकिक प्रतासमाधनमत्रिकर्षभेद । न्याय शास्त्रानुमार मता था, नदो आदि नहीं यों पोर न मोगोको मान मनोमिक प्रत्यक्षका एक भेद । प्रत्यक्ष दो प्रकारका है. पानादिके लिए जलको अभिलापा हो घो तया जब एक लौकिक और दूमरा अलौशिया। नोकियक प्रत्यक्ष जोर ओर लपणनमुद्र का पानो हो दिदलाई देना या घागज श्रादिके भेदमे छह प्रकारका है। (भाषाए. ५२)। चौर जब पृथियोंके किमो किमी स्थान पर मनुका अलोकिक प्रत्यक्षके तीन भेद है-१ मामान्य- सञ्चार था, उम ममय पूर्व और उत्तर दियाको मध्य- नक्षण, २ जानलक्षण और ३ योगज। पहले पहल | स्थित दिगाके अधिपति मद्रोमें अन्यतम ईशाण इतस्ततः किसी वस्तुका प्रत्यक्ष पारना हो, तो पहले हो । भ्रमण करते हुए कागो पहुँचे । जो कागो निर्वाण- एमका विगेप ज्ञान होना पावश्यक है, पीछे विगेय | लन्मौका देवस्वरूप पोर परमानन्द फानन है, जो जान होता है। घट जाननेके लिए घटत्यका ज्ञान महाश्मयान मय प्रकारके वोजसमूह के लिए कपर भूमि होना पायश्यक है। घटत्यके गिना जाने घट जाना नहीं | और परियात जोवोका वियामण्डप है, जो समिदा. जा सकता। स्वधनाम योग हो जानका कारण है, मन नन्दका निलय, सुखनमूहका जनम भोर मोक्षमद है, बकर माथ मिन्नने और वस्तु हे माय उसमा सम्बन्ध होने | उम कागोवमें, जटाधारी ईमानने इम्तस्थित त्रिशूल के पर हो मान होता है। मान लो कि किमो व्यतिनि कल. विमल रश्मिजालमे व्यास हो कर प्रवेश किया पोर महा- फत्तेका घट देखा है, कागोका नहीं देखा। परन्तु | निङ्ग के दर्शन किये। वह शिवलिङ्ग चारों पीरमे न्योति. कागोके घट पर वमन:मयोग भी अमग्भय है, ऐसा होने मंग्रो मालाममूह द्वारा वेटित है, देवता, पि, मिद से उस व्यक्तिको फागोके घटका प्रत्यक्ष या भान नहीं| और योगो निरन्तर उनको पूजा करते हैं, गन्धर्व उनके होगा, इमलिए पनोकिक मधिकर्पको मानना पावश्यक | नामका गान करते हैं, चारण उनको सति करते हैं, है। इम मनीकिक मविकर्षमे चतु के भगोचर पदाधी- अप्सराएं नृत्यद्वारा उनको सेया करतो है, नागकन्याए का ज्ञान होता है। मणिमय प्रदीपों द्वारा उनको पारतो करतो हैं, विद्या एक घट टैप कर घटत्वरूप सामान्य धर्म के द्वारा धरो और किवरियां उनके विकानोन वेगको घनाती एपियों के समाम घटी का जोशान होता है, वह मःमान्य- और देवकन्याएँ चामरमे उनको हवा करती है। यह लक्षणाये अधीन भौर घटज्ञान डाग घट, पट, मठ मय देख कर ईशानको घटपूर्ण गोतन अनुदारा उन पादिका ओ समय सान होता ५, वहानलत्तणाव | महानिङ्गको सान करानेको इच्छा दुई। इस पर धोन हे । म भाननवणा के घटशानसे पृथियो । इन्होंने विगूलगे उम नि के दक्षिणको भूमि खोद कर सम्पर्ण पदार्थोका साम होगा | गागाग्यलक्षणा देग्यो। एक कुगड बनाया । उस कुगलमे पृथियो परिमापकी मानवत् (स वि०) सान विद्यते यस्य प्रत्यय मान पपेक्षा दग गुना जल निकलने लगा पोर जलसे पृथियो माप । शान, निमे भाम हो। .. टक गई। फिर कदमूर्ति ईमानने उस जम्नमे सहस्रधार शामवायो (म तो.) जानम्य मानरूपोदकस्य यापो । कनमको परिपूर्ण कर महादैनको मान कराया। महा. Vol. Vul. 151