पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६५

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जयपुर मामन्तीने पहले नो विखास न किया : पोछे जब अपनी दुटने १७ वर्ष के बालक जयमिइको विष दै कर मार पन्नियों को पन्तःपुरमें भेज कर खबर मंगाई, तो वास | डाला । उस ममय ३य नयमिक २य राममि ठोक निकन्नो। यथासमय रानो मधियानीके गर्भ मे ३य नामक एक पुत्र हुए थे। ये २ वर्ष के यालक रामसिंह जयमिहका जन्म हुआ और मोहनसिंह गहोसे उतार हो राजा हुए। इनके राजारोहणक समय मटागमके दिये गये। सामन्ती पौर टिग गव में एटको सम्मतिक पड़यन्त्रसे राजधानी में बड़ी गड़बड़ो मच गई। अनुमार श्य जयसिंह हो राजा हुए। म ममय भो। १८२० ई०को बलवा होने पर राजाने पंगरेज २य पृलोमि का पुत्र ग्वालियरमें सिन्धियाके घायमसे भफसरको जयपुर में रहनेके लिये बुलाया था। १८३५ राजा पानेको कोगिय कर रहा था। पहले तो बहुतमे । ई०को राजधानोमें जो उपट्रय उठा, गवनर जनरसके सामन्त उसे राजगहो देने के लिए राजी हो गये थे, पर राजपूतानास्य एजेएट पाहत हुए और उनके सहकारी पोमे उसको म खंता और अमचरिवंताको 'वात सुन | मारे गये । इसके बाद बृटिश गवर्नमेण्टने भान्ति रथा. कर किमीने भी उसे राजा न बनाया। का उपाय किया । पोलिटिकल एजेण्टकी देखभातम ! ३य जयसिंह राजा होने पर, उनको माता रानो। सरदारों की एक रिजेन्मो. कोमिल बनो, जो सब जहरी भटियागो हौ राजा-शासन करने लगीं। राजाके स्वार्थ काम करने लगो, सेना घटायो गयो भोर प्रबन्धके सब के लिए सटिश गय, गटने रावत रिलाल को जयपुरके | विभागोका संस्कार हुपा। १८४२ १०को ८ लाप मन्विपद पर नियुक्त किया । जगत्मिहको शेषावस्था में | वार्षिक कर घटा कर ४ लाख रखा गया। १८५१ उनके अधीनस्थ मामन्तीने जयपुरराजाको बहुतसी को पंगरेजाने जयपुरके नरेश महारान रामसिदको अमीन अपने अधिकारमें कर लो घो। परन्तु टिशः पूर्ण पधिकार दिया । सिपाही विद्रोहके समय पंग.. गहमे गट के गाय मन्धि होने पर अगसिपको उस रेको सहायता देनेसे परमोन कोट कासिम परगना । नमोन पुनः मिल गई। मामन्तंगण फिर' जमोन पुरस्कार पाया। १८१२ ई.को उन्हें गोद लेनेका । म ले लें, इसके लिए मटियानीने उनके अधिकार भी मिला था। १८६४ १०.में राजपूताने में मो. हस्ताक्षर ले लिए । पहले रानो मटियानोने | घोर दुर्मिध पड़ा था, उसमें इन्होंने घटिश गयौ पटको राज्यको उवतिके लिए विशेष मनोयोग लगाया पोर अनेक प्रशंसनीय कार्य किए थे, इस कारण रहें । या : किन्तु अटाराम नामक एक व्यक्तिमे गुमममें G.C.S. I. को उपाधि मिलो थो एवं २१ तोप३ फंस जामके मारण पुनः पनर्थ का सूत्रपात दुपा । भाष्टि- पतिरित दो और सम्मानसूचक तो मिलने लगी। यानीने मदागय वैरिलासंकी निकाल कर धूतं जटाराम. १८७८१. G. C. I. E. मनाये गये। १८८.१.को । को प्रधान मन्वित्वका पंद दे दिया। यह जटाराम ही। निःसन्तामायस्यामि इनकी मृत्यु महाराज रामर्मिर धीरे धोरे राजाका हर्ताकर्ता हो गया। १८३९०में एफ विन्न शासक थे। विद्याको उमति तया अपने राजा भटियानो रानोको मृत्य हो गई। उनके मम्मामरचार्य भरमें महक बनवाने की पोर इनका पिगेय लक्ष्य था। पश तक गयम रहने जयपुर. पर दृष्टिपास नहीं किया होने पपने जीतो महाराज जगमिडके हितोय पुणे या। किन्तु पप 'प्राप्य कर नहीं चुकाया' इस बहानमे | पंगा सारदके ठाकुरके छोटे भाई कायममिको अपना जयपुरराजा पर इतक्षेप किया। रमी ममय जयपुर | उत्तराधिकारोयना रखा था। १८८..को कायम. राजधानोमें भी विधाट उपस्थित एपा । श्य भयसिंह मिस्रय मगाई मापयमिड नाम धारप कर गद्दी पर हे बड़े जोग पर योघरी वे गामन भार प्रहा करेंगे, | मठे। रमशा जन्म १८५२ में पाया। रनको माना. या जटागमको मम एपा। पुगे माम म घी मिगीम एक ममा धारा कार्य चलाया जाता था। कि जयमिगाम भार पटप करने पर फिर स १८८२ १.मरमें राजाका पूरा पधिकार दे दिया गया। का पधिकार भी न रजेगा। या विचार कर यम परसे रहें.१० तोयं दी जाती थी, माद१८८० भदो .