पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६४८

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जान ५५१ को जटिम्नता के कारण कोई प्रथम और कोई हितोय | जानका मूल इस प्रकार बतलाया है जहां इन्द्रिय द्वारा सोपान पर रह गया है। कोमतका कहना है कि पान्त- वाध विषयका ज्ञान होता है या याच विषयको रिक घटना के पर्यधेचग करने को क्षमता हममें नहीं है। प्रकृति के विषय में किमो तत्वका नित्यत्व हमारे मानके (किन्तु इस मतको मत्व मानकर ग्रहण नहीं किया जा घतात होने पर भो हमारोन्द्रियों को प्रकृतिका नित्यत्व सकता; क्योंकि हम अपने सुख दुःखों का पनुभः | हमारे अधिकारमें है। हमारो इन्द्रियों को प्रतिके प्रमु- प्रति चणमें करते रहते है।) मार हम वहिवि पयस कुछ निर्दिष्ट अवस्थाका मान कोमत्के मतमे जानको गयम भित्ति पर उपम्यिन लेते हैं। इन्द्रियों को प्रकृति मन एकम) है,मलिए होना तोन उपाय है-पर्यवेक्षण, परीक्षा और उपमा || बहिविषयको वे अवस्याएं भो हमारे लिए सईव ओनगिक व्यापार स्वतः हमार इन्द्रियगोचर होता है, एकमा हैं। इसो लिए हम अपने कान पोर पाकागाटि- उमको पर्यानोचनाको पर्यवेक्षण कड़ते हैं । इच्छापूर्वक के ममवायका नित्यान जान सकते है। यह जान हम अवस्याका परिवर्तन करके जो पर्या नोचना फो जातो है लोगों में ही है. इस कारण काण्टने को सोनम उमको परोक्षा कहते हैं। अनुमय विषयको अयो। चा प्राभ्यम्तरिक जाम कहा है। तरह समझने के लिए जो पर्याम्लोचना को जातो है टपाट मिन कहते हैं कि हमने प्रत्यक्ष दाग ऐमा उमको उपमा कहते हैं । अतएव देखा जाता है कि एक मकार शामिल किया है कि, जहां कारण मोद भान के पियमें अनेक मतभेद है। है, यहां उमका कार्य मोजद रहेगा। जहां परने क देवा जो हम जानते है. यही जान है जो नाना है, वह है, वहीं खयो देखा है। फिर यदि कहों क-को देखें मि तरह जाना है? तो वहां रख ई ऐमा हम जान मकत है। यदि पृथिवी कम विषयों की इन्द्रिय साक्षात् मंयोगसे जान पर जितनी समान्तरान पाखोंचो जामौसम सकते है। इस जानको प्रत्यक्ष कहते हैं। भिन्न भिन्न मिलती है या नहीं, हम वातको म परीक्षा करके सन्द्रियों द्वारा भित्र भित्र प्रकारका प्रत्यक्ष हुमा जांच नहीं ममत, तयापि जितनो देखो है, उनमें तो एक करता है, यया-दर्शन, स्पन, घाण इत्यादि। जिम भो नहीं मिस्ततो हैं । अतएव ममान्तराना ममिलन . पदार्य का प्रत्यक्ष होता है, उसके विषयमें हम मान | विरहका नियत पूर्व वा .इ, समान्त रानता कारण पार करते पोर उमके पतिरित विषय भो ममिलनविर उपका कार्य है। इस प्रकामे हम मान मूनित होता है। हम घरमें मो रहे हैं, इतने । माल म दुपा कि, जहां दो ममान्तरात रेवाएं लोगो. म याममे घण्टे की पायाज सुनो। इसमे ययण प्रत्यक्ष वहीं उनका मिना नहीं होगा। पतएव या मान 'तुमा परन्तु यह प्रत्यन गदका हुपा, न कि घण्ट. भो प्रत्यसमुनक है। फा। म भानको पनुमिति कहते हैं। किन्तु अनु. कोई कोई कहते हैं मातात्पन्द्रियशेधम मू जब मिति माग भी प्रत्यक्षमूलक है। कारण यह कि. हमने | प्रातिभातिक पाकारमें परिणत होता है, तभी हमको • जिम का पहले कभी प्रत्यक्ष नहीं लिया उम यियय में | पतान उत्पन होता है पोर यमुनानमा प्राप्ति 'अनुमति मानका सोना मन्भव नहो। . भातिक भाकार धारण कर महज सुतिको पतनभूमि मानो नम तात्त्विक मम्मन्धम यूरोपीय दाग निकमि | होती है। . परम्पर घोरतर विषाद है। कोई कोई कहते है कि, ___ मानव-ममाजको उतिक माय माय जितनी भोयन. हममें एमे यह शान है, जिनमें मूनपचन नहीं। के कार्य कलापों की बनता पौर विचित्रता माधित मिलता । यथा-कान, पाकाय इत्यादि। . होतो हे मया पमितता और यदशिंमाको बुद्धि प्राम म विषयको लेकर काएंने नौक पोर टिभके प्रत्यः होनो है, उतनो को मनकी प्रतिभातिक गलि (Repre. यादका प्रतिपाद किया था। उन्होंने रम पतिरित entativeckr. ) का प्रमार होता है। .