पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६

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जन्द-यस्ता कुछ ग्रन्य, (३) बन्दीदाद, (४) सण्डित प्रशसमूह। । है कि, उस प्राचीन समय तक इस धर्मम पछानादि. . (क) यत्र-पारसियों के उपासना-ग्रन्यों में यही प्रश का प्रवेश न हुआ होगा । अथवा सम्भवतः इनमें प्रधानतः · सर्व प्रधान है। यस्न नामक धमानुष्ठानमे यह अन्य धर्म प्रचारके लिये प्रहरमजद और .पहिमनके साथ युद्ध के पूरा पढ़ा जाता है। यस्नो अनुहानमे नाना प्रकार के विषय में उपदेशादि लिखा रहने के कारण, अनुष्ठानादिका धर्म कार्य किये जाते हैं, जिनमें इमोम-रक्षका रस, उन्लेख करना प्रयोजनोय न समझा गया हो। गाथानों दूध और अन्यान्य कुछ द्रव्य मिला कर उसकी आइति वा कवितायों को विच्छिन अवस्था देख कर बहुतसे बनाना ही प्रधान है। यस्नमें १७ अध्याय हैं, इसीलिए लोग अमुमान करते हैं कि, बौहधर्म की कविताओं में

पारसी लोग अपनो मेखलामें १७ अंश रखते हैं। निवड बुद्धके उपदेशों की भौति ये भो लोगों के मुंइसे

. कुछ मध्याय ऐसे भी हैं जिनमें पूर्व अध्यायोंकी अमुष्पत्ति सन कर लिखी गई है। • मात्र है। यस्नको तोन भागों में विभत किया जा - गाथानों में सप्ताधायो यस्न निहित है। यह गागा. 'सकता है। प्रथम भागका आरम्भ अरमनद और अन्यान्य प्रों के साथ सम-भाषामें लिखे जनि पर भी गमें वर्णित 'देवताओं का स्तव करने के बाद हुआ है। स्तबके बाद हुआ है। इसमें बहुतो मार्शनाए और अरमनद. उनको यथोचित अनुष्ठान के साथ अध्य दिया गया है। अमेपस्पेन्त, धर्मामा, अग्नि, जल पोर पृथिवी पर "एक छोटोसो प्रार्थना के बाद "होमपप त” का प्रारम्भ | बहुत स्तुतिवाट विद्यमान है। . . . हुआ है। उसमें हिन्दुनोंके सोमष्ठक्षकी तरह इपोम पर (ग) विश परद (अर्थात् समस्त प्रमु)-ये परम्पर

व्यक्तित्वका आरोप किया गया है और उस वृक्षको देवता संमिष्ट अन्य नहीं है। इसे ग्रस्नका परिमिष्ट कहा जा

.समझ र पूजा की गई है। चौदहवें अध्यायसे "सता सकता है, क्योंकि इसको भाषा, लेखन लो पौर विषयः

  • यस्तो" का प्रारम्भ दुपा है। इसके पहले दिन पौर का यस्न के साथ सामन्चम्य है। धर्मानुष्ठानों को जगह

प्रहरीको अधिष्ठात्री देवियों तथा अग्निको विभिन्न | यसके अनुठान हो उद्धत कर दिये गये हैं। समस्त 'मतियों का आवाचन किया गया है। उन्नीसवें, बीसवें और देवताओं का पालान कर पंध्य दिये जाने के कारण एकीस अधयायमें ' घंहुनवर्य" "प्रापम घोटु" और इसका नाम विश परद पड़ा है। . .. . • "येह हातम" नामक तीन पवित्रतम प्रार्थनामों को। (घ) यषत-२१ स्तोत्रों में यह समाप्त हुपा है। व्याख्या की गई है। इसके बाद पांच गाथाएं हैं। अधिकांश स्तोत्र कवितामें लिखे गये हैं। इस फिर 'योयप नामक एक स्तोत्रमें साम्प नामक देव- धर्म के देवदत पौर धर्मवीरों के कार्याटिको प्रय'सा को ताको विस्त स्तुति की गई है । अनन्तर कुछ देवताओं- गई है। जिस प्रकार ईरान-वासियों ने मासके दिनों के . का पुनः, भावाहन कर यस्नको समालि.की गई है। । नाम क्रमानुसार सजाये हैं, उसी प्रकार इसमें इन (ख) गाया: सम्पूर्ण जन्द अवस्ताम छन्दोवड गाथाए। देवतामोको कमसे पूजा की गई है। यपतों को भूमिका हो सबमेमाचीन पोर मूल्यवान है। इनकी माषा, छन्द और-उपसंहारके पानसे मानूम होता है कि, वे सब एक और लेखनशैलो ग्रन्थ के भन्यान्य प्रशो से सम्पूर्ण भिम हो ये गोके है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि वे भिव है। इनको संख्या ५ है। इनमें धर्म प्रचारक जरथ स्वकी। मिव समय में रचे गये थे। उनके विषय पौर' भाकार,

शिक्षा, प्रेरणा और वक्त ता आटिं वर्णित हैं। इसके पद भी परम्पर-गर्थक्य है। पहलेके चार यपत परवर्तीकाल.
से उनके विषय में एक सुष्पष्ट धारणा होती है जो अन्य के व्याकरण-दुष्ट छन्दमें रचे गये हैं और शेष दो पास
किसी अशके पद से नहीं होती। इन गाथायों में पुनः यप्तको प्रणालीम लिखे गये है। किन्त मध्यवर्ती यषत

गति दोष विल्क ल भी नहीं है और कविता भी उत्तम कवितामों में लिखे गये हैं। उनमें । कविलपतिका भी है। इनमें धर्म के बाघ पाचार-अनुष्ठानो के विषय विशेष यथेष्ट परिचय मिलता है एक स्तवमै सत्य पौर पालोको कुछ नहीं लिखा है। इसका कारण गायद यह मो सकता। देवता मिवदेवका इस तरहसे वर्णन किया गया है कि,