पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५९१

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.. जैनधर्म को परे पनादिएको किमोन भी मुष्टि नहीं। ... ताममयं पिमुमEिमाय ... फो। यमुकि जितने भी स्वभाव है, ये मभी अनादि-: ग्राममोश्मरमनन्समन गोम् । .. मे । मिन घाम स्वस भाव नहीं है, उनकी योगीभर विदितयोगमनेमे मशा नहीं रक्ष मकतो. । पृथियो, माकाग, सूर्य, चन्द्र . .. मनाममल' प्रवदन्ति मातः॥" पादि पदार्य जो प्रत्यक्ष दीप पढ़ते हैं, तदद्वारा ही प्रयत्- भगवन् ! तुम प्राय: तुम्हारा कभी . पनादिरूप मिज होता है । पृधिवी पर जो कुछ भी रचना अपव्यय नहीं है) पर्थात् मोम कानमें एफसमय हो धोख रही है, वह सब पहलेमे हो (अनादिमे ) प्रवाह- धिभु प्रर्धात् ममम्त पदाकि साता लोनमे जान धारा फममे डमी प्रकार चन्नी पाई है। जगत् जो कुछ भी मव्याणे हो, प्रदिस्य पर्यात् प्रध्याम-जानिगम भो. मियम से उस पांच निमित्तोंके बिना शि नहीं हो राम्हारी चिन्ता करने में समर्थ नहीं है, पमल पोस् मकते । इमी लिए कहा जाता है, कि मभी पदार्थ स्वस्व तुम्हारे गुणको कोई संख्या नहीं कर सकता, पार नियमानुमार होते हैं, यदि द्रव्यको गतिको ईश्वर कहते | पर्वात् यह पादिनाथ भगयान्वो मति पोर घे प्रथम हो तो कोई आपत्ति नहीं। ट्रय्यको प्रमादि गतिको तोर). स्वतार्थ के पाटियारक हो, या पर्यात भी सर कहा आ मकता है। यदि कहो, कि जहमें पनन्त यानन्दस्वरूप हो, मविक्षा पधिक ऐनयंगामो कुछ भी गति नहीं है, तो हम शासको हम खोकार हो, अनन्तज्ञान दानयोग, भो तुम्हारा पा नहीं नहीं कर सकी । क्योंकि जगत्में बहुतमे जड़पदार्थ मिलता, अनार केतु पर्थात् पोटारिक वैफिगिक, पाहार पूर्वोत पाच निमित्तीम पपने पाप मिला करते हैं । जम और कार्मण इन पश्चगरोरक्यो चिज मी तुममें । जैमे सूर्य की किरपा वर्षाव मेघ पर पड़ कर इन्द्रधनु नहीं है। योगोशर पर्थात् चार शाम धारक योगियों उत्पन्न करती है, पाकाग, पवनको सहायतासे जन्न | के भी ईखर हो, विदितयोग पर्थात् कर्मम योगो . पौर पग्नि उत्पन होतो है, मी तरह पूर्वी पाच समन भामामे सम्म र्ण पृथक् कर दिया है, पर निमित्ताम रण, गुलम, कोट, पतझादि बहुतर माली अर्थात् गुणपर्यायको अपेक्षा प्रमेक हो, एका पर्यात उत्पन पा करते है । ट्रष्यार्थिक नयके अनुमार पृथिवी : अक्षितीय या मस्किट को, जानसप पर्यात केवन. पाकाग, चन्द्र, सूर्य इत्यादि अनादि है और जो अनादि जान तुम्हारा स्थान पमन पर्यात पटादन दोप किमीके हारा मुष्ट नहीं हो सकते। वास्तवमै | रूप मल तुममें नहीं है।... मर जगत्सा नहीं है और न घे शोबाँके राभाशुभ। जिनप्रतिष्ठा विधि-पहले यासंगामा पगुमार जिम. का विधान ही करते । जीवोंका जो शुभाशुभ होता मन्दिरका मम्माम मिति करें और फिर एमदिनमें १. वध कर्मकान मात्र है। कर्म फल भोगनेर्म जोय पोटीनीयको पूजा करके हमको शदि करे । जिम. परवगा . . . मन्दिर नियित चारों द्वारा मामने पांच रंगो चामि यदिखा सटिकता नहीं, यदि देगार जीवफे शभा चराकोण मगम घना पोर अटदमा कमनके पाकार शुभ कर्मविधायक नहीं, तो फिर उनका सल्य या विक पा लोकोत्तम मि पाटिको (पनादिः । प्रधान प्रधान जनापायाने निम रनोक प्रकट कर र मिहमद दाग) पजा कर मननार पार दिगापोंकि काम किया है - . .. चार aai पर अया पादिषियों को, चार विदिशा स्यका सान मोर जैनमतानुगार सहरी चार पत्रों पर जम्मा पादिदेषियोंको, समा उमबार विस्त सरू जानना होगो निम्नलिखित मन्य देणे-- भार नोकपानी और नयपदको पन्ही ममि पूजा परीत, प्रयागाचा, सानीमांधा, मे मा, मम करमो चाहिए। फिर उत्कट मिशाग पर शिम. मोमोसा, प्रमागमुथर, गुधिसिदि,वापरावातिका प्रतिमानो विराजमान शर उनकी पूझा की वोडे अन पार, गधारिमा भारि । . . . . . . । चन्दन भन्नतादि पटद्रव्य मे कर मयं विनाको गामि .