पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५७

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जयदेव अशको भी गुम-सवत् झापक कहा जा सकता है। गुला। दौडिवीपुत्रका राज्य ग्रहण करना, नितान्त सम्भव है। रजवंश देखे । यदि यह ठोक है, तो प्रमाणित होता है। इसका उत्तर इस प्रकार. है-पोन परिवारक युएन. कि लिच्छविराज २य जयदेव (२८८x१८२०- )| चुपांगको जीवनीमें लिया है कि, ५४० में () ६१८१८ ई में नेपालके सिंहासन पर अधिष्ठित हुए थे। उन्होंने बलमोराम्यम ना कर यहाँक राजा पवमाको इस समय मम्राट हर्षवन शिलादिस्य कनौज के सिंहासन / देखा था। मम्राट हर्षवईनको पोत्रोके माथ इन ब. पर अधिष्ठित थे। वाणमट्ट और युएनांगको वर्णनामे | भष्टता विवाह हुपा था। ये (३४७ ईमें ) प्रयागको मालम होता है कि, सम्राट हर्ष देवने समस्त उत्सर धर्म सभा योहर्य देव के पास मौजूद थे ). . . भारत और गौड़, उड़, कलिङ्ग आदि अनेक स्थानों में माथमा हर्षचरितमें योपदेव के विधायका प्रमा । अपना प्राधिपत्य विस्टत किया था। ऐमी अवस्था नहीं है, किन्तु उमझे हारा दिग्विजयका प्रसन्न है। ऐमी सन्देह नहीं कि २य जयदेवके ससुर गौड़ उह-कलिङ्ग दगामें यही मनुमान किया जा सकता है कि, सनोंने कोशलाधिप श्रीहर्षदेव और शिलादित्य पंधर्द्धन समाद होने के बाद पपना विवाह किया था, पहले दोनों एक ही व्यक्ति थे। (अपनी इच्छासे) नहीं। यहां एक प्रश्न हो सकता है। प्रमतत्त्वविद फ्लोटने अतएव इसमें सन्देह नहीं कि उन्होंने ज्यादा लिखा है, 'हर्षवईनयी मृत्यु के बाद कोजराज्य के विमा | उममें विवाह किया था। २०६ ई०के पहले राजपदके ' म हो जाने पर मगधराज प्रादित्यमेनने महाराजाधि- मिलने पर भी शायद हप्तो ममय ये सम्राट, पद पर राज श्रर्धात् सम्राट उपाधि प्राप्त की थी। गाहपुरके अभिपित हुए थे । सम्भवतः विवाहके दूसरे वर्ष इनको गिलाल खानुसार ये ६६२-७३ ई.में विद्यमान थे (७) कन्या राज्यमतोका जन्म हुपा था। राज्यमतीको इसलिए प्रादित्यसेनको दौहितीके पुत्र २य जयदेवका | अवस्या जम-१० वर्षको थो,तम (मम्भवतः ११९१७ ६९८६०में विद्यमान रहना असम्भव है। २०) लिच्छविराजकुमार २य जयदेवके साथ समका . परन्त हम प्रमाणित कर चुके हैं कि, "शाहपुरको विवाद हुपा था जो उनके समवयस्क थे। सूर्य प्रतिमा पर उत्कोर्ण शिलाले खमे १६६ सयत्मे राजा । श्रीहर्षचरितमें माणभापौर उपका परिचय पदनेमे श्रादित्यसेनका उल्लेख है।" गुमराजवंश देतो। ऐमो | यह अनुमान नहीं होता कि यो प्रस्प-वयस्क युयक दशामे यही निर्णीत होता है कि 4.८ में आदित्य | थे। वाणमा पहुत दिन तक हर्ष की मभामे थे । सम्भ रोग मगधक मि हासन पर बैठे थे। उस ममय भी वतः वाणभटकी मृत्यु के बाद प्रौढायस्थामें हर्षका . योपपदे वका आधिपत्य विधमान था। मगधराज | विवाह हुआ होगा। यदि यह ठीक है, तो पंदवने . बादितासेनको पिता माधवगुप्त इप देवके मचर थे तथा H. या ४१ वर्ष की उम्र में (६. मन ३.६ मे) विषार सम्बन्धमें भी प्रादितासन सम्राट. पपईनके किमी किया था। ऐसा होनेमे प्रायः ५६९६ में देवका नतिम भाप लगरी । पतएव इसमें सन्देश नहीं कि ] जन्म माथापाले ही लिख चुके र कि. माधषगुप्त - . पादिसामेन और इपदेव दोनो समसामयिक ही थे। पंदेव महचर होने पर भी उनके पुत्र प्रादित्य मेनके इसमें यह पापति हो सकती कि जब माधवगुप्त किसी मातेमे हदेयके भाई लगते थे। इस प्रकारमे इप के मित्र थे, तब उनके पुत्र प्रादितानेन पं देवकी पादित्यमेनको रुपं की अपेक्षा ८ वर्ष छोटा ममझना ' पपेशा उसमें छोटे रोग। वर्तमान प्रवतत्वविदोंने चाहिये। ऐसी दशा माय: ५७... पादिन्यः निर्णय किया है कि, मबाट पवईन ३०५-०* में मिक्षमन पर बैठे थे। ऐसो हासत मादित्यसेन। (e) Canninghama Ancient Gengraphy of Indian.566. POETराण्यामिपिस होने पर मो६८९.में उनके L. Vie de utpunThurg Par. Stanslas Jalien, p. To Fite Inscriptionum Indicartm, Vol. in. p.14. / 25. . , , -