पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५६८

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नैनधर्म ५१५ बाजे बजवाने चाहिए। इसका दूसरा नाम मोद वा को; मन्त्र-“ओं ह्रीं श्रीं क्लीं का सि मा उ सा उद. प्रमोद क्रिया है। (जैन आदिपुराण, ३८७७.७९) वरकृत चूर्ग समस्तजठरे चेयं इयो ची स्वाहा ।" अनन्तर श्य सुप्रीति-संस्कार-प्रीतिक्रियाके २ महीने बाद प्राचार्य को स्त्रीके गले में उदम्बरफलको माला पहनानी मुप्रीति संस्कार होता है। इसमें भी पूर्ववत् होम पूज- चाहिए; मन्च- "ओं नमोहते भगवते उदम्बरफलामरणेन नादि किया जाता है। होम सम्पन्न होने के बाट निम्न- बहुपुरा भवितुमर्हा स्वाहा ।" लिखित मन्त्र पढ़ कर बाहुति दे और पुष्पदेपण करें । अन्तम प्राचार्य को उचित है कि मङ्गालकलम हाथ मन्व-"भवतार कल्याणभागी भय। मन्दीन्द्राभिषेक- लेकर पूर्वोक्त पुण्याह वचनों का पाठ करते हुए म्बी पर कल्याणमागो भव । निक्रान्तिकल्याणभागी भय । आई। जलझे छोटे देवे तथा निम्रलिखित मन्त्रोचारणपूर्वक स्यकल्याणभागी भव । परमनिर्वाणकल्याणभागी भव पुष्प ! रञ्जित तण्डन ) निक्षित करें। मंत्र -- "सजाति- . 'अनन्तर पति स्त्रीके हायमें ताम्ब ल (लगा हुआ पान), दातृभागी भव। सदएहिदातृभागी भव। मुनीन्द्रदायभागी देवे तथा जौके कुरे, पुष्प, पत्त और दाभसे बनी हुई भव । सुरेन्द्रदातृभागी भव । परमराज्यदातृभागी भव । आईन्स माला पहनावें । मन्त्र-“ओं झंशी वा ६ सः कान्ता. दारभागी भव । परमनिर्वाणदातृभागी भव ।" अनन्तर ग्रह गले यवमालां क्षिपामि श्री स्वाहा। स्वामोका कर्तव्य है कि समागत व्यक्तियोंको ताम्बल अनन्तर मिहोके तीन छोटे छोटे पड़ों में खोर, टहो। यादिसे सत्कार कर विदा करें। भात पोर इन्दीका पानी भर कर मन्त्र पाठपूर्वक उन्हें (जैन आदिपुगग ३८१८२-८३) स्त्रोके मामने रख दें। मन्त्र-“ओं झं वं हःप: : भसि | ५म मोद-मस्कार-यह मस्कार प्रायः प्रीतिक्रियाके गाउा कानापुरत: पायदापोदनहरिदाम्युकलशान स्थाप- ममान है। प्रभेद इतना हो है कि प्रतिमस्कार तीसरे यामि स्वाहा ।" फिर किसी ना समझ छोटो लड़की | महोन होता है और यह नौवें महोने। में उनसे किमी एक कलयका स्पर्श करावे। लड़की | (जैन आदिपुराण ३८८३-८.) यदि खोरका घट छुए तो ममझना चाहिए कि पुत्र ६४ जातकर्म वा जन्म-सस्कार-यह संसार पुत्र होगा। यदि दही-भातका कलश छूए तो कन्या और वा पुवीके जन्म दिन होता है। जन्मकिया देखो। हल्दीवाना कम्नश कूए तो नपुंसक अल्पजीवी वा म नामकरण संस्कार-यह मम्झार पुत्रोत्पत्तिके मृतकका अनुमान करना चाहिए । अनन्तर शान्ति- १२, १६, २०वें अयवा ३२ दिन किया जाता है। पाठ चौर विसर्जन करके कार्य समास करें। यदि कदाचित् इस अवधि के मोतर नामकरण न हो __.. (अनादिपुराण, ३८८०-८१)। मके, तो जन्मदिनसे एक वर्ष तक किसो भी शभ दिनमें . यं ति संस्कार-दमका हितोय नाम सीमन्तोवयम किया जा सकता है। पूर्वोक्त विधिक अनुमार होमकुण्ड वा सोमन्तविधि है। यह संस्कार मानव महोने शुभ आदि निर्माण कर कुण्डोंके पूर्व को तरफ पुत्रमहित दिन, शुभमनन और भयोग पाटिमें करना चाहिए। दम्पत्तीको बिठाना चाहिए। ययाविधि होम समाध इमके प्रारम्भिक कार्य प्रीति या मुप्रीतिक्रियाके ममान | होने के बाद घर तथा जिन मन्दिर में बाद्यञ्चनि कराना है। होम भी पूर्ववत् विधिके अनुसार करना चाथिए । चाहिए । इमो समय आचार्य को मल्लकलग हायमें ले होम समाहिके बाद स्वजातोय पोर स्वकुलको क्योहड कर पुण्याइवचन उच्चारण करते हुए टम्पती घोर पुन सौभाग्यवती (पुत्रयी माता) स्त्रियाँ हारा खैरको लकड़ो पर मिञ्चन वारना चाहिए। पयात् पिता एक थालोमें की मलाईमे गर्भिणीके केगोंमें तीन मांग करानी तण्डुल विछा कर उस पर पहले पपना नाम, फिर पाहिए। मनाईलो घी, तेल भोर सिन्दूरमें ड्यो लेना पुत्रका नाम जो (रला गया ) लिखें। फिर घो प्रावश्यक है। इसके याद पतिको चाहिये कि अपने और दूधर्म रक हुए भाम परोंको निकाम्न कर वश्च को साथसे स्त्रोके उदर और मस्तक पर उदम्बरपून नितेय पहनावे और उम घो दूधको दाममे बच्चे के मस्तक,