पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५३६

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नैनधर्म १८५ लोकको ऊचाई चौदह राज है, मोटाई । उत्तर है, जिसका पूर्व पशिम और उत्तर दक्षिण दिशाम ओर दक्षिण दिशामें ) सर्व व सात राज़ है और चौड़ाई! लोकके अन्त पर्यन्त विस्तार है। इमको मोटाई एक (पूर्व-पश्चिम ) का विस्तार विभिन्न प्रकार है जो ऊपर | लाख अमो हजार योजन है। इम रत्नप्रभा 'अब्बल लिखा गया है। गणित करने मे लोकका क्षेत्रफल ३४३ / भाग में वमनाड़ीके भीतर प्रथम नरक है, जिसका नाम धन राजू होता है। यह लोक सब तरफमे तीन बात धम्मा है। ग्नप्रभा पृथिवोके नीचे पृथ्वोके आधारभूत (वायु ) बलयों द्वारा एम प्रकार वेष्टित है जमे बच | घनोदधि. धन और तनु ये तीन वातलवय हैं। एन अपनी छालमे अर्थात् लोक घनोदधिवातवलयमे, तीनों वातवलयोंको मोटाई २० हजार योजन है: घनोदधिवातवलय धनवातवलयसे और धनवातवलय , तनुवातबलयके नोचे कुछ दूर पर्यन्त केवल चाकाश है तनवातवलयमे वेष्टित है। तनुवातवलय अाकाशके पोर उमके नोचे ३२ हजार योजन मोटी और पूर्य, पायय है थाकाश अपने ही आयय है। आकाशको | पयिम, उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं में लोकके अन्त तक अन्य आययको अावश्यकता नहीं ; क्योंकि वह मर्व विस्तारयुक्त शर्कराप्रभा नामक टूमरी पृथिवी है। यहां 'व्यापी है। इम लोकके बीचमें १ राज चौड़ो १ राज़ वमनाडीके मोतर भोतर वगा नामक दुमरा नरक लम्बी और १४ राज ऊंची 'वसनाही' है। वमजीव इसौ है । इमके नीचे तीन वातवलय और आकाशके बाद वमनाली में होते हैं, इसो लिए इसका नाम बमनाड़ी। तोमरो पृथिवी वालुकाममा ई। यहां (वमनाडीके पड़ा है। बमनाडीके बाहर बमजोयोंको उत्पत्ति नहीं मध्य ) मेघा नामक ३रा नरक है। इम पृथिवीको होतो।। मोटाई २८ हजार योजन है। मी क्रमके अनुमार ___ यह लोक तीन भागोंमें विभक्त है-(१) अधोलोक, चौथो, पांचवीं, छठी और मातवी पृथिवी विन्यस्त है, (२) मध्यन्नोक और (३) अर्थ लोक। इसी लिए इमका | जिनके क्रमवार नाम इस प्रकार है-पाहप्रभा, धूमप्रभा, नाम त्रिभुवन पड़ा है। नीचेमे ने कर ७ राजको अचाई तमःप्रभा और महातमःप्रभा। इनमसे ४थी पृथिवी तक अधोलोक. है, मुमेरु पर्वतकी ऊचाईक समान पलप्रमाको मोटाई २४००० योजन, ५वर्षी धूमप्रभाकी (अर्थात् एक लाख चालीम योजन अचा) मध्यलोक २०००० योजन, ६ठो तमःप्रभाको १६००० योजन और है और सुमेरुपर्व तमे अपर अर्थात् १.००,०४० योजन | महातमःममा नामक वा पायवाका माटाइ कम ७ राज प्रमाण सर्वलोक है। योजन है। चित्रा पृथिवी के नीचे से (मेरुको जड़मे) २य . १। अधोलोक-इमका घनफल १८६ राजू है।। पृथिवो शर्कराप्रमाके यन्त पर्यन्त एक राज पूरा हुआ इम लोक में जीव पाप उदयसे उत्पन्न होते है। प्रधो है। ममम दोनों पृथिवियोंको मोटाई दो लाख बारह लोकका वर्णन इम मध्यलोकके नीचे से प्रारम्भ करेंगे। हजार योजन घटा देने दोनों पृथिपियोंका अन्तर मध्यलोके ( जिस पर हम लोग रहते हैं, उस एक हजार | निकल पाता है। टूमरी पृथिवीके अन्तम तीसरी योजन मोटो चित्रा पृथ्वो)के नीचे अधोलोकका प्रारम्भ पृथिवीके अन्त तक एक गज पूरा होता है। इसी तरह है। प्रथम हो मेरुपर्वतको आधारभूत रत्नप्रभा पृथिवी | तीमरीके अन्तसे चोयोके अन्त तक एक राज, चौथोमे पांचवीं तक एक राजू, पांचवोंमे छठी तक एक राज . परिमाणविशेष; इसका विवरण अन्तमें दिये हुए "अलो. और ठीके अन्तसे सातवीं पृथिवीके पन्त तक एक एक कि गणित में देखो मध्यलोकका क्षेत्रफल ४ घनराजू है अर्थात् मन्यलोकका राजू पूरा होता है। मातवीं पृथिवीके नीचे एक राजू प्रचतुष्कोप प्रमाण अाकाश निगोद धादि जीवों से भरा हुपा है; अनमतानुसार कृत्रिम पदार्थीका जहाँ वर्णन होता है, ! वहां कोई पृथिवो नहीं है। तोमरी पृथिवी तक वहाँ योजन २... कोशका माना जाता है। लोकके वर्णनमें । नरकों के माम रूपर.कह चुके हैं। चौथी प्रथिवी पर "मी २... कोशकायोजन समझें। . . . पवना नामक मतयं नरक है। पांचों पृथिमी पर Fol, VIII. 123