पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५०२

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जैनधर्म ४५३ पहले,गरीरमें ही पपने मार्यो पनुमार पाम किया था, लिए निरापोर मयरको पृयर करना पड़ा। मगर 'यदि यतमान मनुष्य-पर्यायमें देवोचित कर्माका बध हो। पोर. निर्जरा कसको होती है, उमबिए कार पाने तो मनुष्य पर्याय की ममामिम ही टमका मरण भमझा (पास) पोर पामामे मिन जाने (ब) का भी जायगा: पर्थात् जिस समय मनुपायु ममाम होगी, उमी। उप किया गया। पर इन मात तासगणादि समयमेदवायुका प्रारम्भ होगा। | मपमे कई आते। · · मो प्रकार यह पामा कर्मोदय या मसारमै चरा (१) रीमतप-जिमझे पाधार पर जीपाको मता गरिभ्रमण करता रहा है। जिम ममयम पायाम | निमररो प्राण कहना है पर ये भावमाग पोर झपाय वामियों का न होता है, छम ममय वह कर्मका ट्रवामाणके भेदमे दो प्रकारहे । मावमाण-मामाकी मध नहीं करता है। जहां प्रारमा कर्मबंधमे छूट जाता जिम गति के निमितमे रन्ट्रियां पादि पपने कार्यम है यही उमझे पारमीय मिज़ो गुणोंको पूर्णरूपमे वाल | प्रात्त हो उमे भावभाग कहते । भावमा मुस्यता दो भाती है। उमो पषम्याम यह पात्मा परमारम पदका भावेन्द्रिय पोर इजमाप ये टो भटाभान्द्रियम्मान, धारी कहा जाता है। वह परमात्मा पाम पोतगग, | रमना पादि पांच प्रशारकी होती . पोर यन भी मन. निर्विकार, जानिद्रटा पगरीर एवं पमूर्तिक पादि गुणे | वचन पोर कायके मदमे कीन प्रकारका है। इस प्रकार द्वारा मिहमोक-मोक पग्रभागमें ठहर जाता है, केन । भायप्राणके पाठ भेट भी पामाण - पिन के मंयोगों मिहामानुमार प्रचक म'मारोपामा कमि महने पर जीय जीवन अयस्वामी प्राम हो और उनके वियोगमे पामामा यमने योग्य । तया उमई कर्मों का छूटना, मरण ( गरीर पारयत न ) पपस्याको मार हो. उरको मग पचम काय इन तीनों योगोंको पद गर्न तया! ट्रयामाप कहते हैं । ट्रयामा दगमे एलिय • कपायोंको मचा भोसनेमे सोता है। जबकिममो लीवर म्पर्गनन्द्रिय, कायम, सागौनाम पर पाय ये भामाश्राम कपायर्याको जीतमकी मामयं पायो जाती धारदीन्द्रिय सन्द्रिय कायशन, गामोग्राम, नव मभी पास्मामि परमारमा घमनेको प्रजिमी पाय, रमनन्द्रिय पोर यचनयम ये, मौष्ट्रिय एक उपस्थित है। ममिये जैनियाँ मिन्तानुमार एक प्रापेन्द्रिय पद जानेमे मास । परारिन्द्रिय एस चारि. परमाणा नही किमु पनाने हो गये पोर होते.रहेंगे। न्द्रिय बद लाने में पाठ : पनी पद्रियो एक योय. अगियों के मिदासमे परमारमा राष्टिका का पता भी द्रिय बद आन में नो पर मनी पनियर मनोयन मही किमा मोक पमादि निधन, जगत्में माना बढ़ जानेगे दग दयामार। 'कार्याको रसमा सय प्रशसिक विकार होतो इपर्नु त प्रायोके पाधार पर पपम लीयनका पनुभय थी। फरता पा जो प्रीका, जोता या पोर प्रविमा उसको • भासास-ग.मिहानामे तर मात मान है,। जीन करते है। माधारणतः श्रीपमा म यह भी यषा-(१) जीव, (२) पोय. (३) पानव, (४) बन्ध, ' सिरप पा समान पीजी (५) मगर,निपरापोर (0) मोप। यहां ऐमा वा मुखत: दो भेटर-(१)ममागेपोम पोर (३) 'मय किया मा ममा हिजोग पोर पीवान टी मुख-शीय। ममारोत्रीय-मो मसार, परिमाण सयका उन कर देनेमेही काम धन नाकारोकि पयवा उन्म मरकर, उमे ममारोग हरते। पाराम पन्ध पादि गेप ५ सय पजीपी मदम या उपयोगायो २, का Hit पपनो टेर मिप पीय देनेमात्र में एमका ममापन हो जाता। बराबर मेवामा पोर कफनो को भोगनेगाना : रामका असर गहकि, 'मोनफा य मोर पोर मया सभापत: निशाना। जो य हो समनिए गोषका उमंग करना या माग, गरम, गा और मदम रस पनि.णि मोदकी मानिशा उपाय माना मी मा . मतिरोन कारण ममारी जोन समार. Vi. TIRI. IN